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लाला लाजपत राय पर अत्याचार, सांडर्स की मौत और भगत सिंह की पिस्तौल
17 दिसंबर को स्कॉट पर गोली चलाई गई लेकिन निशाना चूकने से उनके साथ चल रहे असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस जॉन पी सांडर्स की मौत हो गई।
अखिलेश तिवारी
लखनऊ: साइमन कमीशन का विरोध कर रहे भारतीयों का नेतृत्व करने वाले शेरे पंजाब लाला लाजपत राय पर 30 अक्टूबर 1928 को अंग्रेजों ने बर्बर लाठीचार्ज किया। बेरहमी से लाला को पीटने वाले अंग्रेजों ने मरणासन्न कर छोड़ा लेकिन चोट इतनी घातक थी कि लाला लाजपतराय की 17 नवंबर को मौत हो गई। इससे क्षुब्ध और आक्रोशित शहीदे आजम भगत सिंह व राजगुरु ने लाठीचार्ज कराने वाले सुपरिटेंडेंट जेम्स ए स्कॉट को मारने की योजना बनाई।
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17 दिसंबर को स्कॉट पर गोली चलाई गई
17 दिसंबर को स्कॉट पर गोली चलाई गई लेकिन निशाना चूकने से उनके साथ चल रहे असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस जॉन पी सांडर्स की मौत हो गई। असेंबली में बम फोड़ने के मामले में अंग्रेज सरकार जब भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी की सजा नहीं दिला पाई तो सांडर्स की मौत का जिम्मेदार बताकर नया मुकदमा चलाया और भगत सिंह की पिस्तौल को सांडर्स की हत्या का हथियार बता दिया।
अंग्रेज पुलिस अधिकारी पी सांडर्स की हत्या अंग्रेजी राज के इकबाल को सबसे बड़ी चुनौती थी। इससे अंग्रेज अधिकारियों में भी भय व्याप्त हो गया था कि भारतीयों के साथ ज्यादती व अन्यायपूर्ण कार्रवाई करने पर उनके साथ भी कोई अनहोनी हो सकती है। तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन के निजी सचिव की पुत्री का विवाह भी सांडर्स के साथ तय हो चुका था ।
इस वजह से भी सांडर्स की मौत अंग्रेजी हुकूमत की प्रतिष्ठा से जुड़ चुकी थी। इसलिए जब पंजाब असेंबली में भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु ने बम फोडक़र पर्चा फेंका तो अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें देशद्रोह समेत अन्य मुकदमों में सजा दिलाने की कोशिश की। असेंबली बम कांड में अदालत ने तीनों को 14 साल जेल की सजा सुनाई तो अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें सांडर्स की हत्या का आरोपी बनाकर वायसराय की ओर से गठित ट्रिब्यूनल के हवाले कर दिया। जिसने फांसी की सजा दी।
जबकि मुकदमा तीन लोगों पर चलाया गया
इस मुकदमे को कभी न्याय संगत नहीं माना गया क्योंकि सांडर्स पर गोली चलाने वाले दो युवक थे जबकि मुकदमा तीन लोगों पर चलाया गया। पुलिस में पहली रिपोर्ट भी पुलिस अधिकारियों की ओर से दर्ज कराई गई उसमें भी दो अज्ञात युवकों का जिक्र था। जेएनयू के प्रोफेसर चमन लाल ने अपनी पुस्तकों में बताया है कि लाहौर पुलिस हेडक्वार्टर से बाहर निकलने के दौरान सांडर्स को गोली मारी गई। सांडर्स पर सबसे पहले गोली राजगुरु ने चलाई थी उसके बाद भगत सिंह ने सांडर्स पर गोली चलाई। सांडर्स के साथ एक हेड कांस्टेबल भी मारा गया था।
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इसी मामले में सात अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटकाने का फैसला सुनाया गया। लाला लाजपत राय के साथ ही हुई निर्ममता का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने जिस पिस्तौल का इसतेमाल किया वह 32 एमएम की कोल्ट ऑटोमैटिक पिस्टल है। अब यह पिस्टल मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में सीमा सुरक्षा बल की फायरिंग रेंज में लोगों के देखने के लिए रखी गई है। इस पिस्टल के साथ लिखा गया है कि शहीदे आजम भगत सिंह ने इसका इस्तेमाल अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या में किया था।
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