व्यवस्था बनाये रखने के लिए इंटरनेट शटडाउन का सहारा, जानिए कैसे लगता है बैन

इन्टरनेट बंद होने से ऑनलाइन पढ़ाई ठप, वर्क फ्रॉम होम ठप, एटीएम-कार्ड स्वैपिंग ठप, ऑनलाइन लेनदेन ठप, सोशल मीडिया ठप.. यानी आजकल के सभी जरूरी काम ठप। लेकिन सरकार के पहलू से देखें तो अफवाहें रोकने, गलत मंशा से भेजे जाने वाले मेसेजों को रोकने का यही उपाय है।

Dharmendra kumar
Published on: 7 Feb 2021 8:19 AM GMT
व्यवस्था बनाये रखने के लिए इंटरनेट शटडाउन का सहारा, जानिए कैसे लगता है बैन
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भारत में 2018 में 134, 2019 में 106 और 2020 में 83 बार इंटरनेट बंद किया गया। इनमें से कम से कम छह बार 24 घंटों से ज्यादा समय तक बैन चला था।

नीलमणि लाल

लखनऊ: भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ इंटरनेट बाजार है। लेकिन इसके साथ एक नकारात्मक आंकड़ा भी जुड़ा हुआ है। भारत दुनिया में सबसे ज्यादा बार इंटरनेट बंद करने वाला देश भी है। मिसाल के तौर पर दिल्ली की सीमा पर बैठे किसानों को कंट्रोल करने के लिए सरकार ने इंटरनेट शटडाउन का सहारा भी लिया है। दिल्ली के सीमावर्ती इलाकों के अलावा हरियाणा और दिल्ली में एक-एक बार इंटरनेट और एसएमएस सेवाओं को बंद किया जा चुका है। आज जिस तरह इन्टरनेट लोगों की जिन्दगी का अभिन्न अंग बन चुका है उसमें इसके बंद हो जाने का मतलब जिन्दगी ही ठहर जाने जैसा है।

इन्टरनेट बंद होने से ऑनलाइन पढ़ाई ठप, वर्क फ्रॉम होम ठप, एटीएम-कार्ड स्वैपिंग ठप, ऑनलाइन लेनदेन ठप, सोशल मीडिया ठप.. यानी आजकल के सभी जरूरी काम ठप। लेकिन सरकार के पहलू से देखें तो अफवाहें रोकने, गलत मंशा से भेजे जाने वाले मेसेजों को रोकने का यही उपाय है। वैसे, इन्टरनेट बंद करने के मामले में भारत का रिकॉर्ड बेहद खराब है।

अभी 2021 के शुरूआती दिनों में ही सरकार देशभर में 10 बार से ज्यादा इंटरनेट बंद कर चुकी है। अगर भारत में सबसे लंबे समय तक इंटरनेट सेवा पर पाबंदी की बात करें तो यह जम्मू-कश्मीर में देखने को मिली। वहां सरकार ने 552 दिन बाद 4जी इंटरनेट सेवा शुरू की है। जम्मू-कश्मीर में सबसे ज्यादा बार इंटरनेट बंद होता है। जम्मू-कश्मीर के बाद सबसे ज्यादा बार राजस्थान और उत्तर प्रदेश में इंटरनेट बंद किया गया है।

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आठ सालों में 437 बार शटडाउन

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2018 में 134, 2019 में 106 और 2020 में 83 बार इंटरनेट बंद किया गया। इनमें से कम से कम छह बार 24 घंटों से ज्यादा समय तक बैन चला था। कई बार इंटरनेट सेवाओं को 72 घंटे से भी ज्यादा समय तक बंद रखा गया था। अगर पिछले आठ सालों का रिकॉर्ड देखें तो 2012-2020 तक 437 बार इंटरनेट बंद किया गया है। 2016 के बाद इनमें इजाफा हुआ है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकनॉमिक रिलेशन्स के मुताबिक साल 2012 से जनवरी, 2019 तक किसी ना किसी कारण से भारत में केंद्र या राज्य सरकारों ने 367 बार इंटरनेट बंद किया था।

Internet Shutdown

जम्मू-कश्मीर सबसे ज्यादा प्रभावित

पिछले कुछ सालों में देश में जम्मू-कश्मीर को सबसे ज्यादा इंटरनेट निलंबन का सामना करना पड़ा है। 2012 से लेकर अब तक यहां 251 बार कम से कम 24 घंटों तक इंटरनेट बंद किया जा चुका है। वैसे अब यहाँ 4जी इंटरनेट सेवा बहाल कर दी गई है, लेकिन यहां यूजर्स को इंटरनेट इस्तेमाल करने से पहले सत्यापन करवाना होगा।

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20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान

इंटरनेट शटडाउन की कई वजहें रहीं, लेकिन इससे नुकसान काफी हुआ है। इन्टरनेट बंद करने से सरकार को भारी आर्थिक नुकसान भी होता है। व्यापार, बैंकिंग, डिजिटल लेनदेन बंद हो जाने का सीधा असर व्यावसायिक गतिविधियों और राजस्व पर पड़ता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में भारत सरकार ने देशभर में 4,196 घंटों तक इंटरनेट बंद रखा था, जिससे अर्थव्यवस्था को 1.3 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था। 2020 में इंटरनेट शटडाउन की अवधि बढ़कर 8,927 घंटे हो गई जिस कारण 2.8 अरब डॉलर (लगभग 20,000 करोड़ रुपये) का आर्थिक नुकसान हुआ। यानी साल भर में डबल।

पूरी दुनिया में होता है बैन

इन्टरनेट शटडाउन सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि तमाम अन्य देशों में भी हुए हैं। पूरी दुनिया में 2020 में 93 बड़े इंटरनेट शटडाउन हुए। बेलारूस, म्यांमार, यमन, अजरबैजान, तुर्की, सीरिया, ईरान और सोमालिया में लम्बे शटडाउन हुए। लेकिन वैश्विक स्तर पर इंटरनेट शटडाउन के कारण हुए आर्थिक नुकसान में 2019 के मुकाबले 50 प्रतिशत की कमी आई और 2020 में ये आंकड़ा 4.01 अरब डॉलर लगभग (30,000 करोड़ रुपये) रहा।

कैसे लगता है बैन

इन्टरनेट बंद करने के लिए केंद्र सरकार या फिर राज्य सरकार के गृह सचिव सर्विस प्रोवाइडर्स को आदेश देते हैं। यह आदेश एसपी या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी के माध्यम से भेजा जाता है। वो अधिकारी सर्विस प्रोवाइडर्स को इंटरनेट सर्विस ब्लॉक करने के लिए कहता है। इस आदेश एक वर्किंग डे के भीतर केंद्र या राज्य सरकार के रिव्यू पैनल के पास भेजना होता है। इस रिव्यू पैनल को पांच दिन के भीतर इसकी समीक्षा करनी होती है।

केंद्र सरकार के रिव्यू पैनल में कैबिन सेक्रेटरी, लॉ सेक्रेटरी और टेलिकम्युनिकेशन्स सेक्रेटरी होते हैं। वहीं, राज्य सरकार से दिए गए आदेश के रिव्यू पैनल में चीफ सेक्रेटरी, लॉ सेक्रेटरी और एक कोई अन्य सेक्रेटरी शामिल रहता है। इमरर्जेंसी की स्थिति में केंद्र या फिर राज्य के गृह सचिव द्वारा अधिकृत किए गए जॉइंट सेक्रेटरी इंटरनेट शटडाउन करने के आदेश दे सकते हैं। हालांकि, इसके लिए उन्हें 24 घंटे के भीतर केंद्र या राज्य के गृह सचिव से इसकी मंजूरी लेनी पड़ेगी।

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Internet

2017 से पहले अलग थे नियम

भारत में इंटरनेट सेवाएं रोकने के लिए वर्तमान में दो कानूनी प्रावधान और एक नियमावली है। ये हैं - कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर 1973 (सीआरपीसी), इंडियन टेलिग्राफ़ एक्ट 1885 और टेंपररी सस्पेंशन ऑफ़ टेलिकॉम सर्विसेज़ (पब्लिक इमर्जेंसी या पब्लिक सेफ़्टी) रूल्स 2017।

2017 से पहले जिले के डीएम इंटरनेट बंद करने का आदेश देते थे लेकिन 2017 में सरकार ने इंडियन टेलिग्राफ एक्ट 1885 के तहत टेम्प्ररी सस्पेंशन ऑफ टेलिकॉम सर्विसेज (पब्लिक इमरजेंसी या पब्लिक सेफ्टी) रूल्स तैयार किए। इसके बाद अब सिर्फ केंद्र या राज्य के गृह सचिव या उनके द्वारा अधिकृत अथॉरिटी इंटरनेट बंद करने का आदेश दे सकते हैं। सीआरपीसी में ही ‘शांति बनाए रखने के लिए उठाने जाने वाले अस्थायी क़दमों’ में धारा 144 काफ़ी अहम है। इससे सरकारों को ख़तरे और उपद्रव जैसी स्थिति से निपटने के उद्देश्य से त्वरित निदान के लिए आदेश जारी करने की शक्ति मिलती है।

इंटरनेट बंद क्यों किया जाता है

सामान्य परिस्थितियों में इंटरनेट भी सामान्य तरीके से चलता रहता है। लेकिन जब सरकार को कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका होती है तो इंटरनेट को बंद किया जाता है। हाल के समय में देखा गया है कि किसी सांप्रदायिक या राजनीतिक तनाव की घटना में इंटरनेट पर मौजूद मैसेजिंग ऐप्स या सोशल मीडिया के जरिए फेक न्यूज तेजी से फैलाई जाती है। इसमें हिंसा करने के लिए लोगों को इकट्ठा करने और दूसरी तरह की हिंसक गतिविधियां शामिल होती हैं। कश्मीर में इंटरनेट बंद करने के पीछे सरकार ने तर्क दिया था कि पत्थरबाजी करने या आतंकी गतिविधियों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा रहा है।

इंटरनेट बंद करने के मामले में दूसरे नंबर पर रहे राजस्थान में कानून व्यवस्था बिगड़ने के अलावा कई प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान इंटरनेट बंद किया गया। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने, राम मंदिर विवाद के फैसले और नागरिकता संशोधन अधिनियम के दौरान इंटरनेट बंद करना सामान्य तौर पर देखा गया। साल 2011 में सरकार ने बल्क मैसेजिंग पर रोक लगाई थी। तब एक दिन में किए जा सकने वाले मैसेजों की संख्या 100 तक सीमित कर दी गई थी।

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