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Bombay High Court का अहम फैसला, कहा-‘सहमति से सेक्स‘ की न्यूनतम आयु को लेकर आधुनिक दुनिया को देखें सरकारें

Bombay High Court: एक फैसले में बांबे हाईकोर्ट के जस्टिस भारती एच. डांगरे ने उन आपराधिक मामलों की बढ़ती संख्या से संबंधित कई टिप्पणियां कीं, जिनमें आरोपी को दंडित किया जाता है, हालांकि किशोर पीड़िता का कहना है कि ‘वे सहमति से रिश्ते में थे।

Ashish Pandey
Published on: 14 July 2023 11:21 AM IST (Updated on: 14 July 2023 11:34 AM IST)
Bombay High Court का अहम फैसला, कहा-‘सहमति से सेक्स‘ की न्यूनतम आयु को लेकर आधुनिक दुनिया को देखें सरकारें
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Bombay High Court (photo: social media )

Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अब समय आ गया है कि जब किशोरों के बीच सहमति से यौन संबंधों की न्यूनतम उम्र की बात हो तो देश और संसद वैश्विक घटनाओं का संज्ञान ले। एक फैसले में बांबे हाईकोर्ट के जस्टिस भारती एच. डांगरे ने उन आपराधिक मामलों की बढ़ती संख्या से संबंधित कई टिप्पणियां कीं, जिनमें आरोपी को दंडित किया जाता है, हालांकि किशोर पीड़िता का कहना है कि ‘वे सहमति से रिश्ते में थे।‘

लोअर कोर्ट के फैसले को किया रद््द, सुनाया ये फैसला-

जस्टिस ने फरवरी 2019 के लोअर कोर्ट के आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें कोर्ट ने दक्षिण मुंबई की 17 साल और पांच महीने की लड़की से ‘दुष्कर्म‘ करने के लिए 25 वर्षीय आरोपी को 10 साल की कठोर जेल की सजा सुनाई थी, जो केवल छह महीने कम थी। भारत में आधिकारिक ‘सहमति की उम्र‘ 18 साल है।

जस्टिस डांगरे ने कहा कि लोअर कोर्ट के आदेश से सहमत होना मुश्किल है कि पुरुष और लड़की के बीच यौन संबंध ‘सहमति‘ से था, लेकिन पीड़ित (लड़की) नाबालिग थी।

क्या है पूरा मामला-

नाबालिग लड़की ने लगभग दो वर्षों तक आरोपी के साथ संबंध रखने की बात स्वीकार की थी और अपनी मर्जी से महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि में उसके साथ यात्रा की थी, क्योंकि उनका ‘निकाह‘ 6 सितंबर 2014 को उनकी सहमति से और बिना किसी दबाव के किया गया था। हालांकि लड़की इसका कोई सबूत नहीं दे सकी, लेकिन वह एक बार गर्भवती भी हुई थी और मार्च 2016 में अपने पिता की सहमति से उसने गर्भपात कराया था।

जस्टिस ने क्या कहा-

जस्टिस ने कहा, ‘‘महत्वपूर्ण बात यह है कि रोमांटिक रिश्ते के अपराधीकरण ने न्यायपालिका, पुलिस और बाल संरक्षण प्रणाली का महत्वपूर्ण समय बर्बाद करके आपराधिक न्याय प्रणाली पर बोझ डाल दिया है। अंततः जब पीड़िता आरोपी के खिलाफ आरोप का समर्थन न करके अपने बयान से मुकर जाती है, उसके साथ साझा किए गए रोमांटिक रिश्ते के मद्देनजर, तब इसका परिणाम केवल बरी हो सकता है।

इस मामले में लड़की ने कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, उसे वयस्क माना जाता है और उसने उस आदमी के साथ ‘निकाह‘ कर लिया है, जिससे वह बहुत प्यार करती थी। उसने ‘पति और पत्नी‘ के रूप में विभिन्न राज्यों में कई महीनों तक यात्रा की और उसके साथ रही। जस्टिस डांगरे ने कहा कि शारीरिक आकर्षण या मोह हमेशा तब सामने आता है, जब कोई किशोर यौन संबंध में प्रवेश करता है और जबकि अन्य देशों ने ‘सहमति की उम्र‘ कम कर दी है, भारत में 1940 से 2012 तक यह 16 थी जब इसे बढ़ाकर 18 कर दिया गया और अब समय आ गया है कि भारत भी दुनिया भर के घटनाक्रमों का संज्ञान ले।



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Ashish Pandey

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