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Karnataka HC: 'सक्षम व्यक्ति पत्नी के भरण-पोषण को बाध्य, तो आश्रित मां के लिए क्यों नहीं'? हाई कोर्ट का बेटों से सवाल

Karnataka High Court : कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा, 'सद् विचार यही कहता है कि व्यक्ति को भगवान की पूजा करने से पहले अपने माता-पिता, गुरू और अतिथि का सम्मान और सेवा करनी चाहिए।'

Aman Kumar Singh
Published on: 15 July 2023 10:27 PM IST
Karnataka HC: सक्षम व्यक्ति पत्नी के भरण-पोषण को बाध्य, तो आश्रित मां के लिए क्यों नहीं? हाई कोर्ट का बेटों से सवाल
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कर्नाटक हाई कोर्ट (Social Media)

Karnataka High Court : कर्नाटक हाईकोर्ट ने शनिवार (15 जुलाई) को एक बुजुर्ग मां और उनके बेटों से जुड़े मामले में ऐसी टिप्पणी दी, जिसे हर बच्चे को सुनना चाहिए। बच्चे बुढ़ापा में मां-बाप का सहारा होते हैं, लेकिन जब वो अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने लगें तो ऐसे में अभिभावक कहां जाएं। कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने आदेश में माता-पिता के प्रति बेटे के कर्तव्यों को लेकर देश की संस्कृति, धर्म ग्रंथों और उपनिषदों की सीख का भी हवाला दिया।

हाईकोर्ट ने कहा, 'यदि एक सक्षम व्यक्ति आश्रित पत्नी के भरण-पोषण को बाध्य है तो आश्रित मां के लिए क्यों नहीं? कर्नाटक हाई कोर्ट ने बुजुर्ग मां को 10 हजार रुपए महीने भरण-पोषण देने के कमिश्नर के आदेश को चुनौती देने वाली दो बेटों की रिट याचिका खारिज कर दी। अदालत ने अपने आदेश में ये टिप्पणी की।

हाई कोर्ट ने बेटों पर लगाया जुर्माना

हाईकोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणी ही नहीं की, बल्कि बुजुर्ग मान के दोनों बेटों पर 5000 रुपए का जुर्माना भी लगाया। साथ ही, आदेश दिया कि ये राशि वे 30 दिन के भीतर अपनी मां को देंगे। अगर, तय समय सीमा में पैसा नहीं दिया जाता है तो उसमें रोजाना के हिसाब से 100 रुपए अतिरिक्त जुड़ते चले जाएंगे। कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court News) ने आदेश में माता-पिता के प्रति बेटे के कर्तव्यों को लेकर देश की संस्कृति, धर्म ग्रंथों और उपनिषदों का भी हवाला दिया।

तैत्तिरीयोपनिषद का उल्लेख

हाई कोर्ट ने आदेश में कहा, 'देश का कानून, धर्म और परंपरा कहती है कि बेटों को अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करनी चाहिए। तैत्तिरीयोपनिषद (Taittiriya Upanishad In Hindi) में कहा गया है कि, जब कोई छात्र गुरुकुल में रहता है तो गुरु या शिक्षक उसे यही सीख देते हैं कि माता, पिता, गुरु और अतिथि देवता होते हैं।'

'युवाओं का एक वर्ग बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल नहीं करता'

अदालत ने आगे कहा कि, 'सद् विचार यही कहता है कि किसी भी व्यक्ति को भगवान की पूजा करने से पहले अपने माता-पिता, गुरू और अतिथि का सम्मान तथा सेवा करनी चाहिए। उन्हें ये कहते हुए जरा भी अच्छा नहीं लग रहा कि, आजकल युवाओं का एक वर्ग बुजुर्ग और बीमार माता-पिता की देखभाल नहीं करता। ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ये सुखद विकास नहीं है।'

क्या है मामला?

दरअसल, 84 बुजुर्ग मां ने भरण-पोषण के लिए सहायक उपायुक्त को एक अर्जी दी थी। जिसमें उन्होंने दोनों बेटों से भरण-पोषण दिलाए जाने की गुहार लगायी थी। जिसके बाद दोनों बेटों को आदेश दिया था कि वे दोनों मां को 5-5 हजार रुपए प्रति महीना भरण-पोषण के लिए दें। बेटों ने जब इसे डिप्टी कमिश्नर के यहां चुनौती दी तो डिप्टी कमिश्नर ने राशि बढ़ाकर 10,000 रुपए महीने कर दी। फिर ये मामला हाईकोर्ट तक गया।

मां बेटियों के पास रहती हैं, तो क्यों...

इसके बाद बेटों ने कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया। वहां रिट याचिका के जरिए आदेश रद करने की मांग की। बेटों का कहना था कि, उनकी मां बेटियों के पास रहती हैं। उन्हीं के उकसाने पर भरण-पोषण मांग रही हैं। अगर, मां उनके पास आ जाएं तो वो उन्हें रखने के लिए तैयार हैं। लेकिन, हाई कोर्ट ने बेटों की सारी दलीलें खारिज कर दीं। हाईकोर्ट ने कहा, बेटियों ने तो संपत्ति में हिस्सा भी नहीं मांगा है। बेटों द्वारा निराश्रित छोड़ी गई मां की देखभाल की है, ये सराहना के योग्य है।



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Aman Kumar Singh

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