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हिमाचल को याद आईं अमेरिकी युवती कायला मूलर

raghvendra
Published on: 1 Nov 2019 4:12 PM IST
हिमाचल को याद आईं अमेरिकी युवती कायला मूलर
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शिमला: आईएस के सरगना अबु अल बकर बगदादी की मौत का जश्न हिमाचल प्रदेश के मैकलियोडगंज में भी देखने को मिला। दरअसल बगदादी ने मैकलियोडगंज में मानवाधिकार संरक्षण पर काम करने वाली अमेरिकी युवती कायला मूलर का 2013 में अपहरण कर लिया था। कायला पर तरह तरह के अत्याचार किए गए और 2015 में उसकी हत्या कर दी गई थी। अमेरिका ने कायला मूलर के नाम से अति गोपनीय ऑपरेशन को अंजाम दे कर चार साल के बाद उसकी हत्या का बदला ले लिया।

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बगदादी के खात्मे के बाद स्थानीय लोगों सहित निर्वासित तिब्बतियों में खुशी देखी गई। कायला मूलर ने छोटी सी उम्र में मानवाधिकारों की लड़ाई लडऩी शुरू कर दी थी। वर्ष 2010 में वह धर्मशाला आई और यहां निर्वासित तिब्बतियों के लिए लड़ाई लडऩी शुरू कर दी। वह तिब्बतियों ही नहीं, मानवाधिकार के अन्य मामलों की भी बड़ी पैरोकार बन गई थी। मूलर ने यहां दलाईलामा कार्यालय से निकलने वाली ‘कांटेक्ट’ मैगजीन के लिए लेख लिखने भी शुरू किए थे। उसने चीन को तिब्बती अधिकारों का हनन न करने की सलाह देते हुए निर्वासित तिब्बतियों की आवाज बुलंद की। कायला ने दलाईलामा से भी विश्व शांति की प्रेरणा ली। उसके बाद जब वह साल 2013 में सीरिया गई और एक अस्पताल में पीडि़तों की मदद कर रही थी, उस दौरान आईएस के लड़ाकों ने उसका अपहरण कर लिया और अबु अल बक्र बगदादी के हवाले कर दिया।

साल 2013 और 15 के बीच कायला मूलर के कुछ संदेश भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए, जिसमें उसने आईएस की गिरफ्त में नारकीय जीवन जीने की कहानी बयां की और सहयोग की मांग की। साथ ही अपने साथ आईएस सरगना बगदादी द्वारा किए गए अमानवीय अत्याचारों की कहानी भी बताई। सुपर पावर होने के बाद बावजूद अमेरिका कायला मूलर को बचा नहीं सका। 2015 में मात्र 26 साल की उम्र में कायला की हत्या कर दी गई। 14 अगस्त, 1988 को अमेरिका के प्रेसकोट, एरिजोना में जन्मी कायाला मूलर को ह्यूमेनिटेरियन एड वर्कर का भी खिताब हासिल था।

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चार साल बाद मिला न्याय

निर्वासित तिब्बत सरकार के डिप्टी स्पीकर येसी फुंत्सोक का कहना है कि अमेरिका भले ही अपनी बेटी को बगदादी से नहीं बचा सका, लेकिन अपने देश की बेटी के नाम से ऑपरेशन का संचालन कर चार साल के बाद मूलर का बदला लेने में जरूर कामयाब हो गया है। बगदादी के खात्मे के बाद निर्वासित तिब्बतियों में जहां खुशी की लहर है, वहीं उन्हें आज भी कायला मूलर अपने बीच में ही नजर आ रही हैं। मूलर के योगदान को आज भी याद किया जाता है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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