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BJP नहीं ले पा रही सियासी लाभ, ये है वजह, जानें-आखिर क्या चाहता है वसुंधरा गुट
राजस्थान की सियासत में सचिन पायलट की बगावत के बाद कांग्रेस में पैदा हुए संकट को लेकर वसुंधरा राजे ने अभी तक बहुत ही ठंडा रुख दिखाया है।
अंशुमान तिवारी
जयपुर: राजस्थान कांग्रेस में चल रही उठापटक तो सबके सामने आ चुकी है मगर भाजपा में भी सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। राजस्थान में सत्ता को लेकर चल रहे संघर्ष के बीच भाजपा भी दो खेमों में बंटी नजर आ रही है। एक खेमे में पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की कद्दावर नेता वसुंधरा राजे हैं तो दूसरे खेमे में भाजपा के अन्य प्रमुख नेता। इसी खेमेबंदी के कारण भाजपा अभी तक कांग्रेस की आपसी फूट का लाभ नहीं उठा सकी है।
सियासी संकट पर वसुंधरा का ठंडा रुख
राजस्थान की सियासत में सचिन पायलट की बगावत के बाद कांग्रेस में पैदा हुए संकट को लेकर वसुंधरा राजे ने अभी तक बहुत ही ठंडा रुख दिखाया है। पहले तो वे एक हफ्ते से ज्यादा समय तक चुप्पी साधे रहीं और उसके बाद ट्विटर पर मामूली प्रतिक्रियाएं जताकर फिर खामोश हो गईं। भाजपा की बैठक में उनका कई दिनों तक इंतजार किया गया मगर वे बैठक में हिस्सा लेने के लिए धौलपुर से जयपुर नहीं पहुंचीं। जानकार सूत्रों का कहना है कि वसुंधरा राजे प्रदेश भाजपा के मौजूदा नेतृत्व से नाराज हैं। वे चाहती हैं कि प्रदेश इकाई में सभी फैसले उनकी सहमति से लिए जाएं मगर ऐसा नहीं हो रहा है।
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दरअसल प्रदेश भाजपा में एक दूसरा खेमा भी मजबूत बनकर उभरा है। इस खेमे में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया और विधायक दल के उपनेता राजेंद्र राठौड़ शामिल हैं। राजस्थान के मौजूदा सियासी संकट के बीच यह खेमा काफी सक्रिय हैं और कांग्रेस व मुख्यमंत्री गहलोत पर लगातार हमलावर है। शेखावत भी दिल्ली में बैठकर लगातार यहां की सियासत में दिलचस्पी ले रहे हैं। पार्टी के राज्यस्तरीय नेता भी काफी सक्रिय बने हुए हैं और उन्होंने पिछले दिनों राज्यपाल से मुलाकात कर ज्ञापन भी सौंपा था।
वसुंधरा की अनदेखी से नाराजगी
सूत्रों का कहना है कि राजस्थान भाजपा का यह दूसरा खेमा राज्य संगठन पर अपना प्रभुत्व कायम करने की कोशिश में जुटा हुआ है। शेखावत, पूनिया और राठौड़ तीनों चाहते हैं कि राज्य संगठन से वसुंधरा राजे के प्रभुत्व को धीरे-धीरे खत्म किया जाए। हालांकि इस मुद्दे पर कोई कुछ भी खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है। इसका एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि राज्य में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे 72 विधायकों में काफी संख्या वसुंधरा समर्थकों की है। भाजपा में चल रही खींचतान के कारण वसुंधरा समर्थक विधायक एकजुट होने लगे हैं।
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राज्य भाजपा के नेता अभी पार्टी की एकता के लिए चुप्पी साधे हुए हैं। दूसरी ओर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल, पूर्व मंत्री यूनुस खान व विधायक प्रताप सिंह सिंघवी वसुंधरा राजे समर्थकों को एकजुट कर अपनी ताकत को बनाए रखने की कोशिश में लगे हुए हैं। इन नेताओं का दावा कि चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे भाजपा विधायकों में 30 से 32 विधायक वसुंधरा समर्थक हैं। इन विधायकों में इस बात की नाराजगी है कि पार्टी के महत्वपूर्ण फैसलों में वसुंधरा राजे की अनदेखी की जा रही है।
गहलोत सरकार को लेकर अलग-अलग राय
सूत्रों का कहना है कि पार्टी के विभिन्न कार्यक्रमों से वसुंधरा समर्थकों ने किनारा कर रखा है। वसुंधरा समर्थक पार्टी नेतृत्व पर इस बात का दबाव बनाना चाहते हैं कि फैसले में उनकी राय को भी महत्व दिया जाए। पार्टी में चल रही आपसी खींचतान को इस बात से भी समझा जा सकता है कि एक तरफ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और संगठन के अन्य पदाधिकारी अशोक गहलोत की सरकार को गिराने की बात कर रहे हैं, वहीं वसुंधरा और उनके समर्थक इसके पक्ष में नहीं दिख रहे हैं। वसुंधरा समर्थक कैलाश मेघवाल ने पिछले दिनों कहा था कि निर्वाचित सरकार को नहीं गिराया जाना चाहिए।
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जानकार सूत्रों का कहना है कि आने वाले दिनों में भाजपा में गुटबाजी और बढ़ सकती है। सूत्रों का यह भी कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व में वसुंधरा राजे को लेकर सहज नहीं है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के कई फैसलों में वसुंधरा राजे अड़ंगा लगाती रही हैं। मगर राजस्थान भाजपा में उनकी मजबूत पकड़ को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व अभी तक सामंजस्य बैठाकर चलता रहा है। अब धीरे-धीरे राज्य भाजपा में बढ़ रही खेमेबंदी सबके सामने और खुलकर उजागर होने लगी है।