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कोरोना वायरसः संक्रमण में दूसरे नंबर पर, लेकिन वैक्सीन भारत ही देगा

दुनिया भर में अब तक कोरोना संक्रमण के 2 करोड़ 80 लाख से ज़्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं और क़रीब नौ लाख लोगों की मौत हो चुकी है।

Newstrack
Published on: 12 Sep 2020 6:56 AM GMT
कोरोना वायरसः संक्रमण में दूसरे नंबर पर, लेकिन वैक्सीन भारत ही देगा
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कोरोना वायरसः संक्रमण में दूसरे नंबर पर, लेकिन वैक्सीन भारत ही देगा (social media)

लखनऊ: दुनिया भर में अब तक कोरोना संक्रमण के 2 करोड़ 80 लाख से ज़्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं और क़रीब नौ लाख लोगों की मौत हो चुकी है। संक्रमण के मामले में अब ब्राज़ील को पीछे छोड़, भारत दूसरे स्थान पर है। भारत में 45 लाख से ज्यादा केस आ चुके हैं और अब प्रत्येक 0.95 पर एक मामला आ रहा है जबकि हर 74.66 सेकेण्ड पर एक मौत कोरोना से हो रही है। अर्थव्यवस्थाओं को बचने के लिए भारत और अमेरिका समेत कई देशों में लॉकडाउन खत्म किये जा चुके हैं और लोग सामान्य दिनों की तरह बाहर निकल कर कामकाज में लग गए हैं।

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ऐसी स्थिति में संक्रमण भी बहुत तेजी से फ़ैल रहा है जिसे रोकने के लिए अब एक ही उपाय नजर आ रहा है और वो है एक प्रभावी वैक्सीन। कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की कोशिश में भारत समेत कई देश लगे हुए हैं। दुनिया भर में कोरोना वैक्सीन के दर्जनों क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं। वैक्सीन के इंतज़ार के बीच यह भी साफ़ हुआ है कि सिर्फ वैक्सीन बन जाने से लोगों की मुश्किलें रातों-रात ख़त्म नहीं हो जायेंगी क्योंकि आम लोगों तक इसे पहुँचाने की एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होती है। सबसे बड़ी चुनौती बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन और फिर दुनिया के हर कोने में डिलीवरी की होगी। वैक्सीन के प्रोडक्शन में भारत की अहम् भूमिका होगी।

पेटेंट का अधिकार

वैश्विक बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत वैक्सीन बनानेवाले को 14 साल तक डिज़ाइन और 20 साल तक पेटेंट का अधिकार मिलता है, लेकिन इस कोरोना महामारी के प्रकोप को देखते हुए सरकारें ‘अनिवार्य लाइसेंसिंग’ का ज़रिया भी अपना रही हैं ताकि कोई थर्ड-पार्टी भी इस वैक्सीन को बना सके। यानी कोरोना महामारी से जूझ रहे किसी देश की सरकार कुछ दवा कंपनियों को इसके निर्माण की इजाज़त दे सकती हैं।

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भारत का वैक्सीन बाज़ार

जेनेरिक दवाएं बनाने और उनके निर्यात के मामले में भारत टॉप के देशों में शामिल है। साल 2019 में भारत ने 201 देशों को जेनेरिक दवाईयाँ बेचीं और अरबों रुपये की कमाई की। इसके अलावा भारत दुनिया में वैक्सीन उत्पादक और सप्लायर देशों की लिस्ट में भी सबसे आगे वाले देशों में से एक है। भारत अकेले ही यूनीसेफ़ को 60 फीसदी वैक्सीन बनाकर देता है। चूंकि भारत में क्लीनिकल ट्रायल का ख़र्च कम आता है और उत्पादन में लागत भी तुलनात्मक रूप से कम आती है, इसलिए अन्य विकसित और विकासशील देशों की तुलना में भारत को वैक्सीन के उत्पादन के लिहाज़ से सही जगह माना जाता है।

भारत का हाथ जरूरी

आईसीएमआर के प्रमुख डॉक्टर बलराम भार्गव भी कह चुके हैं कि कोरोना वैक्सीन भले ही दुनिया के किसी भी कोने में विकसित की जाये, मगर उसके व्यापक उत्पादन में भारत के सहयोग के बिना क़ामयाबी हासिल करना संभव नहीं होगा। दरअसल, भारत में बीते वर्षों में बेहतर तकनीक विकसित होने और कोल्ड स्टोरेज की बड़ी व्यवस्थाएं बनने होने के कारण भारत की वैक्सीन उत्पादन क्षमता पहले से काफ़ी बढ़ी है। ऐसा माना जाता है कि भारत का वैक्सीन बाज़ार वर्ष 2025 तक 250 अरब रुपये से अधिक का हो जायेगा, जबकि वर्ष 2019 में ये 94 अरब रुपये का था। 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेक्सो स्मिथ क्लाइन भारत के वैक्सीन बाज़ार में सबसे बड़ा प्लेयर था। उसके बाद सिनोफ़ी एवेंटिस, फ़ाइज़र, नोवार्टिस और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया का नाम भारत के बड़े वैक्सीन उत्पादकों की लिस्ट में आता है।

भारत में दो कंपनियों को सफलता

दो भारतीय कंपनियों ने कोरोना की संभावित वैक्सीन तैयार करने में सफलता हासिल की है। इनमें पहली कंपनी है हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड जिसने आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी के साथ मिलकर कोवाक्सिन नामक वैक्सीन तैयार की है। दूसरी दवा कंपनी है ज़ायडस कैडिला जिसकी वैक्सीन को हाल ही में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया से ह्यूमन ट्रायल करने की अनुमति मिली है। दोनों ही कंपनियों की वैक्सीन दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल के लिए अनुमति प्राप्त कर चुकी हैं।

रूस और भारत

रूस ने कोरोना की वैक्सीन स्पूतनिक-5 को बाज़ार में लाने के लिए 'फ़ास्ट-ट्रैक' तरीक़ा आज़माया है। लेकिन इन सबके बाद रूस के सामने बड़ी चुनौती है कि वो इस वैक्सीन का सीमित उत्पादन ही कर सकता है। इसीलिए रूस ने भारत सरकार के ज़रिये भारतीय दवा कंपनियों से सहयोग माँगा है। ये रूस, भारत और पूरी दुनिया के लिए फायदे की बात होगी।

भारत सरकार ने कई भारतीय कंपनियों से पूछा है कि कौन-कौन इस रूसी वैक्सीन को तैयार करने की इच्छुक हैं? तीन भारतीय कंपनियाँ अब तक सामने आयी हैं जिन्होंने इसकी इच्छा ज़ाहिर की है। कई कंपनियाँ रूस सरकार के प्रस्ताव का अध्ययन कर रही हैं। भारतीय वैज्ञानिक स्पूतनिक-5 के पहले के दो ट्रायल के डेटा का अध्ययन कर रहे हैं जिसके बाद ज़रूरत के आधार पर तीसरे चरण के ट्रायल की कार्यवाही शुरू की जायेगी।

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ट्रायल में गंभीर दुष्परिणाम

कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में सबसे आगे ऑक्सफ़ोर्ड-आस्ट्रा ज़ेनेका चल रहे हैं। इसका तीसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल भारत समेत कई देशों में जारी है लेकिन यूनाइटेड किंगडम में एक महिला वालंटियर में वैक्सीन लगने के बाद गंभीर साइड इफेक्ट्स आ गए जिसके बाद पूरी दुनिया में इस वैक्सीन के ट्रायल रोक दिए गए हैं। आस्ट्रा ज़ेनेका कंपनी के सीईओ पास्कल सोरिओट ने खुलासा किया है कि वैक्सीन लगने के बाद उस महिला की रीढ़ में एक रेयर लेकिन गंभीर समस्या उत्पन्न हो गयी। इस समस्या को 'ट्रांस्वर्स म्येलाइटिस' कहा जाता है।

सोरिओट ने कंपनी के निवेशकों के साथ एक निजी कांफ्रेंस कॉल में बताया कि अभी फाइनल निदान नहीं हुआ है। लेकिन इस महिला की स्थिति में सुधार है और उसे जल्द ही अस्पताल से छोड़ दिया जाएगा। सोरिओट ने इस बात की भी पुष्टि की कि जुलाई में भी क्लिनिकल ट्रायल एक बार रोका जा चुका है क्योंकि उस समय एक प्रतिभागी में न्यूरोलोजिकल लक्षण पाए गए थे। लेकिन जांच में पता चला कि उस व्यक्ति को 'मल्टिपल स्क्लेरोसिस' बीमारी थी जिसका कोविड-19 वैक्सीन से कोई लेना देना नहीं था। ये पहला मौक़ा जब आस्ट्रा ज़ेनेका ने ट्रायल दूसरी बार रोके जाने की बाद स्वीकारी है। कंपनी ने अब कहा है कि स्वतंत्र एक्सपर्ट्स की एक कमेटी अब तय करेगी कि आस्ट्रा ज़ेनेका की वैक्सीन पर लगी रोक कब हटाई जाए।

भारत में लगी रोक :

आस्ट्रा ज़ेनेका की वैक्सीन के ट्रायल दुनिया भर में तो रोक दिए गए लेकिन भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया ने ट्रायल नहीं रोका। इस पर भारत के ड्रग कंट्रोलर ने सीरम इंस्टिट्यूट को नोटिस भेज कर पूछा कि ट्रायल क्यों नहीं रोका गया है। इसके बाद जार कर सीरम इंस्टिट्यूट ने भारत में ट्रायल को रोक दिया।

ब्राजील और चीनी वैक्सीन

चीन में डेवलप की गयी एक वैक्सीन 'कोरोना वैक' का क्लिनिकल ट्रायल ब्राजील में किया जा रहा है जिसके बहुत की सकारात्मक नतीजे मिलने की बात कही जा रही है। ब्राजील के साओ पाउलो प्रान्त के गवर्नर ने कहा है इस वैक्सीन का व्यापक टीकाकरण दिसम्बर में शुरू किया जा सकता है। ब्राजील में साओ पाउलो में कोरोना के सबसे ज्यादा केस पाए गए हैं। बताया गया है कि 'कोरोना वैक' से 60 साल से ऊपर के 98 फीसदी प्रतिभागियों में इम्यून रेस्पोंस देखा गया है। वैसे ब्राजील के राष्ट्रपति जेर बोल्सोनारो ने चीनी वैक्सीन की आलोचना की है और आस्ट्रा ज़ेनेका की वैक्सीन खरीदने के लिए 360 मिलियन डालर आवंटित भी कर रखे हैं।

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8 हजार जम्बो जेट लगाने होंगे

इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आईएटीए) ने कहा है कि कोरोना की वैक्सीन आ जाने पर इसे दुनिया भर में पहुंचाने का काम बहुत जटिल होने वाला है। एसोसिएशन के अनुसार डिस्ट्रीब्यूशन के लिए बहुत सावधानी से प्लानिंग करने की जरूरत है। संगठन का कहना है कि दुनिया भर में 7.8 अरब लोगों तक वैक्सीन की एक खुराक पहुंचाने के लिए 8 हजार बोईंग 747 मालवाहक विमानों की जरूरत पड़ेगी। आईएटीए ने सरकारों से आग्रह किया है कि वे विमानन उद्योग के साथ बैठ कर प्लानिंग करना शुरू कर दें।

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