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सबसे ताकतवर मुल्क बनने का चीन का सपना अब कभी नहीं हो पाएगा पूरा, जानें क्यों

बता दें कि माइक पॉम्पियो और अमरीकी रक्षा मंत्री मार्क एस्पर के भारत दौरे पर 28 अक्टूबर को चीन के विदेश मंत्रालय का एक बयान आया था। जिसमें चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि अमरीकी विदेश मंत्री फिर वही झूठ दोहरा रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय संबंध के मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं। चीन ने कहा था कि भारत के साथ सीमा विवाद द्विपक्षीय मुद्दा है और किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के लिए कोई स्थान नहीं है। पॉम्पियो के दौरे और उनकी टिप्पणी को लेकर चीन की तरफ़ से दो कड़ी आपत्तियां आ चुकी हैं।एक भारत स्थित चीनी दूतावास की और दूसरी चीनी विदेश मंत्रालय की।

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Published on: 29 Oct 2020 11:12 AM IST
सबसे ताकतवर मुल्क बनने का चीन का सपना अब कभी नहीं हो पाएगा पूरा, जानें क्यों
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जब भारत में मोदी सरकार ने चीन की कम्पनियों पर रोक लगाकर उसकी इकोनामी पर सर्जिकल स्ट्राइक किया तो चीन की अकड़ ढीली पड़ने लगी।

नई दिल्ली: दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनने का चीन का सपना अब कभी भी पूरा नहीं हो पाएगा। भारत ने उसके सपने के चकनाचूर कर दिया है। चीन ने सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ विश्वासघात किया है। ये उसी का परिणाम है।

2012 में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपने मुल्क को दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनाने की बात कही थी। वह उसी दिशा में लगातार कदम उठाते जा रहे थे।

उन्हें पूर्ण विश्वास था कि दुनिया अब चीन के छोड़े गये अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को कभी भी रोक नहीं पाएगी। देश या व्यक्ति किसी के लिए भी अति उत्साह या सार्वभौमिक बनने की आतुरता विघटन को जन्म देती है।

चीन यही पर गच्चा खा गया। दरअसल चीन को शुरू से ही अपने देश की बढ़ती हुई ताकत का अंदाजा था, लेकिन वह दूसरी ओर भारत को अभी तक अपने पुराने नजरिये से ही देखता आ रहा था।

Rajnath Singh And S jaishankar मार्क एस्पर और माइक पॉम्पियो के साथ राजनाथ सिंह और एस जयशंकर(फोटो: सोशल मीडिया)

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चीन ने भारत को नेहरू युग वाला भारत समझने की भूल

उसने हमेशा यही सोचा कि भारत आज भी नेहरू युग में जी रहा है। भारत एक कमजोर राष्ट्र है। जो बात चीन कहेगा भारत उसमें केवल हां में हां मिलाया। यही पर चीन गलती कर बैठा।

उसको मालूम होना चाहिए था कि भारत आज नेहरू युग में नहीं बल्कि मोदी युग में जी रहा है। भारत की सेना पुराने ढर्रे पर काम करने वाली सेना अब नहीं रह गई है।

भारतीय सेना अब वो सेना नहीं रह गई है जिस पर चीन धोखे से वार कर देगा और वो अपनी पीठ सहलाते हुए उसे आगे बढ़ने के लिए रास्ता दे देगी बल्कि आज भारत की सेना इतनी ज्यादा ताकतवर हो गई है वह चीन के आगे खड़े होकर उसका बीच में ही रास्ता रोक सकती है।

इतना ही नहीं अगर चीन दो कदम आगे बढ़ेगा तो भारतीय सेना चार कदम आगे बढ़कर उसके इलाके पर ही कब्जा कर सकती है। असल में चीन को भारत की ताकत का सही अंदाजा उस वक्त हुआ जब गलवान घाटी में उसकी सेना का हमारे देश की सेना के साथ झड़प हुई थी।

गलवान घाटी की झड़प में चीन को हुआ भारत की असली ताकत का अंदाजा

चीन के सैनिक हथियारों से लैश थे जबकि हमारे सैनिक निहत्थे थे। उसके बावजूद हमारी सेना ने उन्हें धूल चटाने का काम किया था। इतना ही नहीं उसके बाद मोदी सरकार ने जब भारत में चीन की कम्पनियों पर रोक लगाकर उसकी इकोनामी पर सर्जिकल स्ट्राइक किया तो चीन की अकड़ ढीली पड़ने लगी।

चीन अब समझ गया कि भारत से दुश्मनी लेकर उसका दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क बनने का सपना अब कभी भी पूरा नहीं हो पायेगा। जो चीन पहले बात-बात पर भारत को धमकी देता था कि वह उसे तबाह कर देगा। राफेल आने के बाद उसका ये भ्रम भी दूर हो गया।

उसे मालूम हो गया है कि भारत अब पहले जैसा नहीं रह गया है। आज आज आर्थिक और सामरिक रूप से उसकी ताकत कई गुना बढ़ी है। उसे अपने मुल्क की सुरक्षा करना आता है।

उसे अपने मुल्क की रक्षा करने के लिए दुनिया के दूसरे मुल्कों के आगे हाथ नहीं जोड़ना पड़ेगा बल्कि वह अपने राष्ट्र की सुरक्षा करने में खुद ही सक्षम है। इसलिए चीन अब युद्ध कीबात छोड़कर बातचीत के रास्ते पर आ गया है।

उसने 2+2 वार्ता के दौरान बीते दिनों ये भी देख लिया है कि अमेरिका जैसे ताकतवर देश भारत के साथ काम करने को आतुर है। वह उसके साथ मिलकर रहने में ही अपना फायदा देख रहे हैं।

Indian Army भारतीय सेना(फोटो:सोशल मीडिया)

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संघ की विचारधारा बदलते भारत की एक बड़ी वजह

बता दें कि भारत की सुरक्षा को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) की सोच एक मजबूत नेशनलिस्ट सोच से जुड़ी हुई रही है। बात फिर चाहे चीन की हो या पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद की।

संघ प्रमुख ने पड़ोसी देशों को भारत की सांस्कृतिक इकाई के रूप में ही बताया है। उसका विश्लेषण कूटनीतिक खंडों में महज राजकीय संबंध के रूप में स्थापित नहीं होता।

इसी सिद्धांत की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुनील अम्बेकर ने अपनी पुस्तक रोडमैप ऑफ आरएसएस 21स्ट सेंचुरी में विस्तार से चर्चा भी की थी।

इतना ही नहीं बीते दिनों ही आरएसएस के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संयुक्त महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने भी कहा था कि संगठन यह मानता है कि नागरिकता कानून के कारण भारत के पड़ोसी देशों के संबंध पर कोई आंच नहीं आएगी। देश के लिए समान आचार संहिता का विषय भी एक अहम मामला है।

भारत की राष्ट्रीय इकाई को मजबूत करना बहुत ही जरूरी: आरएसएस

आरएसएस इस बात को लेकर बहुत गंभीर है। इससे राजनीतिक पृथकीकरण की शुरूआत हो जाती है। विद्वेष के रूप में चंद राजनीतिक पार्टियों के द्वारा जनता के सामने प्रोपेगेंडा परोसा जाता है। मुसलमानों को वर्षो से धर्मनिरपेक्षता के नाम पर डराया और धमकाया जाता रहा है। भारत की अखंडता को खंडित करने के लिए दुनिया की ताकतें साजिश रचने में लगी हुई हैं।

चीन ने अभी हाल ही में धमकी दी थी कि वह भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में अलगाववाद को हवा देगा, इसलिए भी भारत की इस राष्ट्रीय इकाई को मजबूत करना बहुत ही जरूरी है।

इतना ही नहीं दरअसल बीते लगभग सात दशकों में देश को यह पढ़ाया और समझाया गया कि हमारा देश विभिन्नताओं में बंटा हुआ है, जबकि सच यह है कि हम सभी एक पुंज और अखंडता के अंग हैं।

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