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रामनरेश त्रिपाठीः हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए... अमर गीत के रचयिता

रामनरेश त्रिपाठी के पिता पं. रामदत्त त्रिपाठी भारतीय सेना में सूबेदार रहे थे। इसलिए पंडित रामनरेश त्रिपाठी को धर्मनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा व राष्ट्रभक्ति की भावना विरासत में मिली थी।

Roshni Khan
Published on: 15 Jan 2021 11:59 AM IST
रामनरेश त्रिपाठीः हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए... अमर गीत के रचयिता
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रामनरेश त्रिपाठीः हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए... अमर गीत के रचयिता (PC: social media)

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: प्रदेश की पावन धरती पर सुल्तानपुर जिले के ग्राम कोइरीपुर में 4 मार्च, 1889 को एक कृषक परिवार में जन्मे छायावादी कवि रामनरेश त्रिपाठी की आज पुण्यतिथि है। शायद ही किसी को पता हो कि हे प्रभो आनन्ददाता ज्ञान हमको दीजिए... जैसे कालजयी गीत की रचना त्रिपाठी ने ही की थी।

रामनरेश त्रिपाठी के पिता पं. रामदत्त त्रिपाठी भारतीय सेना में सूबेदार रहे थे। इसलिए पंडित रामनरेश त्रिपाठी को धर्मनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा व राष्ट्रभक्ति की भावना विरासत में मिली थी। जिससे उनमें दृढ़ता, निर्भीकता और आत्मविश्वास के गुणों का विकास हुआ।

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प्रारम्भिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई थी

वैसे पं. त्रिपाठी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई थी। हाईस्कूल वह निकटवर्ती जौनपुर जिले में पढ़ने गए मगर वह दसवीं की शिक्षा पूरी नहीं कर सके और अट्ठारह वर्ष की आयु में पिता से अनबन होने पर वह कलकत्ता चले गए। लेकिन संक्रामक रोग हो जाने की वजह से वह कलकत्ता में अधिक समय तक नहीं रह सके।

सौभाग्य से एक व्यक्ति की सलाह मानकर वह स्वास्थ्य सुधार के लिए जयपुर राज्य के सीकर ठिकाना स्थित फतेहपुर ग्राम में सेठ रामवल्लभ नेवरिया के पास चले गए। यह अजब संयोग था कि मरणासन्न स्थिति में वह अपने घर परिवार में न जाकर सुदूर अपरिचित राजपूताना के एक अजनबी परिवार में गए जहां शीघ्र ही इलाज व स्वास्थ्यप्रद जलवायु पाकर रोगमुक्त हो गए।

सेठ रामवल्लभ के पुत्रों की शिक्षा-दीक्षा की जिम्मेदारी को कुशलतापूर्वक निभाया

पंडित त्रिपाठी ने सेठ रामवल्लभ के पुत्रों की शिक्षा-दीक्षा की जिम्मेदारी को कुशलतापूर्वक निभाया। इस दौरान उनकी लेखनी पर मां सरस्वती की मेहरबानी हुई और उन्होंने ''हे प्रभो आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिये'' जैसी बेजोड़ रचना कर डाली जो आज भी अनेक विद्यालयों में प्रार्थना के रूप में गाई जाती है।

एक बहुमुखी प्रतिभा वाले साहित्यकार थे

त्रिपाठी एक बहुमुखी प्रतिभा वाले साहित्यकार थे। बाद में फतेहपुर पं. त्रिपाठी की साहित्य साधना स्थली बना। उन्होंने उन दिनों तमाम छोटे-बड़े बालोपयोगी काव्य संग्रह, सामाजिक उपन्यास और हिन्दी में महाभारत लिखी। रामनरेश त्रिपाठी पर तुलसीदास व उनकी अमर रचना रामचरित मानस का गहरा प्रभाव था, वह मानस को घर घर तक पहुँचाना चाहते थे। बेढब बनारसी ने उनके बारे में कहा था..

तुम तोप और मैं लाठी, तुम रामचरित मानस निर्मल, मैं रामनरेश त्रिपाठी।

वर्ष 1915 में पं. त्रिपाठी ज्ञान एवं अनुभव की संचित पूंजी लेकर पुण्यतीर्थ एवं ज्ञानतीर्थ प्रयाग गए और उसी क्षेत्र को उन्होंने अपनी कर्मस्थली बनाया। थोडी पूंजी से उन्होंने प्रकाशन का व्यवसाय भी आरम्भ किया। पंडित त्रिपाठी ने गद्य और पद्य का कोई कोना अछूता नहीं छोड़ा तथा मौलिकता के नियम को ध्यान में रखकर रचनाओं को अंजाम दिया। हिन्दी जगत में वह मार्गदर्शी साहित्यकार के रूप में अवरित हुए और सारे देश में लोकप्रिय हो गए।

स्वपनों के चित्र उनका पहला कहानी संग्रह है

प्रतिभा ऐसी कि वर्ष 1920 में मात्र 21 दिनों में हिन्दी के प्रथम एवं सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय खण्डकाव्य ''पथिक'' की रचना की। इसके अतिरिक्त ''मिलन'' और ''स्वप्न'' भी उनके प्रसिद्ध मौलिक खण्डकाव्यों में शामिल हैं। स्वपनों के चित्र उनका पहला कहानी संग्रह है। कविता कौमुदी के सात विशाल एवं अनुपम संग्रह-ग्रंथों का भी उन्होंने बडे परिश्रम से सम्पादन एवं प्रकाशन किया।

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पं. त्रिपाठी कलम के धनी ही नहीं बल्कि कर्मशूर भी थे

पं. त्रिपाठी कलम के धनी ही नहीं बल्कि कर्मशूर भी थे। महात्मा गांधी के निर्देश पर वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रचार मंत्री के रूप में हिन्दी जगत के दूत बनकर दक्षिण भारत गए थे। वह पक्के गांधीवादी देशभक्त और राष्ट्र सेवक थे। स्वाधीनता संग्राम और किसान आन्दोलनों में भाग लेकर वह जेल भी गए। पं. त्रिपाठी को अपने जीवन काल में कोई राजकीय सम्मान तो नही मिला पर उससे भी कही ज्यादा गौरवप्रद लोक सम्मान तथा अक्षय यश उन पर अवश्य बरसा। उन्होंने 16 जनवरी 1962 को अपने कर्मक्षेत्र प्रयाग में ही अंतिम सांस ली।

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