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अंतरिक्ष में ताकतवर भारत: किया क्रायोजेनिक इंजन का विकास, आई थी बड़ी बाधाएं
क्रायोजेनिक इंजन के विकास में बहुत बाधाएं तो आई, लेकिन भारत के वैज्ञानिकों ने हर बाधा को पार करके नई सफलता हासिल की है। ऐसे में पहले जो क्रायोजेनिक इंजन (Cryogenic Engine) विदेशों से आता था। वो इंजन अब भारत(India) में ही निर्मित किया जाएगा।
विदुषी मिश्रा (Vidushi Mishra)
बेंगलूरु। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत ने अपनी धाक बढ़ाई है। क्रायोजेनिक इंजन के विकास में बहुत बाधाएं तो आई, लेकिन भारत के वैज्ञानिकों ने हर बाधा को पार करके नई सफलता हासिल की है। ऐसे में पहले जो क्रायोजेनिक इंजन (Cryogenic Engine) विदेशों से आता था। वो इंजन अब भारत(India) में ही निर्मित किया जाएगा। जिसके लिए रांची स्थित मैकॉन कंपनी(Macon Comoany) ने semi Cryogenic engine testing facility तैयार की है। इस देशी इंजन टेस्टिंग फैसिलिटी से अंतरिक्ष(Space) में रॉकेट(Rocket) द्वारा सामान ले जाने की क्षमता में बढ़ोतरी होगी।
ऐसे में नए साल के अवसर पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष के.शिवन ने भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के लिए नए दशक की नींव रखी है। संदेश देते हुए के सिवन ने कोरोना महामारी से वर्ष 2020 में मिली चुनौतियों के बाद दो अहम मिशनों के प्रक्षेपण पर एजेंसी की टीम के प्रयासों की सराहना की है।
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स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष के.शिवन ने कहा है कि पिछले दशक में इसरो ने कई उपलब्धियां अपने नाम की। उनमें स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ जीएसएलवी और जीएसएलवी मार्क-3 का ऑपरेशनल होना, मंगलयान मिशन, स्वदेशी जीपीएस नाविक, हाइ थ्रोपुट उपग्रह का प्रक्षेपण, विंग वाले पुन: उपयोग प्रक्षेपण यान (आरएलवी) और स्क्रैमजेट इंजन का तकनीकी प्रदर्शन विशेष उपलब्धियां रहीं।
(फोटो- सोशल मीडिया)
आगे उन्होंने कहा कि अगले दशक की ओर आगे बढऩे से पहले यह देखना होगा कि वैश्विक स्तर अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र का प्रवेश हो चुका है। कई निजी क्षेत्र की कंपनियां अंतरिक्ष मिशनों को अंजाम दे रही है। ऐसे में अब उनकी नजर किफायती अंतरिक्ष परिवहन (स्पेस ट्रांसपोर्टेशन) प्रणाली स्थापित करने के साथ ही उपग्रहों का नक्षत्र स्थापित कर ऑन-डिमांड अंतरिक्ष सेवाएं प्रदान करने पर है।
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कृत्रिम बुद्धिमता और मशीन लर्निंग
देश को नई सफलता की सीढ़ी चढ़ाने की कड़ी में अगली पीढ़ी की अंतरिक्ष प्रणालियां तैयार करनें में कृत्रिम बुद्धिमता और मशीन लर्निंग का अधिकतम इस्तेमाल हो रहा है। अब 5-जी कनेक्टिविटी का दौर है और इसके लिए इको-सिस्टम तैयार करने के साथ ही इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आइओटी) में उपग्रहों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
साथ ही नई तकनीक को लेकर के शिवन ने कहा है कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में विश्व के साथ चलने के लिए ऐसे प्रक्षेपण यानों (रॉकेट) का विकास करना होगा जो भारी उपग्रहों का प्रक्षेपण कर सके। सेमी क्रायोजेनिक चरण, पुन: उपयोगी प्रक्षेपण यान (आरएलवी), उन्नत प्रणोदन, अगली पीढ़ी के एवियोनिक्स, उन्नत मैटेरियल्स, डायनामिक स्पेस एप्लीकेशंस और अंतरिक्ष आधारित सेवाओं के कुशल इंटीग्रेशन के अलावा उन्नत वैज्ञानिक मिशनों की आवश्यकता होगी।
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