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महिलाओं की धार्मिक भावनाओं को उजागर करते इबादतगाह
महिलाओं के बारे यह बात भली भांति प्रचलित है कि वे पुरुषों की अपेक्षा अधिक धार्मिक भावना की होती हैं। हलांकि उनकी यह धार्मिकता पूजा-पाठ या व्रत त्योहार तक ही सीमित होती है।
दुर्गेश पार्थी सरथी
महिलाओं के बारे यह बात भली भांति प्रचलित है कि वे पुरुषों की अपेक्षा अधिक धार्मिक भावना की होती हैं। हलांकि उनकी यह धार्मिकता पूजा-पाठ या व्रत त्योहार तक ही सीमित होती है। इसके विपरीत कुछ औरतों ने अपनी धार्मिक आस्था को यहीं तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने इसे धार्मिक इमारतों को सुदृढ़ स्वरूप प्रदान करके अविस्मरणीय बना दिया।
देश के कई भागों में स्थित ये इमारतें देशी-विदेशी सैलानियों व श्रद्धालुओं के लिए आज भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
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लखनऊ के तहसीन गंज इलाके में स्थित जुम्मा मस्जिद जिसे जामा मस्जिद भी कहा जाता है, मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए अगाध आस्था का केंद्र है। दो मीनारों और तीन गुम्बदों वाली इस भव्य इमारत का निर्माण वैसे तो अवध के नवाब मोहम्मद अली शाह (1837-42) ने शुरू करवाया था, मगर इससे पूर्णता प्रदाान करने का श्रेय शाही बेगम मलका जहां को जाता है। इसलिए इसे बेम-बहु मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है।
इमामबाड़ो की नगरी लखनऊ के गोलागंज इलाके का जमानिया इमामबाड़ा भी एक महिला ने बनवाया था। बताया जाता हे कि अवध के नवाब नसीरुद्दीन हैदर (1827-37) की बेगम मलका जमानियाने इसे निर्मित करवाया कर धर्म के प्रति अपनी आस्था को अमर कर दिया। ध्वस्त हुए इस इमामबाड़े प्रति आज भी लोगोंकी आस्था है। इस इमामबाड़े की वास्तुशैली भी काबिलेगौर है।
हिंदू धर्म में विशे स्थान रखने वाला गुजरात का सोमनाथ मंदिर अपने जमाने में कला, समृद्धि व वैभव के लिए विश्व स्तर पर चर्चित रहा। इस आध्यातिम्क इमारत को विदेशी आक्रमाकारियों क्षरा पांच बार लूटा व ध्वस्त किया गया था। होलकर वंश की महारानी अहिल्याबाई ने इस श्रद्धा कें केंद्र का छठीबार निर्माण करवाया। हलांकि यह मंदिर प्रचीन मंदिर से थोड़ा हट कर है। इसकी भी कलात्मकता बेजोड़ है।
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इसी प्रकार काशी स्थित विश्वानाथ मंदिर भी है। यह अपनी निर्माण शैली के कारण उत्तर प्रदेश का स्वर्णमंदिर भी कहा जाता है। वारणसी जैसे आध्यात्मिक नगर की पहचान इस मंदिर से है। यहां नित्यप्रति हजारों लाखों लोग शीश नवाते हैं। इस असीम आस्था के केंद्र की इमारत का निर्माण भी महारानी अहिल्याबाई ने 1771 में करवाया था। बाद में 1889 में महाराजा रणजीत सिंह ने उसके ऊपरी भाग को सोने के पत्तरों से मढ़वाया। इसकी निर्माण कला भी अपने आप में बेजोड़ है।
अयोध्या स्थित विशाल एवं भव्य कनक भवन किसी जमाने में सोने का हुआ करता था। बताया जाता है कि रामायण काल में यह महारानी कैकेयी का अति प्रिय महल था जिसे उन्होंने सीता जी को पहली बार ससुराल आगमन पर मुंह दिखाई में दिया था। कालांतर में यह भवन ध्वस्त हो गया था। फिर महाराजा विक्रमादित्य ने इसे बनवाया। बाद में आक्रमणकारी सैयद मसऊद सालार गाजी ने इसे नेस्तानाबूद कर दिया। इसके बाद टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुंवरी ने इसे नए सिरे से बनवाया। अयोध्याा दर्शनार्थ आने वालों की यात्रा तब तक सफल नहीं मानी जाती जब तक वे कनक भवन के दर्शन न कर लें।
इतिहास बताता है कि ग्यारहवीं सदी में कल्चुरि बंश की महारानी कल्हण देवी ने अपने राजकोष से पशुपति शिव मंदिर के लिए धन देने की अनुमति दी थी। इसी प्रकार 1278 में गंगराज तृतीय की पुत्री चंद्रादेवी ने अनंत वासुदेव के मंदिर का निर्माण कराया था।
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सातवीं सदी में चनीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा के दौरान भारत में अनेक ऐेसे मंदिर तथा मठों को देखा था जिनका निर्माण भारतीय राजाओं एवं महारानियों ने करवाया था। उत्तर प्रदेश के बलिया शहर में काली माता को समर्पित एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण श्रद्धा भावना से शनिचरी नाम की एक नर्तकी ने कराया था। इस मंदिर को लोग शनिचरी मंदिर के नाम से जानते हैं।
इसी तरह स्वर्ण मंदिर की नगरी अमृतसर में भी रानी का बाग स्थित एक ऐसा मंदिर है जिसका निर्माण एक महिला देवी माता लाल देवी ने 1956 में कराया था। इसे लोग माता मंदिर के नाम से जानते हैं। ऐसे ही देश के अन्य भागों में गई धार्मिक मंदिर व इमारते हैं जिन्हें निर्मित करवाने का श्रेय महिलाओं को जाता है।