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महाशिवरात्रि पर कश्मीरी पंडितों ने मनाया 'हेरथ', जानिए इसकी खासियत और अर्थ

पूरे देश में महाशिवरात्रि  का त्योहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. जहां पूरे देश में जहां एक तरफ महाशिवरात्रि  मनाई जा रही है, वहीं दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर में इसके लिए खास तैयारियां चल रही हैं ।महाशिवरात्रि का त्योहार जम्मू कश्मीर में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।

suman
Published on: 21 Feb 2020 1:15 PM IST
महाशिवरात्रि पर कश्मीरी पंडितों ने मनाया हेरथ, जानिए इसकी खासियत और अर्थ
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नई दिल्ली: पूरे देश में महाशिवरात्रि का त्योहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। जहां पूरे देश में जहां एक तरफ महाशिवरात्रि मनाई जा रही है, वहीं दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर में इसके लिए खास तैयारियां चल रही हैं ।महाशिवरात्रि का त्योहार जम्मू कश्मीर में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।

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'हेरथ' का अर्थ

कश्मीरी पंडित महाशिवरात्रि को हेरथ के तौर पर मनाते हैं। हेरथ को जम्मू कश्मीर के संस्कृति को संरक्षित करने का त्योहार माना जाता है।जम्मू-कश्मीर में भी खास तैयारियां चल रही हैं। कश्मीरी पंडितों का यह सबसे बड़ा त्योहार होता है और देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा इसे यहां ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। कश्मीरी पंडित इसे 'हेरथ' के रूप में मनाते हैं। हेरथ शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका हिंदी अर्थ हररात्रि या शिवरात्रि होता है।

हेरथ शब्द संस्कृत से लिया गया है। हेरथ का हिंदी अर्थ होता है हररात्रि। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो महाशिवरात्रि। महाशिवरात्रि के दिन कश्मीरी पंडित देवों के देव महादेव को उनके परिवार के साथ घर में स्थापित करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन महादेव को उनके परिवार के साथ घर में स्थापित करने से वह वटुकनाथ मेहमान बनकर रहते हैं। कश्मीरी पंडितों के लिए यह त्योहार काफी खास होता है।पूरे कश्मीर में हेरथ पर्व की तैयारी लगभग एक महीने पहले ही शुरू कर दी जाती है।

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खास बात

इस त्योहार के दिन पूजन में प्रयोग में लाए जाने वाले बर्तनों को प्रतीकों के रूप में प्रयोग किया जाता है। उपलब्धता के अनुरूप कई घरों में पुराने समय के पीतल के बर्तनों को प्रयोग में लाते हैं। इस पूजन व घरों में बनने वाले व्यंजनों में कमल ककड़ी और गांठगोभी काफी प्रमुख होती है। जम्मू-कश्मीर में इसे मोंजी और नदरू के नाम से जाना जाता है।

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विधि

मान्यता अनुसार, हेरथ के दिन भगवान शिव को उनके संपूर्ण परिवार के साथ घर में स्थापित किया जाता है। कलश और गागर में अखरोट भरे जाते हैं. मान्यता है कि अखरोट चारों वेदों का प्रतीक है। सोनिपतुल में इसकी पूजा की जाती है। इसके बाद स्नान करके भगवान शिव का फूल, बेलपत्र, धतूरा से अभिषेक किया जाता है। इसके बाद सभी एक-दूसरे को शुभकामनाएं देकर महाशिवरात्रि का पर्व पूरा करते हैं।

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