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किसान आंदोलनः ये दे रहे हैं तन, मन और धन से किसान आंदोलन को धार
आंदोलन को चलाने के लिए किसान, दुकानदार और श्रमिक सभी मदद दे रहे हैं। सबकी एक ही इच्छा है किसान आंदोलन सफल हो। किसानों के साथ न्याय हो। हरियाणा के गांवों में सौ रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से स्थानीय नेता चंदा इकट्ठा करके आने जाने और खाने पीने का इतजाम कर रहे हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: कड़ाके की शीतलहर रात का पारा पांच डिग्री से नीचे। खुले आसमान तले अन्नदाता दिल्ली दरबार से फरियाद लगाता बैठा है। 32 साल पहले भी 1988 में बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसान दिल्ली आए थे। लेकिन तब सात दिन में ही राजीव गांधी सरकार की चूलें हिल गई थीं। लेकिन आज किसान आंदोलन को 52 दिन हो गए। नौ दौर की वार्ता हो गई। आखिर कब तक देना होगा किसानों को अपने धैर्य का इम्तिहान।
तमाम कोशिशों के बावजूद भी डेट रहे किसान
लाखों किसान दिल्ली के बार्डर पर डेरा डाले है। सरकार ने आंदोलन तोड़ने की कोशिशों में कोई कमी नहीं रख छोड़ी बावजूद इसके वह किसान आंदोलन की मजबूत चादर में एक छेद नहीं कर सकी। किसानों के इस जीवट पर अब ये सवाल उछलने शुरू हो गए हैं कि किसानों के इस आंदोलन को पर्दे के पीछे से कुछ ताकतें सहयोग और समर्थन दे रही हैं। लेकिन ये बातें भी सिरे से गलत साबित हो गई हैं।
आंदोलन को चलाने के लिए ये दे रहे मदद
इंडियन एक्सप्रेस की आज प्रकाशित एक खबर महत्वपूर्ण है कि किसान आंदोलन को चलाने के लिए किसान, दुकानदार और श्रमिक सभी मदद दे रहे हैं। सबकी एक ही इच्छा है किसान आंदोलन सफल हो। किसानों के साथ न्याय हो। आने वाले दिनों में किसान आंदोलन को मजबूती देने के लिए हरियाणा के गांवों में सौ रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से स्थानीय नेता चंदा इकट्ठा करके आने जाने और खाने पीने का इतजाम कर रहे हैं। कुछ गांवों में किसानों ने दो सौ से पांच सौ रुपये एकड़ के हिसाब से देने की पेशकश की है। और कुछ ने तो हजारों में यह राशि आंदोलन चलाने के लिए दी है। चंदे की रफ्तार इस भावना के साथ तेज होती जा रही है कि आंदोलन रत किसान किसानों की जमीन कारपोरेट के चंगुल में जाने से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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एक किसान का कहना है कि उसने अपनी खाप के 160 परिवारों जिनके पास 850 एकड़ जमीन है से 85 हजार रुपये जमा किये हैं। यह किसान हिसार के सिसाई गांव से है। जो कि आबादी और आकार के हिसाब से सबसे बड़ा गांव है। इस गांव की आबादी 35 हजार है और किसानों के पास 15 हजार एकड़ जमीन है। एक पूर्व सरपंच जिसने 1.11 लाख रुपये दिये हैं उसका कहना है कि तकरीबन प्रत्येक किसान ने कुछ दिनों पहले लिए गए निर्णय के तहत अपने हिस्से का चंदा दिया है। अब तक यह चंदा तकरीबन 15 लाख का सिर्फ इस गांव से है।
क्या है इन किसानों का कहना ??
किसानों का कहना है कि हम अपनी जमीन बचाने को लड़ रहे हैं। अगर हम अपनी जमीन बचाने में कामयाब हो गए तो ये चंदा हमारे लिए महंगा नहीं है। हमें मंडियों में अपनी उपज की कीमतों के लिए जूझना पड़ रहा है और अब कारपोरेट हमारी जमीन को निशाना बना रहे हैं। किसान उन लोगों के लिए चंदा जमा कर रहे हैं जो उनके गांव से धरने में टिकरी बार्डर गए हैं। सिसाई गांव से टिकरी बार्डर पर प्रति दिन दूध और अन्य खाने की वस्तुओं की आपूर्ति के लिए एक विशेष वाहन लगाया गया है। बहुत से वाहन मालिक आंदोलनकारियों को वाहन की की सुविधा देने के लिए केवल वाहन के ईंधन का चार्ज ले रहे हैं। महिलाओं और बच्चों को गांव से टिकरी बार्डर लेकर गई बस के मालिक ने केवल डीजल का पैसा लिया।
तमाम स्थानीय BJP और JJP नेताओं ने भी दिया चंदा
बड़ी बात ये है कि किसानों के प्रति सहानुभूति के चलते तमाम स्थानीय भाजपा और जेजेपी नेताओं ने अपने हिस्से का चंदा दिया है। एक जेजेपी नेता का कहना है मै पहले किसान हूं। इस ने अपनी जमीन के हिस्से के आधार पर चंदा दिया है। राज्य में 7088 गांव हैं जिनमें कुछ लोगों के पास सैकड़ों एकड़ जमीन है तो कुछ के पास हजारों एकड़। जैसे मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के पैतृक गांव निंदाना में 8836 एकड़ जमीन है जबकि उनके पड़ोसी गांव नांगल में एक हजार एकड़।
समाज के अन्य वर्ग भी दे रहे हैं दान
जींद के एक किसान नेता, रामफल कंडेला ने कहा कि किसानों के अलावा, समाज के अन्य वर्ग भी दान दे रहे हैं। उदाहरण के लिए, मजदूर प्रति परिवार 100 रुपये की दर से दान करते हैं। कंडेला ने कहा, "हर परिवार से अब एक न्यूनतम राशि एकत्र की जाती है, जो कि महीनों तक जारी रह सकती है।"
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कर्मचारी, दुकानदार और अनुसूचित जाति समुदायों के लोग, जिनके पास सामान्य रूप से भूमि जोत नहीं हैं, भी आंदोलन में योगदान कर रहे हैं। इन फंडों की मदद से, ग्रामीण अपने गांवों के बाहरी इलाके और दिल्ली की सीमाओं पर लंगर (सामुदायिक रसोई) चलाते हैं। तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले डेढ़ महीने से आंदोलन चल रहा है, जिन्हें आंदोलनकारियों द्वारा "किसान विरोधी" करार दिया गया है।
हरियाणा के एक पूर्व आईएएस अधिकारी एस के गोयल, जिन्होंने आंदोलन में किसानों का समर्थन किया है, कहते हैं कि समाज का हर वर्ग आंदोलनकारियों को मदद दे रहा है। गोयल ने पहले ही तीनों कृषि कानूनों के "प्रतिकूल प्रभावों" के बारे में किसानों को जागरूक करने के लिए भिवानी जिलों के आधा दर्जन से अधिक गांवों का दौरा किया है। गोयल ने कहा अगर आंदोलन लंबे समय तक जारी रहता है, तो यह सत्तारूढ़ वितरण के आधार को बहुत तेजी से नष्ट कर देगा। किसानों की भावनाओं और ठंड को ध्यान में रखते हुए, सरकार को जल्द से जल्द इन कृषि कानूनों को निरस्त करना चाहिए।