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यहां से हुई होलिका दहन की शुरुआत, होली का डांडा है इनका प्रतीक

होली का झंडा गड़ने के बाद शुभ कामों में होली के बाद तक विराम लगा रहता है। लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं होलिका दहन या होली खेलने की शुरुआत कैसे हुई।

Roshni Khan
Published on: 16 Feb 2021 4:50 PM IST
यहां से हुई होलिका दहन की शुरुआत, होली का डांडा है इनका प्रतीक
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यहां से हुई होलिका दहन की शुरुआत, होली का डांडा है इनका प्रतीक (PC: social media)

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: आज वसंत पंचमी है। आज के दिन से होली के महोत्सव की शुरुआत हो जाती है आज के दिन ही मोहल्लों के चौराहों, गांवों, कस्बों में जहां होलिका जलती है होली का डंडा गाड़ दिया जाता है। जिसे होली का ठुड्डा गाड़ना भी कहते हैं। इसी के इर्द गिर्द लकड़ियां और कंडे लगाकर होलिका बनाई जाती है और माघ मास की पूर्णिमा के दिन जब होलिका का दहन होना होता है तो होलिका में आग लगाने के बाद इस डंडे को निकाल लिया जाता है। आज हम आपको बताते हैं कि होलिका दहन की परंपरा कहां से शुरू हुई और होली का डंडा क्यों प्रह्लाद का प्रतीक माना जाता है।

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होली का झंडा गड़ने के बाद शुभ कामों में होली के बाद तक विराम लगा रहता है

होली का झंडा गड़ने के बाद शुभ कामों में होली के बाद तक विराम लगा रहता है। लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं होलिका दहन या होली खेलने की शुरुआत कैसे हुई। उत्तर प्रदेश में लखनऊ से लगे हरदोई जनपद का नाम तो आपने जरूर सुना होगा। ये हरदोई नाम पड़ा है हरि-द्रोही से - अर्थात जो भगवान से द्रोह करता हो। आज भी हरदोई के पुराने लोग र का उच्चारण नहीं करते।

holi holi (PC: social media)

नाम हरि-द्रोही रखवा दिया था

कहते हैं कि हिरण्यकश्यप नामक एक राजा ने भगवान विष्णु से बैर के चलते अपने नगर का नाम हरि-द्रोही रखवा दिया था। लेकिन उसका पुत्र विष्णु का भक्त हो गया और इस तरह उसने अपने पिता से विद्रोह कर दिया। पुत्र को दण्ड देने के लिए हिरण्यकश्यप ने उसे ऊँचे पहाड़ों से गिरवाया, जंगली जानवरों से भरे जंगल में अकेला छोड़ दिया, सांपों से कटवाया, नदी में डुबोने की कोशिश की लेकिन प्रहलाद की विष्णु में आस्था कम न हुई। हर बार वह ईश्वर की कृपा से सुरक्षित बच जाता था।

बहन होलिका की मदद ली जिसके पास एक जादुई चुनरी थी

अंततः हिरणकश्यप ने प्रह्लाद को शहर के बीचों बीच एक खम्भे से बांध दिया और अपनी बहन होलिका की मदद ली जिसके पास एक जादुई चुनरी थी, जिसे ओढ़ने के बाद अग्नि में भस्म न होने का वरदान प्राप्त था, होलिका जो कि प्रह्लाद की बुआ थी उसकी गोद में प्रहलाद को बिठा कर चिता सजा दी गई ताकि प्रहलाद इस आग में जलकर भस्म हो जाय।

प्रह्लाद को वसंत पंचमी के दिन चौराहे पर बांधा गया था

लेकिन ईश्वरीय वरदान के गलत प्रयोग के चलते जादुई चुनरी ने उड़कर प्रहलाद को ढक लिया और होलिका जल कर राख हो गयी और प्रहलाद एक बार फिर ईश्वरीय कृपा से सकुशल बच निकला। दुष्ट होलिका की मृत्यु से प्रसन्न नगरवासियों ने उसकी राख को उड़ा-उड़ा कर खुशी का इजहार किया।

कहते हैं प्रह्लाद को वसंत पंचमी के दिन चौराहे पर बांधा गया था और होलिका जिस दिन जली उस दिन माघ पूर्णिमा थी। कहा जाता है कि जिस कुण्ड में होलिका जली थी, वो आज भी श्रवणदेवी नामक स्थल पर हरदोई में स्थित है। जिसे प्रह्लाद कुण्ड कहते है। इस तरह होलिका दहन की परंपरा हरदोई से शुरू हुई।

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हरदोई वह धरती है, जहां भगवान विष्णु ने दो बार अवतार लिया। पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि एक बार भक्त प्रहलाद की हिरण्यकश्यप से रक्षा के लिए भगवान विष्णु नरसिंह के रूप में अवतरित हुए, तो दूसरी बार वामन अवतार में उन्होंने राजा बलि से दान में मिली तीन पग जमीन में पूरी पृथ्वी को नाप लिया।

holi holi (PC: social media)

इसलिए ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में होली का झंडा गाड़ा जाता है। इसकी पूजा की जाती है। और होलिका जिस दिन प्रह्लाद को गोद में लेकर जली थी उस दिन होली जलाई जाती है। प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका। होलिका जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।

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Roshni Khan

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