क्या सच में भारत ने बना ली कोरोना की दवा, यहां जानें पूरा मामला

कोरोना का वायरस लाख कोशिशों के बावजूद काबू में नहीं आ रहा है। दुनिया में कुल संक्रमित लोगों की संख्या 42.5 लाख के पार पहुंच गई है।  अब तक 2.87 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।

Aditya Mishra
Published on: 12 May 2020 7:35 AM GMT
क्या सच में भारत ने बना ली कोरोना की दवा, यहां जानें पूरा मामला
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नई दिल्ली: कोरोना का वायरस लाख कोशिशों के बावजूद काबू में नहीं आ रहा है। दुनिया में कुल संक्रमित लोगों की संख्या 42.5 लाख के पार पहुंच गई है। अब तक 2.87 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। सबसे ज्यादा मौतें अमेरिका में हुई हैं। भारत में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़कर 70 हजार के ऊपर पहुंच गई है।

इस बीच अच्छी खबर ये है कि भारत में भी कोरोना से लड़ने के लिए एक दवाई तैयार हो रही और इसका क्लीनिकल ट्रायल तीसरे दौर में पहुंच गया है।

पिछले महीने मिली थी मंजूरी

पिछले महीने भारत में दवा बनाने वाली कंपनी ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स ने ऐलान किया था कि वो कोरोना वायरस के मरीजों के लिए दवाई तैयार कर रहे हैं। अब कंपनी ने कहा है कि उसने क्लीनिकल ट्रायल का तीसरा दौर शुरू कर दिया है।

कोरोना के संक्रमित मरीजों पर टैबलेट फैविपिराविर का परीक्षण किया जा रहा है। कंपनी को पिछले महीने दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) से से इसे बनाने के लिए मंजूरी मिली थी।

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जुलाई-अगस्त में आ सकती है दवा

भारत में इस दवा का क्लीनिकल ट्रायल करीब 10 बड़े सरकारी अस्पतालों में किया जा रहा है। कंपनी के मुताबिक जुलाई या अगस्त तक इसका ट्रायल पूरा हो जाएगा। ग्लेनमार्क की वाइस प्रेसिडेंट मोनिका टंडन का कहना है कि हर कोई इसके नतीजे जानने के लिए बेहद उत्सुक है। कपंनी का येा भी कहना है कि अगर ट्रायल सफल रहा तो इस दवा की सप्लाई बिना किसी देरी के पूरे देश में की जाएगी।

जापान में होता है इस्तेमाल

फैविपिराविर एक वायरल के खिलाफ लड़ने वाली दवा है। बता दें कि इंफ्लूएंजा वायरस के खिलाफ इस दवा ने अच्छे नतीजे दिखाए हैं। जापान में इंफ्लूएंजा वायरस के इलाज के लिये इस दवा का प्रयोग किया जाता है। ग्लेनमार्क फार्मा ने कहा कि यह उत्पाद जापान की फुजिफिल्म तोयामा केमिकल कंपनी लिमिटेड के एविगन टैबलेट का जेनेरिक संस्करण है।

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ऐसे होंगे ट्रायल

नियमों के अनुसार कंपनी आंशिक तौर पर कोरोना वायरस से संक्रमित चुनिंदा 150 मरीजों पर इसका परीक्षण करेगी। मरीजों पर इसके टेस्ट के लिए 14 दिनों की समयसीमा रखी गई है। इसके पूरे अध्ययन की अवधि 28 दिन से ज्यादा नहीं हो सकती है।

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Aditya Mishra

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