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भारत के महान वैज्ञानिक: बड़ी-बड़ी खोजों के लिए मशहूर थे जगदीश चन्द्र बोस

जगदीश चंद्र बोस का जन्म फरीदपुर (अब बांग्लादेश) में भगवान चन्द्र बोस के यहां 30 नवम्बर 1858 को हुआ था। बोस ने कलकत्ता के सेन्ट ज़ेवियर कालेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की फिर मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए लंदन चले गए।

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Published on: 23 Nov 2020 6:17 AM GMT
भारत के महान वैज्ञानिक: बड़ी-बड़ी खोजों के लिए मशहूर थे जगदीश चन्द्र बोस
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भारत के महान वैज्ञानिक: बड़ी-बड़ी खोजों के लिए मशहूर थे जगदीश चन्द्र बोस (Photo by social media)

नई दिल्ली: भारत के एक महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस की आज पुण्य तिथि है। जगदीश चन्द्र बोस का नाम उन विरले वैज्ञानिकों में शुमार है जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे ऐसे वैज्ञानिक थे, जिन्हें भौतिकी, जीवविज्ञान, वनस्पति विज्ञान और पुरातत्व का गहरा ज्ञान था। उन्होंने रेडियो और माइक्रो वेव तरंगों पर काम करने के अलावा वनस्पति विज्ञान में भी कई महत्त्वपूर्ण आविष्कार किये। जगदीश चन्द्र बोस का निधन 78 वर्ष की आयु में 23 नवम्बर 1937 को गिरिडीह (झारखण्ड) में हो गया था।

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लन्दन से की थी पढ़ाई

जगदीश चंद्र बोस का जन्म फरीदपुर (अब बांग्लादेश) में भगवान चन्द्र बोस के यहां 30 नवम्बर 1858 को हुआ था। बोस ने कलकत्ता के सेन्ट ज़ेवियर कालेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की फिर मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए लंदन चले गए। मगर स्वास्थ खराब रहने की वजह से उन्होंने डॉक्टर बनने का विचार त्यागकर कैम्ब्रिज के क्राइस्ट महाविद्यालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। 1896 में उन्होंने लंदन से डॉक्टरेट की उपाधि ली। भारत लौटने के बाद वे कलकत्ता में प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाने लगे।

यहां वह 1915 तक रहे। उस समय भारतीय शिक्षकों को अंग्रेज शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन दिया जाता था। इसका जगदीश चंद्र बोस ने विरोध किया और बिना वेतन के तीन वर्षों तक काम करते रहे, जिसकी वजह से उनकी स्थिति खराब हो गई और उन पर काफी कर्जा हो गया था। इस कर्ज को चुकाने के लिये उन्हें अपनी पुश्तैनी जमीन भी बेचनी पड़ी। चौथे वर्ष जगदीश चंद्र बोस की जीत हुई और उन्हें पूरा वेतन दिया गया। बोस के ही कुछ छात्र जैसे सतेन्द्र नाथ बोस आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री बने।

Jagdish Chandra Bose Jagdish Chandra Bose (Photo by social media)

महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग

जेसी बोस ने वायरलेस संकेत भेजने में बहुत काम किया और सबसे पहले रेडियो संदेशों को पकड़ने के लिए सेमीकंडक्टर का प्रयोग किया। बाद में उन्होंने माइक्रोवेव के क्षेत्र में काम करके यह सिद्ध किया कि पेड़ पौधों के भी जीवन होता है। पौधे भी सजीवो के समान सांस लेते हैं। उन्होंने क्रेस्कोग्राफ नामक ऐसा यंत्र बनाया जिससे पेड़ पौधों के विकास की गति देखी जा सकती थी। इस खोज के लिए उन्हें इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी की सदस्यता दी गई। बोस ने जितने भी शोध और प्रयोग किये वे सब कामचलाऊ लैब में किये गए थे क्योंकि उनके पास इतना पैसा नहीं था कि अच्छी प्रयोगशाला बना सकें। उनकी अधूरी तमन्नाओं को देखते हुए ही कोलकाता में बोस विज्ञान मन्दिर की स्थापना की गयी।

बेहतरीन योगदान

मारकोनी के प्रदर्शन से 2 वर्ष पहले ही 1885 में बोस ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार का प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में जगदीश चंद्र बोस ने दूर से एक घण्टी बजाई और बारूद में विस्फोट कराया था।

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आजकल प्रचलित बहुत सारे माइक्रोवेव उपकरण जैसे वेव गाईड, ध्रुवक, परावैद्युत लैंस, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन डिटेक्टर आदि का उन्नींसवी सदी के अंतिम दशक में बोस ने अविष्कार किया और उपयोग किया था। बोस ने ही सूर्य से आने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन के अस्तित्व का सुझाव दिया था जिसकी पुष्टि 1944 में हुई। इसके बाद बोस ने, किसी घटना पर पौधों की प्रतिक्रिया पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। पौधों की वृद्धि और अन्य जैविक क्रियाओं पर समय के प्रभाव के अध्ययन की बुनियाद जगदीश चंद्र बसु ने डाली थी, जो आज विज्ञान की एक शाखा क्रोनोबायोलॉजी के नाम से प्रसिद्ध है। 1917 में जगदीश चंद्र बोस को ‘नाइट’ की उपाधि प्रदान की गई।

रिपोर्ट- नीलमणि लाल

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