मै और मोदी जीः नहीं भूलूंगा वो इंटरव्यू, हो गया था कद का अहसास

मैंने बाद में गांधीनगर फ़ोन करके ओ.पी. सिंह को धन्यवाद दिया। नरेंद्र मोदी से बात करना, सवाल पूछना और हर सवाल के जवाब में गुजरात की उपलब्धियों को लाना, सवालों से कन्नी नहीं काटना, चुभते हुए सवालों के चुभते हुए जवाब देना तारीफ़ की बात कही जानी चाहिए।

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Published on: 17 Sep 2020 2:03 PM GMT
मै और मोदी जीः नहीं भूलूंगा वो इंटरव्यू, हो गया था कद का अहसास
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I will not forget that interview of Narendra Modi, had realized his stature

योगेश मिश्र

हमें लगता है कि किसी भी नेता का साक्षात्कार लेना ही पर्याप्त होता है। यही नहीं, यह भी लगता है कि साक्षात्कार में कुछ ऐसे सवाल पूछे जाने चाहिए जो थोड़े चुभने वाले हों। जो जनता की ओर से पूछे जाने चाहिए। जिन्हें जनता अपने नेता या सेलिब्रिटी से पूछना चाहती है। लेकिन पहली बार मुझे लगा कि साक्षात्कार देने वाले के मूड के बारे में भी लिखा जा सकता है। लिखा जाना चाहिए। इससे साक्षात्कार देने वाले के मीडिया से रिश्ते व उसकी वाकपटुता समेत तमाम चीजें समझी जा सकती हैं।

इंटरव्यू लेने वालों से बातचीत बीबीसी का अनूठा प्रयोग

आज जब BBC देख रहा था तो यह प्रयोग देखकर ख़ुशी हुई। BBC ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार जिन कुछ पत्रकारों ने पहले लिया है उन लोगों से बातचीत करके स्टोरी तैयार की है। हालाँकि उसमें गुजरात का कोई पत्रकार नहीं है।

अगर इसमें कोई गुजरात का पत्रकार होता तो शायद कुछ और चीज़ें उभर कर सामने आतीं। क्योंकि नेता और सेलिब्रिटी एकाध बार मिलने में इतने आर्टिफिशियल रहते हैं कि उनके रंग ढंग को पहचानना, मीडिया से उनके रिश्तों को जज करना और उनकी वाकपटुता के बारे में अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है।

जो पत्रकार निरंतर संपर्क में रहते हैं, वे ज़्यादा अच्छा बता सकते हैं। लेकिन फिर भी यह एक अच्छा और अभिनव प्रयोग है।

जब मुझे मोदी का साक्षात्कार लेने का मौका मिला

मुझे भी नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार लेने का अवसर दिसम्बर 2006 के अंतिम दिनों में मिला था। यह वह समय था जब राजनाथ सिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुए थे। उनके अध्यक्ष होने के बाद पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक लखनऊ में आयोजित की गई थी। उन दिनों मैं आउटलुक में काम करता था। मुझे नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार लेने का ज़िम्मा दिया गया।

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नरेंद्र मोदी उस समय लखनऊ के ताज होटल में रुके थे। मैं सुबह ही ताज होटल पहुँच गया। जुगत करने लगा कि किसी तरह नरेंद्र मोदी से थोड़ा समय मिल जाये। मैंने उनके निकट सहायक ओ.पी सिंह से संपर्क साधा। वह मूलत: उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाक़े के रहने वाले हैं। यह हमने पता कर लिया था।

इस के बाद हमारी आपस में बातचीत शुरू हो गई। हम लोग ताज की लॉबी में ही थे। ओ.पी. सिंह ने हमारी जिज्ञासा और कोशिश देखते हुए यह आश्वस्त किया कि मुझे नरेंद्र मोदी जी का साक्षात्कार लेने का अवसर मुहैया करा देंगे। उनके आश्वासन पर मैं चुपचाप लॉबी में बैठ गया।

संपादक के फोन से हुआ दिमाग खराब

तब तक दिल्ली से हमारे संपादक विनोद मेहता जी का फ़ोन आया कि नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार अंग्रेज़ी आउटलुक की दिल्ली से आयी हुई हमारी एक सहयोगी को मिल गया है ।

मुझे काटो तो खून नहीं। मेरा तो दिमाग़ ख़राब हो गया। सुबह से की गई मेहनत बेकार हो गयी। ओ.पी.सिंह और हम आस पास ही बैठे थे। मैं अपनी झल्लाहट रोक नहीं पाया।

मैंने उनसे कहा कि भाई आप तो मुझे इंटरव्यू का आश्वासन दे रहे थे। पर अंग्रेज़ी आउटलुक की दिल्ली से आयी हमारी सहयोगी को आपने साक्षात्कार दिलवा दिया। यह मेरे लिए दुख की बात है।

मेरी नाराज़गी ओ पी सिंह के समझ में आयी। उन्होंने बहुत आश्वस्त भाव से कहा कि मैं भरोसे से कह सकता हूँ कि अभी तक उन्होंने किसी को साक्षात्कार नहीं दिया है। हम पर यक़ीन कीजिये। चिंता मत कीजिये। आपको इंटरव्यू लेने का मौक़ा मिलेगा।

ओपी सिंह ने मोदी के साथ गाड़ी में बैठाया

लेकिन मेरे लिए दिल्ली के संपादक का संदेश और ओपी सिंह की बात में तालमेल बिठाना मुश्किल हो रहा था। थोड़ी देर में नरेन्द्र मोदी जी अपने कमरे से बाहर निकलकर गाड़ी की तरफ़ बढ़ने लगे। उन्हें सरस्वती शिशु मंदिर जाना था। जहाँ पर कार्यक्रम था। ओ.पी.सिंह ने मुझे भी गाड़ी में उनके साथ बैठा दिया।

मैंने सवाल पूछना शुरू कर दिया। ताज होटल से सरस्वती शिशु मंदिर की दूरी तो वैसे थोड़ी है। पर VVIP मूवमेंट के नाते मुझे ऐसा लग रहा था कि वह वहाँ बहुत जल्दी पहुँच जाएंगे। लिहाज़ा मैंने सवाल पूछने की गति तेज कर दी। लेकिन नरेंद्र मोदी हर सवाल का जवाब बहुत आश्वस्त भाव से और विस्तार से दे रहे थे।

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वह किसी सवाल को इधर उधर नहीं कर रहे थे। सवाल शुरू करने से पहले उन्होंने यह ज़रूर कहा कि आउटलुक कम्युनिस्ट मैगज़ीन है। कम्युनिस्टों के बारे में मैंने दीन दयाल उपाध्याय जी के विचार पहले ही पढ़ रखे थे।

मैं मन ही मन मोदी जी के वाक्य व दीनदयाल जी के विचार में तालमेल बिठाने लगा। सात-आठ मिनट में नरेंद्र मोदी की गाड़ी सरस्वती शिशु मंदिर में प्रवेश कर गयी। पर मेरा इंटरव्यू पूरा नही हुआ था।

थोड़ा समय और मांगा तो सहर्ष दिया

मैं चाहता था थोड़ा सा समय मुझे और मिल जाये। मैंने उनसे आग्रह किया। वह तैयार हो गये। पंडाल में जाने की जगह हम दोनों एक टेंट में जा बैठे। क़रीब आठ नौ मिनट बात हुई होगी कि दैनिक अख़बारों के हमारे तमाम साथियों को पता चल गया कि नरेंद्र मोदी सरस्वती शिशु मंदिर के परिसर में प्रवेश कर गये हैं।

वह उन दिनों खबर के लिहाज़ से बहुत हॉट थे। दूसरे पत्रकार साथियों के आने के बाद हमें यह भय घेरने लगा कि कहीं नरेंद्र मोदी जी ने इन लोगों के एक एक सवाल का जवाब दे दिया तब हमारे इंटरव्यू का मतलब ख़त्म हो जायेगा।

सबके आ जाने के बाद हमने सवाल पूछना बंद कर दिया। दूसरे पत्रकार साथियों के सवालों के जवाब में नरेंद्र मोदी ने यह रट पकड़ ली कि गुजरात आइये। गुजरात आइये। इस जवाब से दैनिक अख़बारों में काम करने वाले साथियों का काम नहीं चलने वाला था।

हर सवाल का था जवाब

इस इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी से गुजरात के विकास, उनकी सरकार के चार साल पूरे होने को लेकर, भगवा सरकार में विकास का संतुलन कैसे बना कर रखते हैं, विकास एजेंडे में किसान कहाँ है, सरदार सरोवर परियोजना, केंद्रीय राजनीति करने की मंशा व संभावना, अगले गुजरात चुनाव में आपका मुद्दा क्या होगा, अमेरिका ने आपको वीज़ा नहीं दिया, गुजरात के दंगों पर आपको तकलीफ़ होती है, गुजरात से दिल्ली कब आयेंगे जैसे तमाम सवाल हमने पूछे।

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हमने कुछ उद्योगपतियों के संरक्षण देने का सवाल भी पूछा। इसका उत्तर देते समय वह ज़रूर कठोर हुए, “कहा इसका जो जवाब दूँगा, आप छाप देंगे। दें।” मैंने कहा, “सर, यदि रिकार्ड पर देंगे तो ज़रूर छपेगा।” हालाँकि सारा इंटरव्यू रिकार्ड पर ही था। फिर भी। उन्होंने कहा,” आउटलुक का क्या एजेंडा है, मुझे मालूम नहीं। लेकिन मेरे प्रदेश में विरोधी दल ने भी कभी ऐसे आरोप नहीं लगाये, जो सवाल आप पूछ रहे हैं।”

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हर सवाल का उनके पास जवाब था। हाज़िर जवाब। जिन सवालों को वह टालना चाहते थे, उन्हें वह बहुत सलीक़े से हास्य व्यंग्य की ओर ले कर चले जा रहे थे। इस साक्षात्कार में नरेंद्र मोदी ने एक सवाल के जवाब में यह माना था कि,”मेहनत करने में कसर नहीं रखूँगा। हो सकता है कि गलती हो जाये। लेकिन बद इरादे से काम नहीं होगा।”

किसी अखबार में नहीं था इंटरव्यू

अपनी सरकार को नंबर देने का जवाब उन्होंने कुछ यूं दिया,”अपनी सरकार व अपनी उपलब्धियों पर खुद को नंबर देना पसंद नहीं करूँगा। मुझे खुद का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए। आप सब मित्रों को करना चाहिए, पर आप सब लोग करते नहीं हैं।”

मेरे लिए नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार मिल जाना बहुत था। उन्होंने मुझे गुजरात आने का निमंत्रण दिया, जो वह सबको दे रहे थे। दूसरे दिन के अख़बार मैंने सुबह उठ कर बहुत तेज़ी से देखा कि कहीं नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार तो नहीं छप गया है। पर हमें नहीं मिला।

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मैं तो साप्ताहिक पत्रिका में काम करता था। कहीं भी इनमें से किसी भी सवाल का जवाब छप जाने का मतलब मेरे लिए उसका बेकार हो जाना था। खैर मैंने जब दिल्ली आफिस को बताया कि मेरा इंटरव्यू हो गया है तो हमारे संपादक को बड़ी राहत मिली।

ओपी सिंह को धन्यवाद दिया

मैंने बाद में गांधीनगर फ़ोन करके ओ.पी. सिंह को धन्यवाद दिया। नरेंद्र मोदी से बात करना, सवाल पूछना और हर सवाल के जवाब में गुजरात की उपलब्धियों को लाना, सवालों से कन्नी नहीं काटना, चुभते हुए सवालों के चुभते हुए जवाब देना तारीफ़ की बात कही जानी चाहिए।

क्योंकि भारतीय राजनीति में वह सबसे लंबे समय तक अस्पृश्य बना कर रखा गये। सबसे लंबे मीडिया ट्रायल के दौर से वह गुजरे। यदि लोकतंत्र के स्तंभों पर यक़ीन किया जाये तो हर स्तंभ से उन्हें लेट लतीफ़ क्लीन चिट मिली।

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जनता ने भी उन्हें प्रचंड जनादेश दो बार देकर लोकतंत्र में भी अलग जगह दी। जनता की अदालत से दो बार स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाने का काम कर दिखाने वाले वह ग़ैर कांग्रेसी पहले नेता हैं। अब सिर्फ़ इतिहास को उनका मूल्यांकन करना शेष है। अगली मुलाक़ात में कैसे दिखे मोदी? पढ़ें अगली बार।

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