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हिल उठेगा केदारनाथ: भयानक तबाही से कांप उठेगा देश, वैज्ञानिक भी हुए परेशान
बर्फ जमी हुई झीले हैं, और ग्लेशियर पिघल जाएं क्या होगी इस समय की भयावह स्थिति। भारत के उत्तरी क्षेत्रों में भीषण प्राकृतिक आपदा का तबाही वाला मंजर देखने को मिल सकता है। जिसकी आज तक किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।
नई दिल्ली। सोचिए, यदि लद्दाख में जितनी बर्फ जमी हुई झीले हैं, और ग्लेशियर पिघल जाएं क्या होगी इस समय की भयावह स्थिति। भारत के उत्तरी क्षेत्रों में भीषण प्राकृतिक आपदा का तबाही वाला मंजर देखने को मिल सकता है। जिसकी आज तक किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। जीं हां ये आपदा केदारनाथ में आई आपदा से कई गुना अधिक भयंकर हो सकती है। ऐसे में हाल ही में एक अध्ययन में ये खुलासा किया गया है कि जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। इससे लद्दाख के ग्लेशियरों और बर्फ की झीलों को लेकर बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
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झीलों में बर्फ पिघली
जीं हां लद्दाख दुनिया के सबसे ऊंचे इलाकों में शुमार है। यहां तापमान बहुत ही ज्यादा कम रहता है। सर्दियों में तो -16 तक पहुंच जाता है। यहां आने वाले पर्यटकों को पहले शारीरिक रूप से तैयार होना पड़ता है, तब वे लद्दाख में रह पाते हैं।
लेकिन तेजी से बढ़ रहे तापमान की वजह से लद्दाख के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। बिल्कुल इसी तरह यहां पर मौजूद बर्फ की झीलें भी पिघल रही हैं। ऐसे में अगर झीलों में बर्फ पिघली तो हिमालय क्षेत्र में बाढ़ आ सकती है।
ऐसे में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट और हीडलबर्ग सेंटर फॉर द एनवॉयरमेंट ऑफ रुपर्टो कैरोला के शोधकर्ताओं ने लद्दाख की एक बर्फीली झील के टूटने पर शोध किया। इसकी वजह से बाढ़ आई थी।
फोटो-सोशल मीडिया
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भयानक बाढ़ केदारनाथ हादसे के दौरान
इस बारे में जियोलॉजिस्ट प्रोफेसर मार्कस नुसरेर ने कहा कि हमनें लद्दाख के ग्लेशियरों पर रिसर्च करने के लिए सैटेलाइट इमेजेस का उपयोग किया। हमने इस अध्ययन के लिए 50 साल के समय अंतराल में लद्दाख की बर्फीली झीलों और ग्लेशियरों में आए बदलावों के आंकड़े जुटाए।
आगे प्रो. नुसरेर ने सतर्क किया है कि इन बर्फीली झीलों और ग्लेशियर के बर्फ अगर तेजी से पिघले तो हिमालय के निचले इलाकों में भयावह बाढ़ आ सकती है। सालों पहले भारत ऐसी भयानक बाढ़ केदारनाथ हादसे के दौरान झेल चुका है।
रिपोर्ट में सामने आया है कि ये ग्लेशियर और झीलें कभी फट सकते हैं, ऐसे में अचानक आने वाली बाढ़ से बचना बेहद मुश्किल हो जाएगा। इसलिए जरूरी है कि भारत समेत सभी एशियाई देश ग्लोबल वार्मिंग में कमी लाने का प्रयास करें।
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फोटो-सोशल मीडिया
आपदाओं को कैसे टाला जाए
इसके बाद प्रोफेसर ने बताया कि हमारे अध्ययन से यह पता चलेगा कि भविष्य में ऐसे हादसों से कैसे बचा जाए। या फिर ऐसी प्राकृतिक आपदाओं को कैसे टाला जाए। ग्लेशियरों के टूटने और झीलों के फटने से होने वाले बाढ़ को ग्लेशियल लेक आउटब्रस्ट फ्लड्स (GLOFS) कहा जाता है।
आगे प्रो. नुसरेर की टीम ने अगस्त 2014 में लद्दाख में आई एक बर्फीली बाढ़ का अध्ययन किया। यह बाढ़ एक बर्फीली झील के फटने की वजह से आई थी। इसने सैकड़ों घरों, खेतों और पुलों को खत्म कर दिया था। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि झील के फटने से थोड़ा पहले ही बारिश के मौसम में पानी की मात्रा बढ़ गई थी।
आपदा से बचने के लिए भी प्रो. नुसरेर ने कुछ तरीके बताते हुए सुझाव दिये हैं। इनमें से पहला तापमान को कम करना है। दूसरा संवेदनशील स्थानों की पहचान करके वहां ऐसी दीवारें बनाना, जिससे बाढ़ रिहायशी इलाकों और खेतों को नुकसान न पहुंचाए।
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