×

शहीदों की धरती है मेवात, एक ही गांव के सैकड़ों लोग उतरे थे मौत के घाट

मेवात का नाम आज कल जब भी अखबारों की सुर्खिया बनता है तो उसकी वजह यहां की गौरवगाथा नहीं होती, बल्कि गौ  तस्करी और गौ हत्या की खबरे होती है। ऐसा अनुमान है कि मेवात में गौ तस्करी खुलेआम होती है। लेकिन मेवात की पहचान इसकी गौरवगाथा और बलिदान के ले भी दर्ज है।

suman
Published on: 19 Nov 2019 8:26 AM GMT
शहीदों की धरती है मेवात, एक ही गांव के सैकड़ों लोग उतरे थे मौत के घाट
X

जयपुर :मेवात का नाम आज कल जब भी अखबारों की सुर्खिया बनता है तो उसकी वजह यहां की गौरवगाथा नहीं होती, बल्कि गौ तस्करी और गौ हत्या की खबरे होती है। ऐसा अनुमान है कि मेवात में गौ तस्करी खुलेआम होती है। लेकिन मेवात की पहचान इसकी गौरवगाथा और बलिदान के ले भी दर्ज है। यही से 1857 की आजादी की चिंगारी दहकी थी। आजकल मेवात गायों की तस्करी के लिए भी फेमस हो रहा है। लेकिन क्या आपको पता है प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में देश की रक्षा के लिए हजारों सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे। अंग्रेजी हुकूमत से बगावत की वजह से आज से ठीक 162 साल पहले एक ही दिन रूपडाका गांव के 425 वीरों को ब्रिटिश आर्मी ने गोली मार दी थी।

यह पढ़ें...आतंकियों पर ब़ड़ी कार्रवाई: भारत ने तोड़ी कमर, 7 प्रॉपर्टी को किया कब्जे में

रूपडाका गांव के 425 लोगों को तो अंग्रेजों ने गोली मार दी थी, जबकि अलग-अलग घटनाओं में विद्रोह की वजह से 470 मेवातियों को उनके अपने गावों में फांसी पर लटका दिया गया। दस गांवों को अंग्रेजों ने जला दिया था। उन शहीदों की याद में यहां के गई गांवों में मीनारें बनवाई गई हैं, जो आज भी यहां के लोगों की देशभक्ति की गौरवगाथा बताती है।

1857 में आजादी की पहली लड़ाई से लेकर आजादी मिलने तक के संघर्ष में यहां के लोगों ने अपना बलिदान दिया है। आज यहां के लोगों को सिर्फ संदेह से देखा जाता है। इस क्षेत्र के रहने वाले पहलू खान, उमर मोहम्मद, तालिम और अकबर उर्फ रकबर को गो-रक्षा के नाम पर पीट-पीटकर मार डाला गया।

यह पढ़ें...अखिल भारतीय स्वछकार एसोसिएशन के सफाई मजदूरों ने अपनी मांगों को लेकर लालबाग स्थित नगर निगम पर धरना प्रदर्शन किया

साल1803 में अंग्रेज-मराठों के बीच हुए लसवाड़ी के युद्ध में मेव छापामारों ने दोनों ही सेनाओं को नुकसान पहुंचाया और लूटपाट की थी। अंग्रेज इससे काफी नाराज थे, तभी से मेवातियों को सबक सिखाने के लिए मौके का इंतजार कर रहे थे. साल 1806 में नगीना के नौटकी गांव के रहने वाले मेवातियों ने मौलवी ऐवज खां के नेतृत्व में अंग्रेज सेना को काफी नुकसान पहुंचाया। इस हार से अंग्रेज घबरा गए और अंग्रेजों ने मेवातियों से समझौता कर लेने की कोशिश की।

स्वतंत्रता सेनानी रणवीर सिंह हुड्डा के पुत्र एवं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह ने अपनी पुस्तक ‘विकास की उड़ान अभी बाकी है’ में मेवातियों की वीरता का विस्तार से जिक्र किया है। वो लिखते हैं, 'मई 1857 की जो क्रांति बैरकपुर से शुरू हुई थी वो 12 मई को मेवात पहुंच चुकी थी। मेवात के आसपास के दर्जनों गांवों के लोगों ने अंग्रजों के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया। इस बात की भनक जब अंग्रजों को लगी तो वायसराय ने कैप्टन डूमंड नायक की अगुवाई में रूपडाका गांव को घेरने के लिए फौज भेज दी. 19 नवंबर 1857 को फौज ने गांव पर धावा बोल दिया, लेकिन यहां के जांबाजों ने डटकर मुकाबला किया. इस गांव के 400 से अधिक शहीद हो गए।

यह पढ़ें...महाराष्ट्र में सियासी संकट: PM मोदी के बाद RSS प्रमुख मोहन भागवत ने दिया बड़ा बयान

19 नवंबर 1857 को मेवात के बहादुरों को कुचलने के लिये ब्रिगेडियर जनरल स्वराज, गुड़गांव रेंज के डिप्टी कमिश्नर विलियम फोर्ड और कैप्टन डूमंड के नेतृत्व में टोहाना, जींद प्लाटूनों के अलावा भारी तोपखाना सैनिकों के साथ मेवात के रूपडाका, कोट, चिल्ली, मालपुरी पर जबरदस्त हमला बोल दिया। इस दिन अकेले गांव रूपडाका के 425 मेवाती बहादुरों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। इतिहासकार बताते हैं कि इस दौरान अंग्रेजों ने मेवात के सैकड़ों गांवों में आग भी लगा दी, लेकिन सरकार मानती है कि 10 गांवों को आग के हवाले किया गया था। इनकी सूची मेवात के जिला मुख्यालय नूंह में लगाई गई है।

अंग्रेजों ने मेवात में क्रांति की ज्वाला को मिटाने के लिए बड़ी क्रूरता का परिचय दिया। उन्होंने कई गांवों को तबाह कर दिया और न जाने कितने व्यक्ति लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। 20 सितंबर 1857 से सितंबर 1858 तक लगभग 1,522 मेवाती मारे गए। 'यह दुर्भाग्य ही है कि जिस मेवात के लोग देश की रक्षा के लिए अंग्रेजों की गोली खाई, फांसी पर झूल गए उसे आज लोग सिर्फ गौतस्करों के रुप में पहचान मिलने लगी हैं।'

suman

suman

Next Story