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Gandhi Peace Prize 2021: कौन हैं अक्षय मुकुल जिनकी किताब का जिक्र कर रही कांग्रेस
Gandhi Peace Prize 2021: द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, अपनी पुस्तक, गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया में अक्षय मुकुल लिखते हैं : “1926 में, जब हनुमान प्रसाद पोद्दार, जमनालाल बजाज के साथ अपनी पत्रिका "कल्याण" के लिए गांधी के पास उनका आशीर्वाद लेने गए, तो उन्हें महात्मा द्वारा दो सलाह दी गईं : कभी विज्ञापन स्वीकार न करें और कभी पुस्तक समीक्षा न करें।
Gandhi Peace Prize 2021: संस्कृति मंत्रालय ने गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की है। लेकिन कांग्रेस ने इसका सख्त विरोध किया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक ट्वीट में अक्षय मुकुल की 2015 की एक पुस्तक का जिक्र किया है कि इसमें गीता प्रेस और महात्मा गांधी के तूफानी संबंधों और उनके राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चल रही लड़ाइयों का वर्णन है।
ये किताब क्या है और कौन हैं अक्षय मुकुल
अक्षय मुकुल 23 साल से अधिक वर्षों तक पत्रकार थे और उन्होंने द टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, पायनियर और एशियन एज में काम किया है। उन्होंने राजनीति, शिक्षा और संस्कृति को कवर किया है। उनकी पुस्तकें - गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया और राइटर, रिबेल, सोल्जर, लवर : द मेनी लाइव्स ऑफ अज्ञेय, बहुचर्चित हैं। मुकुल को रामनाथ गोयनका पुरस्कार, अट्टा गलता पुरस्कार, शक्ति भट्ट पुरस्कार, टाटा लिट लाइव पुरस्कार और क्रॉसवर्ड पुरस्कार मिल चुके हैं। वह न्यू इंडिया फाउंडेशन, होमी भाभा और जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल फंड फेलोशिप पा चुके हैं।
गीता प्रेस पर पुस्तक
द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, अपनी पुस्तक, गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया में अक्षय मुकुल लिखते हैं : “1926 में, जब हनुमान प्रसाद पोद्दार, जमनालाल बजाज के साथ अपनी पत्रिका "कल्याण" के लिए गांधी के पास उनका आशीर्वाद लेने गए, तो उन्हें महात्मा द्वारा दो सलाह दी गईं : कभी विज्ञापन स्वीकार न करें और कभी पुस्तक समीक्षा न करें। पोद्दार ने इस सलाह को स्वीकार किया और आज भी "कल्याण" और "कल्याण कल्पतरु" विज्ञापन या पुस्तक समीक्षा नहीं करते हैं।” वे आगे कहते हैं : “हरिजनों के लिए मंदिर प्रवेश और पूना पैक्ट जैसे जाति एवं सांप्रदायिक मुद्दों पर गहरी असहमति की एक श्रृंखला के बाद, गीता प्रेस और महात्मा के बीच संबंध तेजी से उग्र हो चले। अस्पृश्यता पर पोद्दार के विचारों को बदलने के गांधी के सर्वोत्तम प्रयास विफल रहे। गांधी के खिलाफ पोद्दार का कटाक्ष 1948 तक कल्याण के पन्नों में जारी रहा।
मुकुल ने लिखा है
गीता प्रेस ने महात्मा की हत्या पर चुप्पी बनाए रखी। जिस व्यक्ति का आशीर्वाद और लेखन कभी "कल्याण" के लिए इतना महत्वपूर्ण था, उसके पन्नों में उनके बारे में एक भी उल्लेख नहीं मिला। अप्रैल 1948 में पोद्दार ने गांधी के साथ अपनी विभिन्न मुलाकातों के बारे में लिखा।" रिपोर्ट में लिखा है कि पोद्दार और गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंदका उन 25,000 लोगों में शामिल थे, जिन्हें 1948 में गांधी की हत्या के बाद गिरफ्तार किया गया था। पुस्तक में लिखा है कि गिरफ्तारी के बाद जी.डी. बिड़ला ने दोनों की मदद करने से इनकार कर दिया, और यहां तक कि जब सर बद्रीदास गोयनका ने उनका केस उठाया तो विरोध भी किया।