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ऐसे ही नहीं हुई थी 34 साल पहले इंदिरा गांधी हत्या, वजह थी बहुत बड़ी
ऑपरेशन ब्लू स्टार का दुष्परिणाम 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के रूप में सामने आया। ऑपरेशन ब्लू स्टार के चार महीने बाद ही इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी।इतनी बड़ी कार्रवाई के बाद इंदिरा गांधी को अहसास हो गया था कि उनकी जान पर खतरा है।
आज इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि है। आज या 31 अक्टूबर के दिन ही उनके दो सुरक्षाकर्मीयों ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया था। जिनका नाम बेअंत सिंह और सतवंत सिंह था। लेकिन ये भी सच है कि इन सुरक्षाकर्मियों का इंदिरा से कोई जाति दुश्मनी नहीं थी। ये दोनों तो बस मोहरे थे।इंदिरा गांधी का हत्या की वजह कुछ और ही थी।
इस एक वजह से हुई हत्या
इंदिरा गांधी पंजाब को चरमपंथियों के वर्चस्व से मुक्त कराकर खुशहाल व संपन्न बनाना चाहती थी। इस के लिए उन्होंने वहा ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत की।इसके अनुसार, भारतीय सेना ने 2 जून 1984 को अंतर्राष्ट्रीय सीमा को सील कर दिया।2 जून को हर मंदिर साहिब परिसर में श्रद्धालुओं ने आना शुरु कर दिया था क्योंकि 3 जून को गुरु अर्जुन देव का शहीद दिवस था। दूसरी ओर जब दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश को संबोधित किया तो ये स्पष्ट हो गया था कि सरकार स्थिति को गंभीरता से देख रही है और भारत सरकार सख्त कार्रवाई करने से भी नहीं हटेगी।
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3 जून को सेना राज्य में कर्फ्यू लगा दिया था। इसके बाद 4 जून को सेना ने मंदिर के मोर्चाबंद चरमपंथियों के हथियारों और असलहों का अंदाजा लेने के लिए गोलीबारी शुरू कर दी जिसका परिणाम बहुत ही खतरनाक निकला। चरमपंथियों ने सेना के इस कदम का जवाब पलटवार करके दिया। जिसका नतीजा यह हुआ कि 5 जून, 1984 को रात में 10.30 बजे के बाद काली कमांडो पोशाक में 20 कमांडो पूरी तैयारी के साथ चुपचाप स्वर्ण मंदिर में घुसे। उन्होंने नाइट विजन चश्मे, एम-1 स्टील हैल्मेट और बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखी थीं। उनके पास कुछ एमपी-5 सबमशीनगन और एके-47 राइफल थीं.
ऑपरेशन ब्लू स्टार सफल होने के बाद उनकी हत्या की साजिश
यह लड़ाई इतनी बढ़ गई कि बख्तरबंद गाड़ियों और टैंकों को इस्तेमाल किया जाने लगा। हालांकि अंत में ऑपरेशन ब्लू स्टार को सफलता मिली, इस ऑपरेशन में 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए। 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए, 86 घायल हुए और 1592 को गिरफ्तार किया गया। इस घटना के बाद पंजाब में तनावपूर्ण माहौल बना रहा लेकिन बहुत खून-खराबा होने के बाद सिख समुदाय के अंदर इंदिरा गांधी के लिए गुस्सा बढ़ गया जो उनकी हत्या के बाद शांत हुआ।
31 अक्टूबर से पहले 15 अगस्त तय था हत्या के लिए
इसके बाद इंदिरा गांधी के एहसास हो गया था कि उनकी उनके ऊपर मौत के बादल मंडरा रहे है। जो 31 अक्टूबर उनकी हत्या के बाद खत्म हो गया। कहते हैं लेकिन उनको गोलियों से छलनी करने वाले बेअंत सिंह व सतवंत सिंह सिर्फ मोहरे थे। बेअंत सिंह की तो मौके पर मौत हो गई। लेकिन सतवंत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसने घटना के बारे में जानकारी दी। सतवंत ने जांच में बताया था हत्या की साजिश में मास्टरमाइंड कोई और था। जिसका नाम सिविल एविएशन में कर्मचारी केहर सिंह। केहर सिंह और बेअंत सिंह एक गांव के थे। दोनों ने इंदिरा की सुरक्षा में तैनात गार्डों को साजिश में शामिल किया। केहर, बेअंत और बलवीर ने हत्या का दिन 15 अगस्त चुना, लेकिन वह प्लान फेल हो गया।बाद में बलवीर सिंह साजिश से हट गया और उसकी जगह कॉन्स्टेबल सतवंत सिंह शामिल हुआ। इसके बाद 31 अक्टूबर 1984 को साजिश के तहत इंदिरा की हत्या की गई।
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