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महाशिवरात्रि: क्यों निकाली जाती है कांवड़ यात्रा, जानें इसके रोचक तथ्य
मान्यता है कि कांवड़ यात्रा की शुरूआत सबसे पहले रावण ने की। कहा जाता है कि जब भगवान शिव जगत कल्याण के मंथन से निकलने वाले विष को ग्रहण किया था, तब रावण भगवान शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए प्रतिदिन जल चढ़ाने जाता था।
लखनऊ: ‘बम-बम भोले’ ‘हर-हर महादेव’ के उदघोष से आज सभी शिवालय गुंज उठे है। कांवड़ियां पवित्र नदी का जल या अगर संभव हो तो गंगाजल लेकर अपने कांधे पर कांवड़ रखकर महादेव के धाम पर पहुंचे, जहां उन्होंने शिवालय पर जल चढ़ाकर बाबा भोलेनाथ की पूजा-अर्चना की। माना जाता है कि श्रावण मास और महाशिवरात्रि का दिन कांवड़ यात्रा करना शुभ होता है। ऐसे में आपके मन में भी यह सवाल जरूर आता होगा कि आखिर क्यों कांवड़ लेकर श्रद्धालु बाबा के दरबार की दौड़ लगाते हैं? तो आइए आपको बताते है इसके बारे में...
किसने शुरू की कांवड़ यात्रा
हिन्दू धर्म के मुताबिक कांवड़ यात्रा को लेकर कई मान्यताएं है। मान्यता है कि कांवड़ यात्रा की शुरूआत सबसे पहले रावण ने की। कहा जाता है कि जब भगवान शिव जगत कल्याण के मंथन से निकलने वाले विष को ग्रहण किया था, तब रावण भगवान शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए प्रतिदिन जल चढ़ाने जाता था।
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हिम सरिताओं ने भगवान शिव को विष से किया मुक्त
इसी से जुड़ी हुई एक मान्यता यह भी है कि विष के प्रभाव को पूरी तरह से खत्म करने के लिए भगवान शिव नीलकंठ पर्वत पर साधना कर रहे थे। उसी पर्वत पर दो हिम सरिताएं रहती थी। उन्होंने भगवान शिव को विष से मुक्ति दिलाने के लिए सैकड़ों वर्षों तक उन पर जलाभिषेक किया था।
प्रभु राम और भगवान पशुराम से जुड़ी मान्यताएं
वहीं कुछ लोग ये भी मानते है कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत सबसे पहले भगवान पशुराम ने की थी। उन्होंने उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में स्थित पुरा महादेव पर गंगा जल से अभिषेक किया था। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि प्रभु राम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा शुरू कर बिहार के सुल्तानगंज से गंगा का पवित्र जल लेकर बाबाधाम के शिवालय पर अर्पित किया था। तब से ये परंपरा चली आ रही है।
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