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बापू के साथ ऐसा: यहां तोड़ी गई प्रतिमा या फिर खुद गिर गई, पुलिस कर रही जांच
हम अपने प्रेरणा स्रोतों की मूर्तियां लगवाते हैं और उनके मंदिर बनवाते हैं। अयोध्या में तो मंदिर के लिए बड़ा संघर्ष सभी ने देखा ही है। इसके साथ ही हमने यह भी देखा और पूर्व में सर्वेक्षण भी कराया तो पाया कि देश के अन्य हिस्सों में बहुत से मंदिरों की ही ठीक से सुरक्षा और देखरेख नहीं हो पा रही है।
नई दिल्ली: महापुरुषों की मूर्तियों के तोड़ने का मामला पुराना नहीं है। झारखंड के हजारीबाग में महात्मा गांधी की प्रतिमा तोड़ी गयी है। पुलिस का कहना है, हम यह पता लगाने के लिए हम जांच कर रहे हैं कि क्या मूर्ति खुद गिर गई या मूर्ती के साथ बर्बरता हुई। हम सीसीटीवी फुटेज भी चेक कर रहे हैं और कुछ लोगों से पूछताछभी कर रहे हैं।
मूर्तियों को तोड़ने का मामला नया नहीं है
जहां एक तरफ हम आर्य समाज की तरह समाज सुधार के लिए मूर्तिपूजा का विरोध और क्रांति की बात करते हैं। वहीं दूसरी तरफ भारत में मूर्ति का मामला कहीं न कहीं भावनात्मक और धार्मिक रूप से जुड़ा है। हम अपने प्रेरणा स्रोतों की मूर्तियां लगवाते हैं और उनके मंदिर बनवाते हैं। अयोध्या में तो मंदिर के लिए बड़ा संघर्ष सभी ने देखा ही है। इसके साथ ही हमने यह भी देखा और पूर्व में सर्वेक्षण भी कराया तो पाया कि देश के अन्य हिस्सों में बहुत से मंदिरों की ही ठीक से सुरक्षा और देखरेख नहीं हो पा रही है। यह हाल गांवों, कस्बों और शहरों सभी का था। मूर्तियों का हाल तो बेहद खराब है।
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फिर, इसी क्रम में अगर बात की जाय तो आजादी के संघर्ष के दिनों में जिनका बड़ा योगदान था जैसे महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, पंडित जवाहर लाल नेहरू,डा. भीमराव आम्बेडकर आदि के मूर्तियां लगाई गईं। इसके बाद के दौर में विवेकानंद की भी मूर्तियां लगीं हैं। फिर, देश में अन्य दलों की सरकारें आईं और संसद भवन के भीतर उनके बड़े नेताओं के चित्र भी लगे।
हर साल बड़े नेताओं की जन्म और निधन तिथि पर उन्हें याद किया जाता है और उनके चित्रों पर फूल चढ़ाए जाते रहे हैं। लेकिन, संसद भवन के सामने सरदार पटेल की मूर्ति का मुझे विशेष ध्यान आता है। अब तो उस मूर्ति की सारसंभाल होती है लेकिन कुछ वर्षों पहले तक उसकी कोई सुध नहीं लेता था। आसपास काफी गंदगी जमा रहती थी। उनकी मूर्ति काफी दयनीय स्थिति में थी।
पीढ़ी को हमारे महापुरुषों से प्रेरणा मिले
हमें समझ में आता है कि आने वाली पीढ़ी को हमारे महापुरुषों से प्रेरणा मिले, प्रतीक के रूप में उनकी मूर्ति को लगाना ठीक भी लगता है। लेकिन, हाल ही में जिस तरह से त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति तोड़ी गई। पश्चिम बंगाल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति की दुर्दशा की गई। कभी कहीं गांधी तो कभी अंबेडकर की मूर्तियों को खंडित करने या उन पर कालिख पोतने का प्रयास होता है।
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ऐसे में सोचने का समय आ गया है कि हम महापुरुषों की मूर्तियों को लगाएं भी कि नहीं? यदि हम मूर्तियों की सुरक्षा नहीं कर सकते, उसकी देखभाल नहीं कर सकते तो मूर्ति लगाने का उद्देश्य तो समाप्त ही हो जाता है। चीन या अन्य कोई देश जहां महात्मा गांधी या रवींद्र नाथ टैगोर की मूर्ति लगी है, वहां मूर्ति के माध्यम से उन्हें पूरा सम्मान मिलता है। स्थान की देखभाल होती है। लेकिन, हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहां मूर्ति के नाम पर राजनीति होती है। कहीं-कहीं पर तो स्थान पर कब्जा करने के लिए मूर्तियां लगती रही हैं।
आज जरूरत है कि हम महापुरुषों की मूर्ति लगाने का फैसला बहुत सोच-समझकर करें। हम तय करें कि भले ही देश या राज्य में विपरीत सोच वाली सरकार आ भी जाए तो महापुरुषों की मूर्तियों, उनके नाम पर बने पार्कों की उचित देखभाल की व्यवस्था होनी चाहिए । यदि ऐसा नहीं कर सकते तो मूर्तियां न लगाना ठीक होगा।