JNU में विवाद: पद्मभूषण से सम्मानित से मांगा गया बायोडेटा, जमकर हुआ विरोध

लंबे समय से जेएनयू यूनिवर्सिटी से जुड़ी इतिहासकार रोमिला थापर से जेएनयू प्रशासन द्वारा बायोडेटा मांगने पर विवाद हो गया और इसका यूनिवर्सिटी के छात्रों, शिक्षकों और इतिहासकारों ने इसका जमकर विरोध किया।

Shreya
Published on: 2 Sep 2019 6:47 AM GMT
JNU में विवाद: पद्मभूषण से सम्मानित से मांगा गया बायोडेटा, जमकर हुआ विरोध
X
JNU में विवाद: पद्मभूषण से सम्मानित से मांगा गया बायोडेटा, जमकर हुआ विरोध

नई दिल्ली: लंबे समय से जेएनयू यूनिवर्सिटी से जुड़ी इतिहासकार रोमिला थापर से जेएनयू प्रशासन द्वारा बायोडेटा मांगने पर विवाद हो गया और इसका यूनिवर्सिटी के छात्रों, शिक्षकों और इतिहासकारों ने इसका जमकर विरोध किया। उनका मानना है कि यूनिवर्सिटी का ये फैसला अपमानजनक है। वहीं यूनिवर्सिटी का कहना है कि उन्होंने नियमों के तहत ही सीवी मांगने का पत्र लिखा है।

बायोडाटा मांगे जाने पर छात्रों, शिक्षकों और इतिहासकारों ने किया विरोध-

इतिहासकार रोमिला थापर ने प्राचीन इतिहास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इतिहासकार रोमिला थापर इस यूनिवर्सिटी से साल 1993 से जुड़ी हुई हैं। यूनिवर्सिटी के प्रशासन ने रोमिला को पत्र लिखकर उनसे बायोडेटी मांगा थी। इस पर रोमिला ने जवाब भी दिया लेकिन यूनिवर्सिटी के छात्रों, शिक्षकों और इतिहासकारों ने इसका विरोध किया है। वहीं यूनिवर्सिटी का कहना है कि उन्होंने नियमों के तहत ही सीवी मांगने का पत्र लिखा है और यह किसी भी तरह से गलत नहीं है।

इसे भी पढ़ें: दिल्ली में पाक दूतावास के बाहर सिखों का प्रदर्शन, प्रदर्शनकारियों ने इमरान खान का पुतला फूंका

नियमों के जरुरी है सीवी मांगना- यूनिवर्सिटी प्रशासन

यूनिवर्सिटी प्रशासन ने कहा ये किसी भी तरह से गलत नहीं है और यह नियमों के तहत जरुरी भी है। यूनिवर्सिटी का कहना है कि ये पत्र केवल उन प्रफेसर इमेरिटस को लिखे गए हैं जो 75 साल की उम्र पार कर चुके हैं। इसके जरिए यूनिवर्सिटी उनकी उपलब्धता और यूनिवर्सिटी से उनके रिश्ते जारी रखने की इच्छा का भी पता चल सके। इसके जरिए यूनिवर्सिटी द्वारा गठित किए गए एक कमिटी प्रफेसर इमेरिटस के किए गए कार्यों का आकलन करती है। और इसके बाद अपने सिफारिशें एग्टिक्यूटिव काउंसिल को भेजती है, जहां प्रोफेसर्स के सेवा विस्तार का फैसला होता है।

पिछले 3 सालों से यूनिवर्सिटी गए ही नहीं बहुत से प्रफेसर्स-

इस मामले में सरकारी सूत्रों का कहना है कि यूनिवर्सिटी में ऐसे 25 प्रोफेसर्स हैं जिनको प्रोफेसर इमेरिटस का आजीवन दर्जा मिला है। यूनिवर्सिटी के एग्टिक्यूटिव काउंसिल ने इसका रिव्यू किया, जिसमें पता चला है कि इनमें से कई ऐसे प्रफेसर्स हैं जो पिछले 3 सालों से यूनिवर्सिटी गए ही नहीं हैं और तो और किसी अकादमी कार्य में अपना योगदान भी नहीं दिया है। काउंसिल ने अब प्रफेसर्स जिनकी उम्र 75 साल से अधिक है उनका रिव्यू करने का फैसला किया है। इसके जरिए यूनिवर्सिटी उनकी उपलब्धता और यूनिवर्सिटी से उनके रिश्ते जारी रखने की इच्छा पर काउंसिल अपना फैसला लेगी।

प्रफेसर इमेरिटस दर्जा आजीवन- दीपक नैय्यर

वहीं जिन्होंने इतिहासकार रोमिला थापर के बायोडाटा मांगने का विरोध किया है, उनका कहना है कि यूजीसी का नियम अभी आया है और रोमिला उनमें शामिल हैं जिनका प्रफेसर इमेरिटस दर्जा आजीवन है। वहीं इस मामले में दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और जेएनयू के प्रफेसर इमेरिट्स दीपक नैय्यर ने कहा कि, मैंने कभी इस तरह का मामला नहीं सुना। प्रोफेसर इमेरिट्स का दर्जा आजीवन होता है। मुझे इस तरह का कोई पत्र नहीं मिला है, हालांकि मेरी उम्र अभी 75 साल नहीं है।

जानिए क्या कहता है नियम-

जेएनयू के अकादमी नियम 32 (G) के अनुसार, यूनिवर्सिटी का एग्टिक्यूटिव काउंसिल प्रफेसर इमेरिटस के 75 साल पूरे होने पर ये रिव्यू करेगी कि उनका सेवा विस्तार करना है या नहीं। और ये फैसला प्रफेसर के स्वास्थ्य, उपलब्धता और इच्छा पर किया जाएगा। इस नियम के तहत एग्टिक्यूटिव काउंसिल तो एक-एक करके सब कमिटी का गठन करना होगा। हर केस का बातचीत नए सीवी और समकक्षों की राय से परिक्षण करेगी। फिर यह कमेटी अपनी सिफारिशों को काउंसिल को भेजगी जो प्रफेसर के सेवा विस्तार का फैसला लेगी।

बेसिक्स के खिलाफ जा रहा जेएनयू- इतिहासकार रोमिला थाप

बता दें कि इतिहासकार रोमिला थापर पद्मभूषण से सम्मानित हो चूकीं है और उनका कहना है कि यह दर्जा जीवन भर के लिए दिया गया है। जेएनयू बेसिक्स के खिलाफ जा रहा है।

वहीं प्रशासन के इस फैसले को सोशल मीडिया पर भी ट्रोल किया जा है।

इसे भी पढ़ें: कश्मीर में हंगामा! पाकिस्तान का शुरू हुआ पोस्टर वॉर, नहीं बाज आ रहा इमरान

Shreya

Shreya

Next Story