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इस दिग्गज संत का निधन, 1200 साल पुराने मठ के थे प्रमुख, हर तरफ शोक की लहर
एडनीर मठ के प्रमुख संत केशवानंद भारती का निधन हो गया है। केशवानंद भारती 79 साल के थे। वे केरल के कासरगोड़ में एडनीर मठ के प्रमुख थे।
नई दिल्ली: एडनीर मठ के प्रमुख संत केशवानंद भारती का निधन हो गया है। केशवानंद भारती 79 साल के थे। वे केरल के कासरगोड़ में एडनीर मठ के प्रमुख थे। सांस लेने में तकलीफ और हृदय सम्बन्धी दिक्कतों के कारण उन्हें मैंगलुरु के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां पर उन्होंने अंतिम सांस ली।
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कौन थे केशवानंद भारती
केशवानंद भारती साल 1961 से मठ के प्रमुख थे। भारती को पूरा देश संविधान बचाने वाले शख्स के तौर पर जानता है। वे एक संत होने के साथ-साथ एक क्लासिकल सिंगर भी थे।
15 साल तक उन्होंने यक्षगाना मेला में गायक और डायरेक्टर के तौर पर भाग लिया। उन्होंने यक्षगान को अलग मुकाम पर पहुंचाया था और इसके साथ ही उन्हें वो प्रमुखता मिली, जिसके वे हकदार थे।
उन्होंने मठ की संपत्ति को लेकर 1973 में केरल सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी थी। संत केशवानंद के पक्ष में उस समय 13 जजों की बेंच ने संविधान के मौलिक अधिकार को लेकर ऐतिहासिक जजमेंट दिया था।
केशवानंद की फोटो(साभार-सोशल मीडिया)
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1200 साल पुराना है मठ का इतिहास
एडनीर मठ विश्व विख्यात है। 19 साल की उम्र में संत केशवानंद भारती ने संन्यास का मार्ग अपना लिया था। जब उनके गुरु का निधन हुआ तो वे इस मठ के प्रमुख बन गए।
ऐसा कहा जाता है कि इस मठ का इतिहास करीब 1,200 साल पुराना है। यही वजह है कि केरल और कर्नाटक में इस मठ को बड़े ही आदर और सम्मान की नजरों से देखा जाता है।
केशवानंद की फोटो(साभार-सोशल मीडिया)
कोर्ट कचहरी के लगाने पड़े थे चक्कर
बता दें कि भारती ने संविधान संशोधन के जरिए संपत्ति के मूल अधिकार पर पाबंदी लगाने वाले केंद्र सरकार के 24वें, 25वें और 29वें संविधान संशोधनों को चुनौती दी थी। ये वाकया साल 1970 का है।
उस वक्त केरल हाईकोर्ट में इस मठ के मुखिया होने के नाते केशवानंद भारती ने एक याचिका दायर की थी। उन्होंने अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए मांग की थी कि उन्हें अपनी धार्मिक संपदा का प्रबंधन करने का मूल अधिकार दिया जाए।
जिसकी सुनवाई लगभग 68 दिनों तक चली थी और सुनवाई के बाद भारती केस हार गए थे। जिसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने का निर्णय किया था और फिर इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में जजमेंट दिया था।
ये मठ भारत की नाट्य और नृत्य परंपरा को प्रोत्साहित करने के लिए के भी दुनिया भर में जाना जाता है। साठ-सत्तर के दशक में कासरगोड़ में इस मठ के पास हजारों एकड़ भूमि थी।
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