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अमेरिका और ईरान में होगा युद्ध! जानिए भारत पर क्या होगा असर
अमेरिका और ईरान में तनाव चरम पर है। अमेरिका ने बगदाद हवाई अड्डे पर मिसाइल से हमला किया है जिसमें इलाइट कुड्स फोर्स के हेड ईरानी मेजर जनरल कासिम सुलेमानी, इराकी मिलिशिया कमांडर अबू महदी अल-मुहांडिस समेत 7 लोग मारे गए हैं।
नई दिल्ली: अमेरिका और ईरान में तनाव चरम पर है। अमेरिका ने बगदाद हवाई अड्डे पर मिसाइल से हमला किया है जिसमें इलाइट कुड्स फोर्स के हेड ईरानी मेजर जनरल कासिम सुलेमानी, इराकी मिलिशिया कमांडर अबू महदी अल-मुहांडिस समेत 7 लोग मारे गए हैं। अमेरिकी स्ट्राइक के बाद इराकी मिलिशिया ने इनके मारे जाने की पुष्टि की है। इसके बाद अमेरिका और ईरान में तनाव बहुत अधिक बढ़ गया है।
अब इसका असर दुनिया के दूसरे देशों पर भी दिखाई दे रहा है। भारत मध्य पूर्वी एशिया पर बहुत हद तक निर्भर है। अगर इस क्षेत्र में तनाव बढ़ा तो भारत के व्यापार के साथ तेल आयात भी प्रभावित होगा। इस तनाव की वजह से भारत की चिंता भी काफी हद तक बढ़ गई है।
रकारी आंकड़ों मुताबिक भारत ने बीते वित्त वर्ष में अपनी जरूरत के लिए 84 प्रतिशत कच्चा तेल ईरान से आयात किया था। इस प्रकार कुल आयात तेल के हर तीन में से दो बैरल तेल ईरान से आयात होता है। अगर अमेरिका और ईरान के बीच तनाव इसी तरह बरकरार रहता है तो इसका सीधा असर तेल के दामों पर पड़ेगा।
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अमेरिका और ईरान में अगर युद्ध होती है तो तेल के दामों में अप्रत्याशित बढ़त होने की आशंका है, इससे उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत बढ़ने और देश के बाहरी घाटे के बढ़ने की भी संभावना है। इसका परिणाम यह होगा कि देश की आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी हो सकती है और अर्थव्यस्था पर इसका खासा असर देखने को
अमेरिका और ईरान के बीच तनाव जारी रहा तो तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होगी। इसका परिणाम यह होगा कि भारत को तेल के लिए ज्यादा पैसे चुकाने होंगे और देश का वित्तीय घाटा और भी बढ़ सकता है। अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत पहले ही ईरानी बैरल का विकल्प ढूंढने के लिए संघर्ष कर रहा है। अगर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता है तो इसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है।
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आंकड़ों के मुताबिक भारत ने मार्च में खत्म हुए वित्त वर्ष में लगभग 10 प्रतिशत तेल खाड़ी देशों से आयात किया। जब ईरान ने अमेरिकी ड्रोन मार गिराए और ईरान की खाड़ी के पास टैंकरों पर हुए हमले से दोनों मुल्कों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया, जिसके चलते जून के मध्य में ब्रेंट क्रूड की कीमत काफी कम थी, लेकिन वर्तमान में इसकी कीमतों में आठ प्रतिशत तक उछाल देखने को मिला है।
अगर देश में तेल की कमी होती है तो इसका सीधा असर देश के हर नागरिक पर होगा। तेल की कमी होने से इसकी मौजूदा कीमतों में बढ़ोतरी होगी। जिसका परिणाम यह होगा है कि उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें भी तेजी से बढ़ेंगी और देश में महंगाई बढ़ जाएगी।
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कुछ समय तक एशिया की सबसे तेज रफ्तार से बढ़ने वाली भारत की अर्थव्यवस्था में पिछले तीन महीने में कमी देखी गई है। वहीं, देश में महंगाई दर भी बढ़ रही है। देश बेरोजगारी के बढ़ते स्तर से जूझ रहा है और देश के बैंकिंग सिस्टम की समस्याएं भी सामने आ रही हैं।
भारत ने ईरान के चाबहार पोर्ट में करोड़ों डॉलर का निवेश कर रखा है। भारत की कोशिश है कि ईरान के रास्ते अफगानिस्तान तक सीधा संपर्क स्थापित किया जा सके। इसके लिए भारत ईरान से अफगानिस्तान तक सड़क बनाने में मदद कर रहा है।
चाबहार पोर्ट की वजह से भारत अपना सामान अफगानिस्तान और ईरान को सीधे भेज पा रहा है। इसके अलावा एक बड़ी बात यह भी है कि चाबहार के कारण भारत अपने माल को रूस, तजकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजकिस्तान और उजेबकिस्तान भेज पा रहा है। इससे भारत के व्यापार में लगातार वृद्धि हो रही है। हथियारों की खरीद के कारण रूस से बढ़ रहे व्यापार घाटे को भी कम करने में भारत को मदद मिल रही है।
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दोनों देशों के तननाव के बाद सोने और चांदी के दाम में जोरदार तेजी आई है। रुपये में कमजोरी से शुक्रवार को दिल्ली में सोना 752 रुपये उछलकर 40,652 रुपये प्रति दस ग्राम पर पहुंच गया। सोना गुरुवार को 39,900 रुपये प्रति दस ग्राम पर बंद हुआ था। चांदी भी 960 रुपये की तेजी के साथ 48,870 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई।
कच्चे तेल की कीमत में अप्रत्याशित तेजी के बीच शुक्रवार को अंतरबैंकिंग मुद्रा बाजार में रुपया 42 पैसे गिरकर डेढ़ महीने के निचले स्तर 71.80 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ। रुपया शुक्रवार को 71.56 प्रति डॉलर पर खुला और कारोबार के दौरान गिरकर एक समय 71.81 तक गिर गया था।