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Siddaramaiah and Congress: इन खास वजहों से सिद्धारमैया कांग्रेस के लिए बन गए जरूरी और डीके शिवकुमार रह गए पीछे ?
Siddaramaiah and Congress: यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जिस चेहरे पर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटें जीतीं वह मुख्यमंत्री की रेस में पिछड़ गया। आखिर डीके क्यों रह गए पीछे और सिद्धारमैया ने मार ली बाजी।
Siddaramaiah and Congress: कहा जाता है राजनीति में कब क्या होगा यह कहना मुश्किल है। कर्नाटक में भी ऐसा ही हुआ मेहनत डीके शिवकुमार ने किया और ताज किसी और के सिर सजा। कर्नाटक का सिकंदर कौन अब यह फाइनल हो चुका है। पांच दिनों तक मैराथन बैठकों और मंथन के बाद आखिर राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा? यह फाइनल हो गया। कांग्रेस ने सिद्धारमैया के नाम पर मुहर लगा दी। अब यह तय हो गया है कि कांग्रेस के सीनियर लीडर सिद्धारमैया ही राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे। सिद्धारमैया ने सीएम की रेस में कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार को पीछे छोड़ दिया।
मुख्यमंत्री की रेस में डीके का नाम भी चल रहा था। डीके लगातार कोशिश में लगे रहे कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी तक से मुलाकात की, लेकिन उनकी बात नहीं बनी और अंततः सिद्धारमैया डीके पर भारी पड़ गए। अब यहां सबसे बड़ा सवाल उठता है कि आखिर जिस चेहरे पर कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा का चुनाव लड़ा उसे मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया। ऐसा क्या हो गया कि जो जो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत का स्तंभ था उसे ही पीछे छोड़ दिया गया और सिद्धारमैया के सिर ताज रख दिया गया। कुछ तो वजह रही होगी कि डीके आउट और सिद्धारमैया इन। आखिर कैसे डीके शिवकुमार पर सिद्धारमैया भारी पड़े? आइए जानते हैं कि आखिर क्यो वह वजहें हैं-
हम यहां आपको ऐसे पांच कारण बताएंगे जिसके कारण डीके मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और सिद्धारमैया ने बाजी मार ली।
1. सिद्धारमैया को 95 विधायकों का साथ-
कर्नाटक विधानसभा चुनाव डीके शिवकुमार के चेहरे पर लड़ा गया और कांग्रेस ने 224 में से 135 सीटों पर शानदार जीत हासिल की। लेकिन जो विधायक जीत कर आए उनमें से अधिकतर की पसंद डीके नहीं सिद्धारमैया थे। जानकारों की मानें तो जब विधायक दल की बैठक हुई तो उसमें 95 विधायकों ने खुलकर सिद्धारमैया का नाम लिया। इससे मतलब साफ था कि विधायक सिद्धारमैया को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। अब ऐसे में अगर कांग्रेस ने सिद्धारमैया की जगह डीके को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बना दिया होता तो संभव है कि आगे चलकर सिद्धारमैया बगावत कर देते और कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ जाती। इस कारण कांग्रेस आलाकमान ने डीके को छोड़ सिद्धारमैया को कर्नाटक की कमान सौंपी।
2. डीके पर मुकदमों की मार-
डीके शिवकुमार का सीएम की रेस में पिछड़ने का दूसरा सबसे बड़ा कारण उन पर चल रहे मुकदमे हैं। कांग्रेस को सबसे बड़ी चिंता यही सता रही है कि डीके के खिलाफ कई मामले दर्ज हैं और वहीं कर्नाटक के डीजीपी को ही सीबीआई का नया डायरेक्टर भी बना दिया गया है। यह भी कहा जाता है कि नए डायरेक्टर डीके शिवकुमार को करीब से जानते हैं। इन दोनों के बीच बिल्कुल नहीं बनती है। ऐसे में कांग्रेस को यह लगा कि अगर डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है तो सीबीआई उनकी पुरानी फाइलों को खोल देगी और इसका नुकसान सरकार को उठाना पड़ेगा। नई सरकार पर मुसीबतें आने लगेंगी। यही कारण रहा कि कांग्रेस ने डीके को सीएम नहीं बनाया।
3. सिद्धारमैया की मजबूत पैठ भी बनी बड़ी वजह-
यह सबसे बड़ा कारण है सिद्धारमैया पिछड़े वर्ग से आते हैं। उनकी पिछड़े वर्ग के साथ ही हार वर्ग में मजबूत पकड़ है। साखतौर पर दलित, पिछड़े और मुसलमानों के बीच उनकी काफी लोकप्रिय है। अब ऐसे में कांग्रेस ने अगर सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री नहीं बनाया होता तो हो सकता है कि वह पार्टी के खिलाफ जा सकते थे। अगर वे ऐसा करते तो ऐसी स्थिति में कांग्रेस के हाथों से दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग का एक बड़ा वोट बैंक भी खिसक सकता था। जिसका कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो जाता।
4. 2024 के लोकसभा चुनाव पर फोकस-
कर्नाटक में 2013 और फिर 2018 में सरकार बनाने के बाद भी कांग्रेस का लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन ठीक नहीं रहा। ऐसे में पार्टी इस बार कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है। वहीं सिद्धारमैया को पार्टी और सरकार दोनों ही चलाने का काफी अनुभव है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं, जिसमें से 2019 में कांग्रेस को केवल एक सीटे से ही संतोष करना पड़ा था। यही नहीं खुद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी गुलबर्गा से चुनाव हार गए थे। ऐसे में अब जब फिर से राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है तो पार्टी ने इस बार ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य बनाया है। ऐसे में कांग्रेस हाईकमान को सिद्धारमैया का चेहरा ज्यादा मजबूत समझ दिखा और उन्हें कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाया। अब वे कांग्रेस के लिए 2024 में कितना फोयदेमंद साबित होंगे यह तो लोकसभा चुनाव के बाद ही पता चलेगा।
5.‘अहिन्दा‘ फॉर्मूला भी रहा बड़ा कारण-
सिद्धारमैया राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। उनकी पकड़ पिछड़े, दलित और अल्पसंख्य सहित हर वर्ग में है। वे लंबे समय से अल्पसंख्यातारु (अल्पसंख्यक), हिंदूलिद्वारू (पिछड़ा वर्ग) और दलितारु (दलित वर्ग) फॉर्मूले पर काम कर रहे थे। अहिन्दा समीकरण के तहत सिद्धारमैया का फोकस कर्नाटक की 61 प्रतिशत आबादी है। वे हस फार्मूले पर 2004 से ही काम कर रहे हैं और काफी हद तक ये सफल भी रहा। ये ऐसा फॉर्मूला है, जिसमें अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़ा वर्ग के वोटर्स को एक साथ लाया जा सकता है। कर्नाटक में दलित, आदिवासी और मुस्लिमों की आबादी राज्य की कुल आबादी का 39 फीसदी है, जब सिद्धारमैया जिस कुरबा जाति से आते हैं उसकी आबादी भी सात प्रतिशत के आसपास है। कांग्रेस 2009 के बाद से राज्य में इसी समीकरण के सहारे कर्नाटक की राजनीति में मजबूत पकड़ बनाए हुई है और यही कारण है कि कांग्रेस इसे किसी भी सूरत में कमजोर नहीं करना चाहती है। इसके कारण सिद्धारमैया यहां भी मजबूत पड़े।
इमोशनल फैक्टर भी कर गया काम-
विधानसभा चुनाव से पहले ही सिद्धारमैया ने घोषणा कर दिया था कि ये उनका आखिरी चुनाव है। इसके बाद वह राजनीति में तो रहेंगे, लेकिन कोई पद नहीं सभालेंगे और चुनाव के बाद भी उन्होंने हाईकमान के सामने यही दांव खेला। उन्होंने कहा कि वह इसके बाद कोई पद नहीं लेंगे। ऐसे में आखिरी बार उन्हें मौका दिया जाना चाहिए। कांग्रेस पार्टी को भी ये बात ठीक लगी। ऐसा इसलिए भी क्योंकि कर्नाटक में अब बीएस येदियुरप्पा के बाद सिद्धारमैया ही सबसे वरिष्ठ नेता हैं। ऐसे में पार्टी को उनके अनुभव का फायदा मिल सकता है।
सिद्धारमैया के लिए ये मजबूत फैक्टर उनके लिए काम आया और उन्हें ने डीके शिवकुमार को पीछे छोड़ दिया और कांग्रेस आलाकमान को भी यह लगा कि सिद्धारमैया पार्टी के लिए डीके से बेहतर रहेंगे और कांग्रेस ने सिद्धारमैया को ही कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाना बेहतर समझा। इस तरह सिद्धारमैया रेस में आगे निकल गए।