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कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्लाः 174 नाविकों व 18 अधिकारियों के साथ ली थी जलसमाधि
नौसेना में ऐसा कानून भी नहीं है कि कोई युद्ध पोत डूब रहा हो, तो उसका कैप्टन भी उसके साथ डूब जाए। ये एक प्राचीन परंपरा थी जब कैप्टन अपने जलपोत के साथ जलसमाधि लिया करते थे। अब कोई इसका पालन नहीं करता।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: आज कैप्टेन महेंद्र नाथ मुल्ला की अरब सागर में जीवित जलसमाधि का दिन है। जिन्होंने 174 नाविकों और 18 अधिकारियों के साथ खुखरी पर जलसमाधि ली थी। ये उनकी शहादत को सैल्यूट करने का दिन है। आज की पीढ़ी में बहुतों को यह नहीं मालूम होगा कि कैप्टेन महेंद्र नाथ मुल्ला कौन थे और क्यों उन्होंने अरब सागर में अपने जलपोत के साथ जीवित जलसमाधि ले ली थी।
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कोई युद्ध पोत डूब रहा हो, तो उसका कैप्टन भी उसके साथ डूब जाए
नौसेना में ऐसा कानून भी नहीं है कि कोई युद्ध पोत डूब रहा हो, तो उसका कैप्टन भी उसके साथ डूब जाए। ये एक प्राचीन परंपरा थी जब कैप्टन अपने जलपोत के साथ जलसमाधि लिया करते थे। अब कोई इसका पालन नहीं करता। कैप्टन मुल्ला के पास खुद को सुरक्षित निकालने का अवसर था लेकिन उनके सैकड़ों नाविक जहाज में फंसे थे शायद इसी भावना के चलते उन्होंने साथियों के साथ मौत को चुना।
ये बात 1971 की जंग की है। भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया था इस बीच एक मौका ऐसा आया, जब पाकिस्तानी नौसेना ने भारतीय नौसेना को नुकसान पहुँचाया। भारतीय नौसेना को खबर मिल गई थी कि पाकिस्तानी पनडुब्बियाँ मुंबई बंदरगाह को अपना निशाना बनाएंगी। इसलिए लड़ाई शुरू होने से पहले ही सारे नौसेना फ़्लीट को मुंबई से बाहर करने की योजना बनी।
जब नौसेना के पोत मुंबई छोड़ रहे थे, तब उन्हें यह पता नहीं था
जब नौसेना के पोत मुंबई छोड़ रहे थे, तब उन्हें यह पता नहीं था कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी 'पीएनएस हंगोर' ठीक उनके नीचे उन्हें डुबाने के लिए तैयार है।
इस बीच पाकिस्तानी पनडुब्बी की एयरकंडीशनिंग में कुछ दिक्कत आ गई और उसे ठीक करने के लिए उसे समुद्र की सतह पर आना पड़ा। पनडुब्बी तो ठीक कर ली गई, लेकिन उसकी ओर से भेजे संदेशों से भारतीय नौसेना को यह अंदाज़ा हो गया कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी दीव के तट के आसपास है।
भारतीय नौसेना मुख्यालय ने आदेश दिया कि भारतीय जल सीमा में घूम रही इस पनडुब्बी को तुरंत नष्ट किया जाए और इसके लिए एंटी सबमरीन फ़्रिगेट 'आईएनएस खुखरी' और 'कृपाण' दो समुद्री पोतों को लगाया गया। दोनों पोत अपने मिशन पर 8 दिसम्बर को मुंबई से चले और 9 दिसम्बर की सुबह होने तक उस इलाक़े में पहुँच गए, जहाँ पाकिस्तानी पनडुब्बी के होने का संदेह था।
टोह लेने की लंबी दूरी की अपनी क्षमता के कारण पाकिस्तानी पनडुब्बी 'हंगोर' को पहले ही खुखरी और कृपाण के होने का पता चल गया। यह दोनों पोत ज़िग ज़ैग तरीक़े से पाकिस्तानी पनडुब्बी को खोज कर रहे थे। हंगोर ने उनके नज़दीक आने का इंतज़ार किया। पहला टॉरपीडो उसने कृपाण पर चलाया, लेकिन टॉरपीडो उसके नीचे से गुज़र गया और फटा ही नहीं। यह टॉरपीडो 3000 मीटर की दूरी से दागा गया था।
captain mahendra nath mulla (PC: social media)
भारतीय पोतों को अब हंगोर की स्थिति का अंदाज़ा हो गया था
भारतीय पोतों को अब हंगोर की स्थिति का अंदाज़ा हो गया था। पीएनएस हंगोर के पास विकल्प थे कि वह वहाँ से भागने की कोशिश करे या दूसरा टॉरपीडो दागे। उसने दूसरा विकल्प चुना। पाकिस्तानी नौसेना के लेफ़्टिनेंट कमांडर तसनीम अहमद के अनुसार- "मैंने हाई स्पीड पर टर्न अराउंड करके आईएनएस खुखरी पर पीछे से प्रहार किया। डेढ़ मिनट की रन थी और टॉरपीडो खुखरी की मैगज़ीन के नीचे जाकर फटा और दो या तीन मिनट के भीतर जहाज़ डूबना शुरू हो गया।"
आईएनएस खुखरी में परंपरा थी कि रात आठ बजकर 45 मिनट के समाचार सभी इकट्ठा होकर एक साथ सुना करते थे, ताकि उन्हें पता रहे कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है। समाचार शुरू हुए ही थे कि पहले टारपीडो ने खुखरी को निशाना बनाया।
जहाज़ के कप्तान महेन्द्रनाथ मुल्ला अपनी कुर्सी से गिर गए
जहाज़ के कप्तान महेन्द्रनाथ मुल्ला अपनी कुर्सी से गिर गए और उनका सिर लोहे से टकराया और उनके सिर से रक्त बहने लगा। दूसरा धमाका होते ही पूरे पोत की बिजली चली गई। महेन्द्रनाथ मुल्ला ने अपने सहकर्मी मनु शर्मा को आदेश दिया कि वह पता लगाएं कि क्या हो रहा है। मनु ने देखा कि खुखरी में दो छेद हो चुके थे और उसमें तेज़ी से पानी भर रहा था। उसके फ़नेल से लपटें निकल रही थीं।
बसु इससे पहले कि कुछ समझ पाते कि क्या हो रहा है, पानी उनके घुटनों तक पहुँच गया था
उधर जब लेफ़्टिनेंट समीर काँति बसु भाग कर ब्रिज पर पहुँचे, उस समय महेन्द्रनाथ मुल्ला चीफ़ योमेन से कह रहे थे कि वह पश्चिमी नौसेना कमान के प्रमुख को सिग्नल भेजें कि खुखरी पर हमला हुआ है। बसु इससे पहले कि कुछ समझ पाते कि क्या हो रहा है, पानी उनके घुटनों तक पहुँच गया था। लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे। खुखरी का ब्रिज समुद्री सतह से चौथी मंज़िल पर था, लेकिन मिनट भर से कम समय में ब्रिज और समुद्र का स्तर बराबर हो चुका था।
मनु शर्मा और लेफ़्टिनेंट कुंदनमल आईएनएस खुखरी के ब्रिज पर महेन्द्रनाथ मुल्ला के साथ थे
मनु शर्मा और लेफ़्टिनेंट कुंदनमल आईएनएस खुखरी के ब्रिज पर महेन्द्रनाथ मुल्ला के साथ थे। महेन्द्रनाथ मुल्ला ने उनको ब्रिज से नीचे धक्का दिया। उन्होंने उनको भी साथ लाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। जब मनु शर्मा ने समुद्र में छलांग लगाई तो पूरे पानी में आग लगी हुई थी और उन्हें सुरक्षित बचने के लिए आग के नीचे से तैरना पड़ा। थोड़ी दूर जाकर मनु ने देखा कि खुखरी का अगला हिस्सा 80 डिग्री को कोण बनाते हुए लगभग सीधा हो गया है। पूरे पोत मे आग लगी हुई है और महेन्द्रनाथ मुल्ला अपनी सीट पर बैठे रेलिंग पकड़े हुए थे और उनके हाथ में अब भी जलती हुई सिगरेट थी।
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इस समय भारत के 174 नाविक और 18 अधिकारी इस ऑपरेशन में मारे गए। कप्तान महेन्द्रनाथ मुल्ला ने भारतीय नौसेना की सर्वोच्च परंपरा का निर्वाह करते हुए अपना जहाज़ नहीं छोड़ा और जल समाधि ली। उनकी इस वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया।
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