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गुजरात निकाय चुनावः ओवैसी का परचम, क्या एकजुट हो रहे गुजरात के मुसलमान

ओवैसी की पार्टी ने गुजरात में पहली बार निकाय चुनाव में 21 प्रत्याशी उतारे और उसके लिए बेहतर बात यह रही कि उसके नौ प्रत्याशी जीत गए। गुजरात में ओवैसी के लिए इसे मजबूत स्थिति कहा जाएगा और यह भाजपा की बेचैनी बढ़ाने के लिए काफी है।

Dharmendra kumar
Published on: 2 March 2021 8:54 PM IST
गुजरात निकाय चुनावः ओवैसी का परचम, क्या एकजुट हो रहे गुजरात के मुसलमान
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असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की यह जीत मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण और कांग्रेस के लिए मुस्लिम वोट बैंक खिसकने का संकेत है

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: गुजरात निकाय चुनाव में भाजपा की जबरदस्त सफलता से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बेहद खुश हैं। कांग्रेस और आप की स्थिति पर भी लोगों की निगाह है, लेकिन इस बड़े परिदृश्य को गौर से देखें तो भाजपा के दिल की धड़कन वाले इस राज्य में असद उद दीन ओवैसी की एंट्री चौंकाने वाली है। बेशक ये एक दस्तक है लेकिन भाजपा के लिए खतरे की घंटी है।

ओवैसी की पार्टी ने गुजरात में पहली बार निकाय चुनाव में 21 प्रत्याशी उतारे और उसके लिए बेहतर बात यह रही कि उसके नौ प्रत्याशी जीत गए। गुजरात में ओवैसी के लिए इसे मजबूत स्थिति कहा जाएगा और यह भाजपा की बेचैनी बढ़ाने के लिए काफी है।

इस निकाय चुनाव में अगर मुस्लिमों के प्रदर्शन की नजर से देखा जाए तो गुजरात के निकाय चुनाव में ओवैसी की एंट्री ने ही भाजपा को रणनीतिक दृष्टि से मुसलमानों को हाशिये पर रखने या परहेज करने की जगह कुछ सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी खड़े करने पर मजबूर किया। जबकि कांग्रेस ने भी 24 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे जिसमें बीस को जीत मिली।

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Muslims Voters in Gujarat

विधानसभा चुनावों में रणनीति बदलने के लिए मजबूर हो सकती है बीजेपी

हालात ये हैं कि गुजरात निकाय चुनाव में वर्तमान में बेशक भाजपा और कांग्रेस बड़ी पार्टियों के रूप में नजर आ रही हैं, लेकिन हैदराबादी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की यह जीत मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण और कांग्रेस के लिए मुस्लिम वोट बैंक खिसकने का संकेत है। भाजपा को भी आगे विधानसभा चुनावों में अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर कर सकता है।

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भरूच जिले की स्थानीय निकाय की 320 सीटों में से भाजपा को 31 मुस्लिमों को अपना प्रत्याशी बनाना पड़ा, जबकि गुजरात में भाजपा कट्टर हिंदुत्ववादी एजेंडे के साथ मुस्लिम उम्मीदवारों से परहेज करती रही है। लोकसभा चुनाव हो अथवा विधानसभा का चुनाव भाजपा ने पिछले 3 दशक में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को इस राज्य से मैदान में नहीं उतारा। मुस्लिम प्रत्याशियों की जीत भाजपा के राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के लिए भी झटका है। वह मुस्लिम समुदाय को भाजपा के पक्ष में लाने में नाकाम रहा।

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आदिवासी वोटों पर असर

एआईएमआईएम के गठबंधन में भारतीय ट्राइबल पार्टी के शामिल होने से भी आदिवासी वोटों पर असर पड़ा है। कांग्रेस इस गठबंधन से चिंतित है और भाजपा को भी इस गठबंधन के चलते भविष्य की राजनीति में तगड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। गुजरात के मुसलमानों का यह मानना है कि अपने हक के लिए भाजपा से लड़ने पर उन्हें पाकिस्तानी और देशद्रोही बताया जाता है जबकि कांग्रेस से लड़ने पर आरएसएस का दलाल।

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Dharmendra kumar

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