×

जीजाबाई ने बनाया छत्रपति शिवाजी को महान योद्धा, इस तरह भरा था बेटे में जोश

जीजाबाई एक योद्धा और सख्त प्रशासक ही नहीं थी बल्कि वे एक वीर और आदर्श माता भी थीं। उन्होंने अपने पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज की ऐसी परवरिश की और उनके अंदर ऐसे गुणों का संचार किया जिसकी वजह से वे बाद में मराठा शासक बने और मुगलों का डटकर मुकाबला करने में कामयाब हो सके।

SK Gautam
Published on: 12 Jan 2021 12:49 PM IST
जीजाबाई ने बनाया छत्रपति शिवाजी को महान योद्धा, इस तरह भरा था बेटे में जोश
X
जीजाबाई ने बनाया छत्रपति शिवाजी को महान योद्धा, इस तरह भरा था बेटे में जोश

अंशुमान तिवारी

लखनऊ: छत्रपति शिवाजी महाराज को वीर, निर्भीक और महान योद्धा बनाने में सबसे बड़ा योगदान उनकी मां जीजाबाई का माना जाता है। राजमाता जीजाबाई का पूरा जीवन साहस, त्याग और बलिदान से परिपूर्ण रहा। उन्होंने अपने जीवन में विपरीत परिस्थितियों का हिम्मत के साथ डटकर मुकाबला किया है और कभी हार नहीं मानी।

12 जनवरी 1598 को पैदा होने वाली जीजाबाई एक योद्धा और सख्त प्रशासक ही नहीं थी बल्कि वे एक वीर और आदर्श माता भी थीं। उन्होंने अपने पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज की ऐसी परवरिश की और उनके अंदर ऐसे गुणों का संचार किया जिसकी वजह से वे बाद में मराठा शासक बने और मुगलों का डटकर मुकाबला करने में कामयाब हो सके।

शाहजी भोसले के साथ कम उम्र में विवाह

जीजाबाई का जन्म महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के पास निजाम शाह के राज्य सिंधखेड़ में हुआ था। उनके पिता का नाम लखुजी जाधवराव था। उनके पिता निजाम शाह के दरबार में पंच हजारी सरदार थे। वे निजाम के काफी नजदीकी थे। जीजाबाई की माता का नाम महालसाबाई था। जीजाबाई को बचपन में जिजाऊ नाम से पुकारा जाता था।

jijabai-shivaji

यह भी पढ़ें: जयंती स्पेशल: विवेकानंद की वो भविष्यवाणियां जो हुईं सच, जानिए अनसुनी बातें

बाल विवाह के उस दौर में जीजाबाई की शादी भी बेहद कम उम्र में हो गई थी। उनका विवाह शाहजी भोसले के साथ हुआ था। शाहजी राजे भोसले बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह के दरबार में सेनापति और साहसी योद्धा थे। शादी के बाद जीजाबाई को आठ संतानें हुईं जिनमें से छह बेटियां और दो बेटे थे। उनमें से ही एक छत्रपति शिवाजी महाराज ने बाद में चलकर काफी प्रसिद्धि पाई और मराठा स्वराज्य की नींव रखी।

शिवाजी को सुनाईं रामायण-महाभारत की कहानियां

जीजाबाई ने रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाकर शिवाजी के भीतर वीरता, धर्म निष्ठा, धैर्य और मर्यादा आदि गुणों का ऐसा विकास किया जिसके बल पर आगे चलकर शिवाजी वीर और साहसी योद्धा बने। इतिहासकारों के मुताबिक जीजाबाई ने अपनी देखरेख और मार्गदर्शन में शिवाजी में नैतिक संस्कारों का संचार किया था। उन्होंने शिवाजी महाराज को मानवीय रिश्तों की अहमियत समझाने के साथ ही महिलाओं का मान सम्मान करने और उनके अंदर देश प्रेम की भावना जागृत करने में कामयाबी हासिल की।

shivaji

बेटे को युद्ध कौशल में बनाया निपुण

जीजाबाई ने शिवाजी को केवल कहानियां ही नहीं सुनाईं बल्कि उन्हें तलवारबाजी, भाला चलाने की कला, घुड़सवारी, आत्मरक्षा और युद्ध कौशल की शिक्षा में भी पूरी तरह निपुण बना दिया। शिवाजी भी अपनी कामयाबी का श्रेय अपनी वीरमाता जीजाबाई को दिया करते थे। वे अपनी मां को ही अपना प्रेरणास्रोत माना करते थे। जीजाबाई ने अपनी पूरी जिंदगी अपने बेटे को मराठा साम्राज्य का महानतम शासक बनाने में लगा दी थी।

यह भी पढ़ें: खत्म हो रहे जंगल: अब बर्ड फ्लू ने यहां बिछाया जाल, चारों तरह मची तबाही

मराठा साम्राज्य में अहम भूमिका

इतिहासकारों के मुताबिक जीजाबाई एक बेहद प्रभावी और बुद्धिमान महिला थीं और उन्होंने मराठा साम्राज्य को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी पूरी जिंदगी मराठा साम्राज्य की स्थापना के लिए समर्पित थी और वे सच्चे अर्थों में राष्ट्रमाता और वीर नारी थीं।

शिवाजी के राज्याभिषेक के कुछ दिनों बाद ही 17 जून 1674 को उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद वीर शिवाजी ने मराठा साम्राज्य का काफी विस्तार किया था। एक वीर माता और राष्ट्रमाता के रूप में उन्हें आज भी याद किया जाता है। जीजाबाई ने कई ऐसे महत्वपूर्ण फैसले किए जो मराठा साम्राज्य के विस्तार के लिए सहायक साबित हुए।

shivaji-2

माता की फटकार पर जीता था दुर्ग

माता जीजाबाई के जोश भरने पर ही शिवाजी सिंहगढ़ का दुर्ग जीतने में कामयाब हुए थे। पहले तो शिवाजी ने जीजाबाई के सामने यह युद्ध लड़ने में असमर्थता जताई थी मगर माता के फटकार लगाने पर उन्होंने अपने वीर योद्धा तानाजी को सिंहगढ़ के दुर्ग पर चढ़ाई करने का आदेश दिया था।

तानाजी ने अपने कुछ सैनिकों के साथ ही सिंहगढ़ के दुर्ग पर चढ़ाई कर दी थी। तानाजी ने वीरता का परिचय देते हुए सिंहगढ़ के दुर्ग पर अधिकार कर लिया मगर वे खुद खत्म हो गए। शिवाजी को जब यह खबर मिली तो उनकी आंखें नम हो गईं और उन्होंने कहा कि किला तो जीत लिया, लेकिन अपना शेर खो दिया। इतिहास के पन्नों में शिवाजी की यह जीत स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

यह भी पढ़ें: दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण प्रोग्राम, जानिए इसके बारे में सबकुछ

इतिहासकारों के मुताबिक सिंहगढ़ की इस विजय के जरिए माता जीजाबाई ने शिवाजी को यह समझाने में कामयाबी हासिल की थी कि कभी खुद को कमजोर नहीं समझना चाहिए और यदि आदमी ठान ले तो मजबूत दुश्मन को भी धराशायी किया जा सकता है।

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

SK Gautam

SK Gautam

Next Story