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भगत सिंह के इस क्रांतिकारी साथी को इस बात का था मलाल, ये थी आखिरी इच्छा

बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर 1910 को तत्कालीन बंगाल के बर्दवान जिले के ओरी गांव में हुआ था। उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई कानपुर में पूरी की थी और इस पढ़ाई के दौरान ही उनकी भगत सिंह से मुलाकात हुई थी।

Newstrack
Published on: 18 Nov 2020 6:14 AM GMT
भगत सिंह के इस क्रांतिकारी साथी को इस बात का था मलाल, ये थी आखिरी इच्छा
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भगत सिंह के इस क्रांतिकारी साथी को इस बात का था मलाल, ये थी आखिरी इच्छा (Photo by social media)

लखनऊ: देश को आजादी दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले नायकों में बटुकेश्वर दत्त का अप्रतिम स्थान है। बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ दिल्ली की नेशनल असेंबली में अपनी आवाज बुलंद करने के लिए बम फेंका था। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर काला पानी की सजा सुनाई थी। जेल में जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई कि भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई है तो आजादी के संघर्ष के इस नायक को इस बात का काफी दुख था कि उन्हें फांसी क्यों नहीं दी गई।

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पढ़ाई के दौरान भगत सिंह से मुलाकात

बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर 1910 को तत्कालीन बंगाल के बर्दवान जिले के ओरी गांव में हुआ था। उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई कानपुर में पूरी की थी और इस पढ़ाई के दौरान ही उनकी भगत सिंह से मुलाकात हुई थी।

वे भगत सिंह से काफी प्रभावित हुए और उनके क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और बम बनाना भी सीखा। क्रांतिकारियों ने आगरा में एक बम फैक्ट्री भी बनाई थी जिसमें बटुकेश्वर दत्त का अहम योगदान था।

भगत सिंह के साथ फेंका था बम

ब्रिटिश हुकूमत की ओर से 1929 में पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था। इसके पीछे अंग्रेजों की सोच स्वतंत्रता सेनानियों पर नकेल कसने के लिए पुलिस को ज्यादा अधिकार देने की थी।

इसका विरोध करने के लिए बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ मिलकर नेशनल असेंबली में बम फेंके थे।

दोनों क्रांतिकारियों ने लोगों का ध्यान खींचने के लिए धमाके के साथ अपना विचार रखने वाले पर्चे भी फेंके थे। इस विरोध के कारण यह बिल एक वोट से पारित नहीं हो पाया था। बम धमाके के बाद ये दोनों क्रांतिकारी वहां से भागे नहीं बल्कि स्वेच्छा से गिरफ्तारी दी।

बटुकेश्वर दत्त को काला पानी की सजा

देश के लिए मर मिटने की इच्छा रखने वाले बटुकेश्वर दत्त बाद में फांसी की सजा न मिलने पर काफी दुखी और अपमानित महसूस कर रहे थे। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को तो अंग्रेजों की ओर से फांसी की सजा सुनाई गई थी मगर बटुकेश्वर दत्त को अंग्रेजों ने काला पानी की सजा सुनाई थी।

दुखी होने पर भगत सिंह ने लिखी थी चिट्ठी

बटुकेश्वर दत्त के दुखी होने की बात पता लगने पर भगत सिंह ने उन्हें एक चिट्ठी भी लिखी थी। चिट्ठी में भगत सिंह ने लिखा था कि दुनिया को यह दिखाएं एक क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए कुर्बान ही नहीं हो सकते बल्कि जीवित रह कर जेलों की अंधेरी कोठियों में अंग्रेजी हुकूमत का अत्याचार भी सहन कर सकते हैं।

असहयोग आंदोलन में भी लिया था हिस्सा

काला पानी की सजा सुनाए जाने के बाद बटुकेश्वर दत्त को अंडमान की सेल्युलर जेल में रखा गया था। 1937 में बटुकेश्वर दत्त को बांकीपुर केंद्रीय कारागार पटना लाया गया और 1938 में उनकी रिहाई हुई।

काला पानी की सजा के दौरान वे टीबी के शिकार हो गए थे जिससे कि वे मरते-मरते बचे। बाद में उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 4 साल बाद 1945 में उनकी रिहाई हुई थी।

बटुकेश्वर की जिंदगी का दर्दनाक पहलू

1947 में देश की आजादी के बाद बटुकेश्वर दत्त ने शादी की और फिर वे पटना में रहने लगे। उनकी जिंदगी का एक दर्दनाक पहलू यह रहा कि देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले इस सिपाही को कभी सिगरेट कंपनी के एजेंट तो कभी टूरिस्ट गाइड बन कर सड़कों की धूल छाननी पड़ी।

जानकारी के मुताबिक एक बार पटना में बसों के परमिट के लिए भी उन्होंने आवेदन किया। इसके लिए कमिश्नर के सामने पेशी होने पर उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र मांगा गया। बाद में यह बात तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को पता लगी तो कमिश्नर को बटुकेश्वर दत्त से माफी मांगनी पड़ी।

Batukeshwar Dutt Batukeshwar Dutt (Photo by social media)

इलाज के लिए करना पड़ा संघर्ष

बटुकेश्वर दत्त को 1964 में बीमार पड़ने पर भी पटना के सरकारी अस्पताल में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनके एक मित्र चमनलाल आजाद ने एक लेख में इस पर सवाल उठाते हुए लिखा कि क्या दत्त जैसे क्रांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए? परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है। देश की आजादी के लिए प्राणों की बाजी लगाने वाले इस व्यक्ति को इलाज के लिए अस्पताल में एड़ियां रगड़नी पड़ीं।

आजाद के लेख के बाद सक्रिय हुई सरकार

आजाद के इस लेख लिखने के बाद सरकारी स्तर पर थोड़ी हलचल तेज हुई। पंजाब सरकार की ओर से बिहार सरकार को 1000 रुपए का चेक कर भेज कर यह भी कहा गया कि यदि पटना में बटुकेश्वर दत्त का इलाज नहीं हो सकता तो राज्य सरकार दिल्ली या चंडीगढ़ में उनके इलाज का खर्च उठाने को तैयार है।

इसके बाद बिहार सरकार की ओर से भी ध्यान दिया गया मगर तब तक बटुकेश्वर दत्त को हालत बिगड़ चुकी थी। 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया और यहां पहुंचने पर बटुकेश्वर दत्त का कहना था कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस दिल्ली में उन्होंने बम फोड़ा था वहां पर वे एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लाए जाएंगे।

बटुकेश्वर दत्त ने जताई थी यह अंतिम इच्छा

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में बटुकेश्वर दत्त को भर्ती कराकर उनका इलाज शुरू किया गया मगर बाद में जांच में पता चला कि उन्हें कैंसर हो चुका है और उनके जिंदगी के कुछ ही दिन बाकी हैं।

पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन जब बटुकेश्वर दत्त से मिलने पहुंचे तो उन्होंने नम आंखों के साथ मुख्यमंत्री से अपनी अंतिम इच्छा जताई कि मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए।

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भगत सिंह की समाधि के पास अंतिम संस्कार

सफदरजंग अस्पताल में बटुकेश्वर दत्त की हालत लगातार बिगड़ती चली गई। 17 जुलाई को वह कोमा में चले गए और फिर 1965 में 20 जुलाई की रात उनका देहांत हो गया। उनकी आखिरी इच्छा का सम्मान करते हुए उनका अंतिम संस्कार हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की समाधि के पास किया गया।

रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी

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