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Meo Muslims : कौन है मेव मुसलमान, जो सुनाते हैं हिंदू ग्रंथ महाभारत की ओजस्वी कहानियां
Meo Muslims : मेव मुस्लिम खुद को राम, कृष्ण और अर्जुन का वंशज मानते हैं, उनका कहना है कि इन्हीं हिंदूओ हास्तियों से उनकी उत्पत्ति हुई है।
Meo Muslims :हरियाणा के नूंह जिले में भड़की हिंसा के बाद अब मेव मुस्लिम काफी चर्चा आ गए हैं। ये मुस्लिम लोग मेवात के आस-पास के इलाकों में रहते हैं। हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में इस समुदाय के लोग रहते हैं। खुद को अर्जुन का वंशज मानने वाले ये लोग, वैसे तो मुस्लिम हैं, लेकिन एक ऐसी समग्र संस्कृति का पालन करते हैं, जिसमें कई हिन्दू रीति-रिवाज शामिल हैं। आइये जानते हैं इस समुदाय के मुस्लिम लोगों के बारे में।
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राम-कृष्ण से हुई है उत्पत्ति
मेव समुदाय के ये मुस्लिम लोग खुद को राम, कृष्ण और अर्जुन का वंशज मानते हैं, उनका कहना है कि इन्हीं हिंदूओ हास्तियों से उनकी उत्पत्ति हुई है। इसलिए ये लोग हिन्दुओं के त्योहार जैसे- होली, दिवाली और दशहरा मनाते हैं। इस समुदाय के मुस्लिम लोग यूपी, राजस्थान और हरियाणा के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहते है। इनकी आबादी लगभग 4 लाख के आस-पास है। यूपी में ये लोग मथुरा की छाता तहसील में रहते हैं। हरियाणा में नूंह (मेवात), गुड़गांव, फरीदाबाद, और पलवर में रहते हैं। इसके अलावा राजस्थान में ये मुस्लिम लोग अलवर में रहते हैं। जहां भी ये लोग रहते हैं, वहां अपनी इस अनुठी संस्कृति का पालन कर उसे संरक्षित किए हुए है।
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सबसे ज्यादा लोकप्रिय 'पंडुन'
इस समुदाय के मुस्लिम लोग लोक महाकाव्यों का गाथा-गीतों का मौखिक रुप से वर्णन करते हैं, जिसके लिए वह पूरे मेवात क्षेत्र में फेमस हैं। इस समुदाय की ये कला उनके इतिहास के बारे में जानने के लिए काफी है। मेवों द्वारा गाए इन महाकाव्यों और गाथा-गीतों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय 'पंडुन' है, जो महाभारत का मेवाती संस्करण है और हिंदू विद्या से प्राप्त किया गया है। इस के जरिए मेव मुसलमान संगीतमय महाभारत की ओजस्वी कहानियां सुनाते हैं।
भपंग प्रमुख वाद्य यंत्र हैं
पंडुन, मेव मुस्लिमों के एक बेहद ही विशेष और महत्वपूर्ण कला है। कह सकते हैं इन लोगों की सांसक़तिक पहचान है। 16वीं शताब्दी में सद्दलाह मेव द्रारा एक कथा लिखी गई थी, जिसमें 2500 दोहे थे। इन दोहों की प्रस्तुति में लगभग 48 घंटे लगते थे। पंडुन कला के प्रदर्शन के लिए इनका भपंग इनका प्रमुख वाद्य यंत्र हैं। इसके अलावा हारमोनियम, ढोलक और खजरी का भी प्रयोग करते हैं।
खतरे में कला का अस्तित्व
मेव मुसलमानों की इस पारंपरिक विद्या के अस्तित्व पर अब दांव लग चुका है। जिसका कारण बढ़ती तकनीकी है। जिसके कारण इसके संरक्षण में कमी आ चुकी है। कई मेव मुसलमान इन्हीं महाकाव्यों के जरिए ही अपनी उत्पति का पता बता पाते हैं, जो उन्हें अर्जुन का वंशज बताती है।