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शहीद दिवस: जानिए जेल किसकी जीवनी पढ़ते थे भगत सिंह
फांसी के फैसले के बाद भी भगत सिंह खुश थे, लेकिन देशभर में प्रदर्शन हो रहा था। लाहौर में भारी संख्या में लोग जुटने लगे थे। अंग्रेजों को पता था कि तीनों लोगों की फांसी के दौरान उग्र प्रदर्शन होगा।
नई दिल्ली: आज के ही दिन यानी 23 मार्च भारत के सबसे बड़े क्रांतिकारी भगत सिंह ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के साथ ही उनको दो साथियों सुखदेव और राजगुरु ने भी अपनी जान गंवा दी थी। भगत सिंह को पता था कि उनको देश के लिए अपनी जान की कुर्बानी देनी होगी।
जानकार कहते हैं कि 1 साल और 350 दिनों में जेल में गुजारने के बाद शहीद भगत सिंह काफी प्रसन्न थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश के लिए वह कुर्बान हो जा रहे हैं उन्हें इस बात की काफी खुशी थी। जब भगत सिंह के साथ ही राजगुरु और सुखदेव की फांसी देने का फैसला दिया गया था, तो जेल के सभी कैदी रो रहे थे।
देशभर में हो रहा था प्रदर्शन
फांसी के फैसले के बाद भी भगत सिंह खुश थे, लेकिन देशभर में प्रदर्शन हो रहा था। लाहौर में भारी संख्या में लोग जुटने लगे थे। अंग्रेजों को पता था कि तीनों लोगों की फांसी के दौरान उग्र प्रदर्शन होगा। इसलिए अंग्रेस सतर्क हो गए थे और उन्होंने भीड़ को रोकने के लिए मिलिट्री लगाई दी थी। अंग्रेजों ने देश में किसी भी तरह के बवाल को रोकने के लिए पूरी तैयारी कर रखी थी।
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अंग्रेजों को मालूम था कि अगर किसी तरह विद्रोह शुरू होता है तो उसे रोकना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए ही अंग्रेजों ने भगत सिंह और उनके दो साथियों को तय दिन से एक दिन पहले ही फांसी दे दी थी। भगत सिंह के साथ ही सुखदेव और राजगुरु को दिन 24 मार्च को फांसी की तारीख तय थी, लेकिन अंग्रेजों ने फांसी एक दिन पहले ही दे दी थी। इन तीनों शहीदों के शव को चोरी चुपके सतलुज नदीं किनारे ले जाया गया।
तय समय से पहले फांसी दिए जाने की पूरी प्रक्रिया को अंग्रेजों ने गुप्त रखा हुआ था। फांसी के दौरान कम ही लोग मौजूद थे। एक किताब में कहा गया है कि भगत सिंह के मुताबिक, फांसी के तख्ते पर चढ़ने और गले में फंदा डालने से ठीक पहले भगत सिंह ने डिप्टी कमिश्नर की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा कि मिस्टर मजिस्ट्रेट, आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आप यह देख रहे हैं। भारत के क्रांतिकारी कैसे अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी चढ़ जाते हैं।
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किताबें पढ़ने के काफी शौकीन थे भगत सिंह
शायद कम ही लोगों को पता हो कि भगत सिंह को किताबें पढ़ने के काफी शौकीन थे। वह अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों तक नई-नई किताबें पढ़ते रहे। भगत सिंह किताबें पढ़ने के साथ कुछ लिखकर नोट्स भी बनाते थे। वह जब तक जेल में रहे तब तक कई किताबें पढ़ीं। जब उन्हें फांसी का फैसाल हुआ तो उस समय वह लेनिन की जीवनी पढ़ा करते थे। जेल में रहने वाले पुलिसकर्मी ने उनकी फांसी का समय हो चुका है। भगत सिंह ने कहा कि रुकिए पहले एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से तो मिल ले। इसके बाद उन्होंने एक मिनट तक किताब पढ़ी। फिर किताब बंद कर उसे छत की और फेंक दिया और बोले, 'ठीक है, अब चलो।
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