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Karnataka: 84 सीटों पर हर चुनाव में बदल जाती है मतदाताओं की पसंद, इन क्षेत्रों में लिंगायत समुदाय बड़ा फैक्टर

Karnataka Election 2023: कर्नाटक विधानसभा का एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि 84 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर मतदाताओं की पसंद हर चुनाव में बदल जाती है। इनमें से 54 सीटें भाजपा के पास और 19 सीटें कांग्रेस के पास है।

Anshuman Tiwari
Published on: 17 April 2023 5:21 PM IST
Karnataka: 84 सीटों पर हर चुनाव में बदल जाती है मतदाताओं की पसंद, इन क्षेत्रों में लिंगायत समुदाय बड़ा फैक्टर
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Karnataka Election 2023 (photo: social media )

Karnataka Election 2023: कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस में घमासान छिड़ा हुआ है। इन दोनों दलों के अलावा जनता दल एस, आम आदमी पार्टी, एनसीपी और एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज नेता राज्य की चुनावी फिजां को अपने पक्ष में बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इसी सिलसिले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी रविवार को कर्नाटक के दौरे पर पहुंचे थे।

कर्नाटक विधानसभा का एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि 84 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर मतदाताओं की पसंद हर चुनाव में बदल जाती है। इनमें से 54 सीटें भाजपा के पास और 19 सीटें कांग्रेस के पास है। भाजपा ने इन सीटों पर फिर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। इन सीटों पर हार-जीत में लिंगायत समुदाय की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस कारण लिंगायत समुदाय का भरोसा हासिल करने के लिए भाजपा और कांग्रेस में जबर्दस्त सियासी घमासान छिड़ा हुआ है।

आप,एनसीपी और ओवैसी ने जंग को बनाया दिलचस्प

कर्नाटक में अब सभी प्रमुख दलों ने अपने पत्ते खोल दिए हैं। सभी छोटी-बड़ी सियासी पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान करके चुनावी बाजी अपने पक्ष में करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। दक्षिण भारत में कर्नाटक अकेला ऐसा राज्य है जहां मौजूदा समय में भाजपा की सरकार है। इसलिए भाजपा के लिए कर्नाटक का चुनाव प्रतिष्ठा की जंग बना हुआ है। दूसरी ओर कांग्रेस लोगों का भरोसा जीत कर भाजपा को बड़ा झटका देने की कोशिश में जुटी हुई है।

इस बार चुनाव में अधिकांश सीटों पर भाजपा और कांग्रेस उम्मीदवारों के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा है मगर कई सीटों पर त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय मुकाबले के आसार भी बन रहे हैं। पुराने मैसूर क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना जताई जा रही है क्योंकि जद एस का इस इलाके पर काफी प्रभाव है। सियासी जानकारों का मानना है कि आम आदमी पार्टी, एनसीपी और एआईएमआईएम कई सीटों पर कांग्रेस और जद एस की मुसीबतें बढ़ा सकते हैं। ओवैसी के उम्मीदवारों के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की संभावना है जिससे कांग्रेस को सियासी नुकसान हो सकता है।

लिंगायत मतों के लिए भाजपा-कांग्रेस में घमासान

कर्नाटक विधानसभा के संबंध में एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि राज्य की 84 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर हर चुनाव में मतदाताओं की पसंद बदलती रही है। इसका मतलब है कि इन चुनाव क्षेत्रों में हर चुनाव में मतदाता दूसरी पार्टी के उम्मीदवार को जिताते रहे हैं। मौजूदा समय में इनमें से 54 सीटें भाजपा के पास हैं जबकि कांग्रेस के पास 19 और जद एस के पास 8 सीटें हैं। अगर मतदाताओं की पसंद का यही पैटर्न इस बार के चुनाव में भी जारी रहा तो भाजपा को सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

भाजपा के पास जो 54 सीटें हैं, उनमें से 30 सीटें बॉम्बे कर्नाटक और मध्य कर्नाटक के इलाके में हैं। इन इलाकों में लिंगायत मतदाता किसी भी पार्टी की जीत और हार में प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं। इस कारण लिंगायत मतों को हासिल करने के लिए इस बार भाजपा और कांग्रेस में जबर्दस्त सियासी घमासान छिड़ा हुआ है। लिंगायत मतदाताओं का भरोसा हासिल करने के लिए प्रदेश सरकार की ओर से हाल में आरक्षण का कोटा बढ़ाने का बड़ा फैसला भी लिया गया था।

पूर्व सीएम शेट्टार ने बढ़ाई भाजपा की मुसीबत

कर्नाटक विधानसभा की 60 सीटें ऐसी हैं जिन पर पिछले तीन चुनावों से एक ही पार्टी का कब्जा बना हुआ है। इनमें से 27 सीटें कांग्रेस, 23 सीटें भाजपा और 10 सीटें जनता दल एस के पास हैं। तीनों दलों की ओर से इस बार भी इन सीटों पर कब्जा बनाए रखने की जोरदार कोशिशें की जा रही है। इस बीच भाजपा के सामने सबसे बड़ी दिक्कत कुछ वरिष्ठ नेताओं की बगावत है। पार्टी की ओर से टिकट न दिए जाने के बाद इन नेताओं ने बगावती तेवर दिखाया है।

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत बनकर उभरे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की मौजूदगी में सोमवार को उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। छह बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके शेट्टार लिंगायत समुदाय पर असर रखने वाले बड़े नेता माने जाते हैं। उनका पार्टी छोड़ना भाजपा के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।



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Anshuman Tiwari

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