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अजीत पवार को मिल गया उनका इनाम

जैसा कि आप जानते हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद जनता ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट जनादेश दिया था लेकिन सत्ता की मलाई खाने की प्रतिस्पर्धा में अंततः ये गठबंधन टूट गया। इस खेल में भाजपा को अलग-थलग करने के लिए शेष विपक्ष शिवसेना को लेकर एकजुट होने लगा।

SK Gautam
Published on: 30 Dec 2019 7:48 PM IST
अजीत पवार को मिल गया उनका इनाम
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पंडित रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के मंत्रिमंडल में अजित पवार के उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने से तमाम लोगों को झटका लगा है। लोग इसे हजम नहीं कर पा रहे हैं कि कैसे अजित पवार भाजपा के साथ जाकर उपमुख्यमंत्री बनने के बाद फिर से इस विरोधी गठबंधन में उप मुख्यमंत्री बन गए।

महाराष्ट्र की राजनीति के भीष्म पितामह के रूप में शरद पवार थे

जैसा कि आप जानते हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद जनता ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट जनादेश दिया था लेकिन सत्ता की मलाई खाने की प्रतिस्पर्धा में अंततः ये गठबंधन टूट गया। इस खेल में भाजपा को अलग-थलग करने के लिए शेष विपक्ष शिवसेना को लेकर एकजुट होने लगा। गैरभाजपाई दलों के पास महाराष्ट्र की राजनीति के भीष्म पितामह के रूप में शरद पवार थे, तो भाजपा के पास उनकी टक्कर का कोई दूसरा नेता नहीं था। और महाराष्ट्र के पूरे नाटक में अगर कोई व्यक्ति अपने अंदाज में खेलता दिखा तो वह एकमात्र नेता शरद पवार रहे। इस खेल में शरद पवार का कद एक बार फिर ऊंचा हुआ।

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प्रधानमंत्री ने अपनी विशिष्ट शक्तियों का प्रयोग करते हुए शपथ दिला दी

बात करते हैं उस खेल की जिसमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार के बाद नंबर दो की हैसियत रखने वाले नेता अजीत पवार ने राज्यपाल को एक लिस्ट सौंप कर भाजपा को समर्थन का एलान कर दिया और प्रधानमंत्री ने अपनी विशिष्ट शक्तियों का प्रयोग करते हुए बिना कैबिनेट के एप्रूवल के राष्ट्रपति शासन हटाते हुए भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता अजीत पवार को क्रमशः मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की शपथ दिला दी। इस पर कोहराम मच गया।

रातों रात राकांपा, कांग्रेस और शिवसेना एकजुट हो गए विरोध शुरू हुआ और विश्वास मत का सामना करने से पहले ही डिप्टी सीएम पद से इस्तीफा देकर अजीत पवार वापस शरद पवार के पास लौट गए यानी अजीत पवार को जो जिम्मेदारी सौंपी गई थी उसको उन्होंने बखूबी निभा दिया। इसके बाद फडणवीस के पास सीएम पद से इस्तीफा देने के अलावा विकल्प नहीं बचा था। लेकिन इसके बाद तीन दलों के विपक्षी गठबंधन ने बिना समय गंवाए उद्धव ठाकरे को नेता चुन लिया।

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शरद पवार का राजनीतिक कौशल ही था

वस्तुतः महाराष्ट्र के इस राजनीतिक तमाशे में कौन हारा कौन जीता। क्या भाजपा हारी या अजित पवार हारे या शिवसेना हारी। अगर आज के घटनाक्रम को देखा जाए तो महाराष्ट्र के सियासी खेल समझ में आ जाएगा। महाराष्ट्र में एकमात्र नेता शरद पवार असली मराठा सरदार बनके उभरे । यह शरद पवार का राजनीतिक कौशल ही था जिसके चलते शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के अस्वाभाविक माने जा रहे गठबंधन को आकार मिल गया। संकट के दौर में जिस सियासी महारत की जरूरत होती है उसे पवार ने कर दिखाया। यह ठीक है कि इसके लिए उन्होंने मोहरा अपने भतीजे अजीत पवार को बनाया और वह सहर्ष इसके लिए प्रस्तुत रहे।

आज जो हुआ उसका अंदाजा शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने उसी समय दे दिया था कि अजित पवार इस गठबंधन में एक बड़ी भूमिका में होंगे। देखिए कितना बड़ा काम करके आए हैं। यानी अजीत पवार भाजपा की गोद में प्लांट किये गए थे ताकि गठबंधन को तेजी के साथ आकार देकर प्लोर पर लाया जा सके।

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इंदिरा गांधी ने महाराष्ट्र में शरद पवार सरकार बर्खास्त कर दिया था

शरद पवार शुरुआत से ही दलीय निष्ठा से परे रहे हैं। इसकी पहली बानगी 1978 में उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु यशवंत राव चव्हाण से किनारा कर जनता पार्टी का दामन थाम कर दिखाई थी। तब वे 34 साल की उम्र में राज्य के मुख्यमंत्री बन गए थे। 1980 में जब वह युवा थे उस समय उन पर एक बढ़ा संकट तब आया जब दोबारा सत्ता में आईं इंदिरा गांधी ने महाराष्ट्र में उनकी सरकार बर्खास्त कर दी। उनकी मुश्किल तब और बढ़ गई थी, जब 1980 में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीता और ए आर अंतुले की सरकार बनी।

अंतुले ने पवार के 58 में से करीब 50 विधायक तोड़ लिए उस समय पवार ने चंद्रशेखर को पकड़ा और अपना वजूद बचाए रखा। हालांकि, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर के चलते 1985 में कांग्रेस को अभूतपूर्व जीत मिली। पवार को एक बार फिर झटका लगा उनकी पार्टी कांग्रेस-एस से बड़ी संख्या में लोग कांग्रेस में चले गए। लेकिन पवार ने फिर पैतरा बदला और राजीव की अगुवाई वाली कांग्रेस में शामिल हो गए और एक बार फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए।

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डेढ़ दशक तक कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन चलाने में कामयाब रहे

ये पवार का ही करिश्मा है कि सोनिया गांधी से नाता तोड़ने के बावजूद महाराष्ट्र में डेढ़ दशक तक कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन चलाने में कामयाब रहे। वह केंद्र में 10 साल तक यूपीए सरकार का हिस्सा रहे।

और कहने वाले इस बार भी कह रहे हैं कि पवार ने ही अजीत पवार को भाजपा खेमे में भेजकर राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए संकट में घिरे शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन को उबार लिया। और ये बात सही साबित हुई अजीत पवार को उनके काम का इनाम भी मिल गया।



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