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बैसाखी पर कोरोना का ग्रहण: इस बार स्वर्ण मंदिर का बदला नजारा, ऐसे मनाएंगे पर्व
हर साल 13 अप्रैल को मनाई जाने वाली पंजाब के प्रमुख त्योहारों में से एक बैशाखी इस बार फिकी रहेगी। इसकी वजह खराब मौसम की वजह से गेहूं की बालियां पकने में देरी नहीं बल्कि, कोरोना और इसकी वजह से पंजाब में लगाया गया लॉकडाउन है। पंजाब के विभिन्न गुरुद्वारा और मंदिरों में संगत के स्नान और आयोजनों पर रोक लगा दी गई है।
दुर्गेश पार्थ सारथी
अमृतसर: हर साल 13 अप्रैल को मनाई जाने वाली पंजाब के प्रमुख त्योहारों में से एक बैसाखी इस बार फिकी रहेगी। इसकी वजह खराब मौसम की वजह से गेहूं की बालियां पकने में देरी नहीं बल्कि, कोरोना और इसकी वजह से पंजाब में लगाया गया लॉकडाउन है। पंजाब के विभिन्न गुरुद्वारा और मंदिरों में संगत के स्नान और आयोजनों पर रोक लगा दी गई है।
वीडियो कांफ्रेंसिंग से जत्थेदार ने जारी किया संदेश
सिख धर्म के प्रमुख तख्तों में से एक श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने तीन जत्थेदारों के साथ बैठक कर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संगत को संदेश जारी किया। दो दिन पहले जारी इस संदेश में उन्होंने कहा कि कोराना वायरस संभावित खतरों से बचने के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वहज से इस बार सामूहिक तौर पर बैशाखी नहीं मनाई जाएगी। जत्थेदार ने संगत से अपील की कि किसी सरोवर या सार्वजनिक स्थान पान जाने की बजाय घर पर ही स्नान आदि कर पाठ करें और बैसाखी मनाएं।
एसजीपीसी ने भी जारी किया संदेश
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के (गोल्डन टेंपल) अमृतसर के प्रधान जत्थेदार गोबिंद सिहं लोगोंवाल ने भी संदेश जारी किया। संगत के नाम जारी संदेश में उन्होंने कहा कि कोरोना की वजह से इसबार बैशाखी का सामूहिक आयोजन नहीं किया जा रहा है। संगत से अपील है कि वह अपने घरों में ही रह कर बैशाखी मनाएं।
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दुर्ग्याणा मंदिर प्रबंधन ने भी जारी किया संदेश
अमृतसर प्रमुख मंदिरों में से एक श्री दुर्ग्याणा मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित बालकृष्ण ने श्रद्धालुओं के नाम संदेश जारी कर घर में ही रह कर बैशाखी मनाने को कहा। मंदिर प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष रमेश शर्मा ने कहा कि इतिहास में शायद यह पहला ऐसा मौका है जब बैशाखी का आयोजन नहीं किया जा रहा है। इसके साथ ही अमृतसर के श्री रामतीरथ, शिवाला मंदिर, माता मंदिर सहित अन्य प्रमुख मंदिरों के पुजारियों और प्रबंधकों ने लोगों संदेश जारी कर घरों में रहने बात कही है।
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ
कारोबारी बंता, इंद्रपाल सोहल, रामशरण सोहल, आदि का कहना है कि यह ऐसा पहला मामला है जब बैशाखी पर मेले आदि का आयोजन नहीं हो रहा है। इस साल कोरोना की वजह से सब बंद है। उन्होंने कहा कि पंजाब में जब आतंकवाद अपने चरम पर था, तब भी मेले, मंदिर और गुरुद्वारों में जाने पर कोई रोक नहीं थी। लोग दरबार साहिब (गोल्डन टेंपल) और दुर्ग्याणा मंदिर के सरोवर में स्नान कर बैशाखी मनाते थे। मुटियारें भंगड़े और गिद्दे डालती थी। लोग मेले से जलेबियां आदि खरीदते और खाते थे। लेकिन इस साल रौनक फीकी है। कारोबारियों का कहना है कि बैशाखी के दिन अच्छा खासा कारोबार होता था, लेकिन इसबार सब कुछ बंद है।
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सिख धर्म में बैशाखी का महत्व
पंजाब और हरियाणा के किसान फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियां मनाते हैं। इसीलिए बैशाखी पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है। यह रबी की फसल के पकने की खुशी का भी प्रतीक है। बैशाखी के दिन 13 अप्रैल 1699 को सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। बैशाखी पारम्परिक रूप से हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाई जाती है। यह सिख और हिन्दुओं दोनों के लिए महत्वपूर्ण त्योहार है।
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