Kuno Cheetah Death: कूनो में अब ‘तब्लीशी‘ की मौत, नामीबिया से लाई गई थी, दो दिन से थी लापता

Kuno Cheetah Death: मादा चिता की गर्दन में जो रेडियो कॉलर आईडी लगाई गई थी वह खराब हो गई थी। इस कारण से उसकी लोकेशन नहीं मिल पा रही थी। वन विभाग का अमला ड्रोन कैमरा की मदद से चीते की तलाश में जुटा था।

Ashish Pandey
Published on: 2 Aug 2023 1:24 PM GMT
Kuno Cheetah Death: कूनो में अब ‘तब्लीशी‘ की मौत, नामीबिया से लाई गई थी, दो दिन से थी लापता
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Kuno Cheetah Death (Image: Social Media)

Kuno Cheetah Death: कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौत थमने का नाम नहीं ले रही है। यहां एक के बाद एक चीते की मौत हो रही है। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क से फिर एक दुखद खबर आई है। यहां पर फिर एक चीते की मौत हो गई। अब यहां नामीबिया से लाई गई मादा चीता तब्लीशी की मौत हो गई। अब तक कूनो में 9 चीतों की मौत हो चुकी है। इनमें 6 वयस्क और 3 शावक हैं।

जानकारी के अनुसार एक मादा चिता श्योपुर के कूनो पालपुर नेशनल पार्क से लापता हो गई थी। पिछले कुछ दिन से उसकी लोकेशन नहीं मिल पा रही थी। पार्क प्रबंधन उसकी तलाश में जुटा था। इसी दौरान तब्लीशी की डेड बाडी कूनो के बाहरी इलाके में मिली। तब्लीशी की गर्दन में जो रेडियो कॉलर आईडी लगाई गई थी वह खराब हो गई थी। इस कारण से उसकी लोकेशन नहीं मिल पा रही थी। वन विभाग का अमला ड्रोन कैमरा की मदद से चीते की तलाश में जुटा था।

दस महीनों में सात चीतों की मौत

पिछले कुछ दिनों से मध्य प्रदेश के श्योपुर का कूनो पालपुर अभयारण्य लगातार चर्चा में है। यहां से पहले अच्छी खबरें आयीं जब नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीते लाए गए। ये केंद्र और राज्य सरकार का महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट था। लेकिन ये खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही और फिर यहां से लगातार एक के बाद एक चीतों की मौत की खबरें आने लगीं। पिछले 10 महीने में कूनो में सात चीतों की मौत हो चुकी है। इसमें यहां जन्में शावक भी शामिल हैं।
मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौत थमने का नाम नहीं ले रही है। हर महीने पार्क में कोई न कोई चिता दम तोड़ रहा है।

वहीं जिम्मेदार अफसर, कभी मौत कारण बीमारी तो कभी लू के थपेड़े और कभी आपसी टकराव बता देते हैं। लेकिन, यहां सवाल ये उठ रहे हैं कि जब कूनो में वन्यजीवों के इलाज के लिए बेहतरीन सुविधा वाला अस्पताल है, डॉक्टरों और एक्सपर्ट्स की पूरी टीम है। निगरानी के लिए सुरक्षाकर्मियों से लेकर चीता ट्रैकिंग टीम, डॉग स्क्वायड, सीसीटीवी और ड्रोन कैमरा का पूरा इंतजाम है। फिर हर बार जब भी जीते यहां बीमार या गंभीर घायल होते हैं तो उनका इलाज देरी से क्यों शुरू हो पाता है और उनकी जान क्यों नहीं बच पाती। यह एक बड़ा सवाल है लेकिन, जिम्मेदार अधिकारी मीडिया के किसी भी सवाल का जवाब देने को तैयार नहीं है। आखिर ऐसे ही चितों की जान जाती रहेगी और कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाएगा। आखिर एक के बाद एक चितों की मौत क्यों हो रही है। इस पर विचार करके उनको बचाने की कोशिश बहुत जरूरी है।

Ashish Pandey

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