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बलिदान इस बात के लिएः सीस कटा सकते हैं, केश नहीं और सिर कट गया
सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर का असली नाम त्याग मल था लेकिन उनकी बहादुरी को देखते हुए उनके पिता गुरु हर गोविंद जो कि सिखों के आठवें गुरु भी थे ने उन्हें ये नाम दिया था।
लखनऊ: मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर से मौत या इस्लाम स्वीकार में से एक चुनने के लिए कहा। वह नहीं माने तो उनके साथ गिरफ्तार किए गए तीन अनुयायियों को खौफनाक मौत दी गई। भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गये, भाई दयाल दास को तेल के खौलते कड़ाहे में फिकवा दिया गया और भाई सति दास को जिंदा जलवा दिया गया। लेकिन गुरु तेग बहादुर अडिग रहे। गुरु साहब ने कहा सीस कटा सकते है केश नहीं।
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सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर का असली नाम त्याग मल था लेकिन उनकी बहादुरी को देखते हुए उनके पिता गुरु हर गोविंद जो कि सिखों के आठवें गुरु भी थे ने उन्हें ये नाम दिया था। सिखों के नवें गुरु के शहीदी दिवस को लेकर कई तारीखें हैं। कुछ इतिहासकार कहते हैं 11 नवंबर थी जो कुछ कहते हैं 23 या 24 नवंबर। तारीखों के चक्कर में न पड़ते हुए हम गुरु तेग बहादुर की बहादुरी, त्याग और बलिदान की चर्चा करते हैं जिसने सिख पंथ की दिशा ही बदल दी।
इतिहास सिखों के बलिदान से भरा पड़ा है
इतिहास सिखों के बलिदान से भरा पड़ा है। लेकिन पहले बात करते हैं सिखों के आठवें गुरु हर गोविंद की। वह पहले योद्धा थे जिसने अन्याय व अत्याचार के खिलाफ शस्त्र उठाया। बदलते हालात के मुताबिक गुरु हरगोबिन्दसाहिब ने शस्त्र एवं शास्त्र दोनो की शिक्षा ग्रहण की। वह महान योद्धा थे। और शास्त्र पर भी उनका अधिकार था। इसलिए गुरु हरगोबिन्दसाहिब का चिन्तन भी क्रान्तिकारी था।
मीरी और पीरी की दोनों तलवारें उन्हें बाबा बुड्डाजी ने पहनाई
वह चाहते थे सिख कौम शान्ति, भक्ति एवं धर्म के साथ-साथ अत्याचार एवं जुल्म का मुकाबला करने के लिए भी सशक्त बने। गुरु- गद्दी संभालते ही उन्होंने मीरी एवं पीरी नाम की दो तलवारें ग्रहण की। मीरी और पीरी की दोनों तलवारें उन्हें बाबा बुड्डाजी ने पहनाई। यहीं से सिख इतिहास एक नया मोड लेता है।
गुरु तेग बहादुर का जन्म 18 अप्रैल 1621 को अमृतसर में हुआ था। उनका असली नाम त्याग मल था। उन्हें “करतारपुर की जंग” में मुगल सेना के खिलाफ अतुलनीय पराक्रम दिखाने के बाद तेग बहादुर नाम मिला। उन्हें हिंद की चादर भी कहा जाता है।
16 अप्रैल 1664 को वो सिखों को नौवें गुरु बने। गुरु तेग बहादुर की मुगल बादशाह औरंगजेब से विवाद की शुरुआत कश्मीरी पंडितों को लेकर हुई। कश्मीरी पंडित मुगल शासन द्वारा जबरदस्ती मुसलमान बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। उन्होंने गुरु तेग बहादुर से अपनी रक्षा की गुहार लगाई।
गुरु तेग बहादुर ने इसे स्वीकार कर उन्हें अपनी सुरक्षा में ले लिया
गुरु तेग बहादुर ने इसे स्वीकार कर उन्हें अपनी सुरक्षा में ले लिया। औरंगजेब इससे भड़क गया। जुलाई 1675 में गुरु तेग बहादुर अपने तीन अन्य शिष्यों के साथ आनंदपुर से दिल्ली के लिए रवाना हुए। मुगल फौज ने जुलाई 1875 में गिरफ्तार कर लिया। उन्हें करीब तीन-चार महीने तक अलग अलग जगहों पर कैद रखने के बाद पिंजरे में बंद करके दिल्ली लाया गया।
मुगल बादशाह ने गुरु तेग बहादुर से मौत या इस्लाम स्वीकार में से एक चुनने के लिए कहा
मुगल बादशाह ने गुरु तेग बहादुर से मौत या इस्लाम स्वीकार में से एक चुनने के लिए कहा। उनके साथ गिरफ्तार किए गए तीन ब्राह्मणों अनुयायियों के सिर कटवा दिये गये, लेकिन गुरु तेग बहादुर इस सब से कत्तई नहीं डरे। उनके साथ गिरफ्तार हुए भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गये, भाई दयाल दास को तेल के खौलते कड़ाहे में फेंकवा दिया गया और भाई सति दास को जिंदा जलवा दिया गया। लेकिन गुरु तेग बहादुर अडिग रहे।
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औरंगजेब ने उन्हे इस्लाम कबूल करने को कहा कि पर गुरु साहब ने कहा सीस कटा सकते है केश नहीं। तो खिसियाकर औरंगजेब ने गुरुजी का सबके सामने सिर कटवा दिया। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग़ बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। कहा गया है-
"धरम हेत साका जिनि कीआ
सीस दीआ पर सिरड न दीआ।"
आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग़ बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। अपनी महान शहादत देने वाले वह एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे।
रिपोर्ट- रामकृष्ण वाजपेयी
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