ओडिशा में महिलाओं को संसद में 33% आरक्षण बना हकीकत, सबसे युवा सांसद 'चंद्राणी मुर्मू'

भुवनेश्वर से दिल्ली की रायसीना हिल तक का चंद्राणी का सफर एक परी कथा की तरह है। कुछ महीने पहले, चंद्राणी भी अन्य बेरोजगार लड़कियों की तरह नौकरी खोज रही थी। प्रतियोगिता परीक्षाएं में लक आजमा रही थी।

Vidushi Mishra
Published on: 2 Jun 2019 6:25 AM GMT
ओडिशा में महिलाओं को संसद में 33% आरक्षण बना हकीकत, सबसे युवा सांसद चंद्राणी मुर्मू
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नयी दिल्ली : भुवनेश्वर से दिल्ली की रायसीना हिल तक का चंद्राणी का सफर एक परी कथा की तरह है। कुछ महीने पहले, चंद्राणी भी अन्य बेरोजगार लड़कियों की तरह नौकरी खोज रही थी। प्रतियोगिता परीक्षाएं में लक आजमा रही थी। इससे पहले चंद्राणी 2017 में भुवनेश्वर स्थित एसओए विश्वविद्यालय से बी. टेक की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी। लेकिन चंद्राणी की किस्मत लोकसभा में उनका इंतजार कर रही थी।

संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव भले ही आज तक हकीकत न बन पाया हो, लेकिन 21 लोकसभा सीटों वाले ओडिशा ने 33 फीसद महिलाओं को संसद भेजने का संकल्प बखूबी निभाया और राज्य से विजयी रही सात महिला सांसदों में चंद्राणी मुर्मू का नाम खास तौर से उल्लेखनीय है, जो 17वीं लोकसभा की सबसे युवा सदस्य हैं।

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दो बरस पहले मैकेनिकल इंजीनियर की पढ़ाई करने के बाद चंद्राणी किसी सरकारी महकमे में नौकरी करके अपने भविष्य को सुरक्षित बनाने की तैयारी कर रही थी, लेकिन किसे पता था कि उसके हाथ में ‘राजनीति’ की रेखा है, जो उसे दिल्ली के विशाल संसद भवन तक पहुंचाकर उसका ही नहीं बल्कि उसके पूरे आदिवासी इलाके का भविष्य बेहतर बनाने का रास्ता दिखाएगी।

कुछ समय पहले भीषण तूफान के कारण सुर्खियों में रहा ओडिशा इस बार चंद्राणी की वजह से खबरों में है। दरअसल राज्य के क्योंझर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली चंद्राणी 25 बरस 11 महीने की उम्र में यह उपलब्धि हासिल करके दुष्यंत चौटाला का रिकार्ड तोड़ने में कामयाब रहीं जो 26 बरस की उम्र में पिछली लोकसभा के सबसे युवा सांसद थे।

चंद्राणी ने 2017 में भुवनेश्वर की शिक्षा ओ अनुसंधान यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री हासिल की और प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कर रही थीं, जब उनके मामा ने अचानक से चुनाव लड़ने के बारे में पूछा। चंद्राणी का कहना है कि वह अपने लिए किसी अच्छे करियर की तलाश में थीं और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थीं।

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उन्होंने राजनीति में आने का इरादा कभी नहीं किया था, लेकिन क्योंझर महिला आरक्षित क्षेत्र था और बीजू जनता दल को किसी पढ़ी लिखी महिला उम्मीदवार की जरूरत थी। यह दोनो बातें चंद्राणी के हक में गईं। पढ़ा लिखा होना चंद्राणी के काम आया और अब यह युवा आदिवासी सांसद अपने क्षेत्र में शिक्षा के लिए काम करना चाहती है।

16 जून 1993 को जन्मी चंद्राणी के पिता संजीव मुर्मू एक सरकारी कर्मचारी हैं और अपनी बेटी के लिए भी कुछ ऐसा ही भविष्य चाहते थे, लेकिन मां उर्बशी सोरेन के जरिए उन्हें अपने नाना हरिहरन सोरेन की राजनीति की विरासत और समझ मिली, जो उन्हें संसद तक पहुंचाने का रास्ता हमवार करने में सहायक रही। हरिहरन सोरेन 1980 और 1984 में कांग्रेस के सांसद के रूप में क्योंझर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

उम्मीदवारी के लिए दाखिल किए गए नामांकन के पर्चों में सभी को अपनी चल और अचल संपति की जानकारी देना जरूरी होता है। चंद्राणी के पास न बंगला है, न गाड़ी, न जमीन जायदाद और न ही लंबा चौड़ा बैंक बैलेंस। उनके पास किसी कंपनी के शेयर नहीं हैं और न ही कोई भारी भरकम बीमा पालिसी है।

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रकम के नाम पर उनके पास बीस हजार रूपए और दस तोला सोने के जेवर हैं, जो उनके माता पिता ने उन्हें दिए हैं। ऐसे में एक साधारण परिवार की इस लड़की का संसद तक पहुंचना किसी सपने के सच होने जैसा है और अपनी इस सफलता से आह्लादित चंद्राणी अपने क्षेत्र में कुछ नया करके जनता से मिली इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाना चाहती हैं।

भाषा

Vidushi Mishra

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