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किसानों को खलनायक साबित करना पड़ा भारी, व्यापक हुआ आंदोलन

कमल पटेल ने उज्जैन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि ये किसान संगठन ‘कुकुरमु्त्तों’ की तरह उग आए हैं। ये किसान नहीं हैं, बल्कि व्हीलर डीलर और एंटी नेशनल हैं।

Chitra Singh
Published on: 29 Jan 2021 5:25 PM IST
किसानों को खलनायक साबित करना पड़ा भारी, व्यापक हुआ आंदोलन
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किसानों को खलनायक साबित करना पड़ा भारी, व्यापक हुआ आंदोलन

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: सिंघू सीमा पर शुक्रवार को हिंसा भड़क उठी क्योंकि किसान विरोधी प्रदर्शनकारी शुक्रवार दोपहर किसानों के साथ भिड़ गए। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज का सहारा लिया और आंसू गैस के गोले दागे। लेकिन ये स्थिति आई क्यों क्या किसानों को खलनायक साबित करने वालों का आंदोलन की हार का जश्र मनाना किसानों को उकसाने का कारण बना या राकेश टिकैत के आंसू। वजह चाहे जो भी हो किसान एक बार फिर एकजुट होने लगे हैं। झड़पों में कई पुलिसकर्मी और प्रदर्शनकारी घायल हुए हैं। हालांकि कथित रूप से किसानों के धरने के विरोध करने वाले स्थानीय लोगों द्वारा यह कहा जा रहा है कि दो महीने से चल रहे आंदोलन ने उनके दैनिक आवागमन को मुश्किल बना दिया है।

अल्टीमेटम के बावजूद रुके सदस्य

यूपी गेट के विरोध स्थल को खाली करने के लिए गाजियाबाद प्रशासन के अल्टीमेटम के बावजूद, भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के सैकड़ों सदस्य शुक्रवार को दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर रुके रहे। बीकेयू के आह्वान पर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों जैसे मेरठ, बागपत, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद और बुलंदशहर के किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए सुबह से ही यूपी गेट तक पहुंच गए। किसानों भारी तादाद को देखते हुए सुरक्षा बल भी थम गए। गुरुवार शाम को विरोध स्थल पर लगातार बिजली कटौती देखी गई थी, जहां राकेश टिकैत के नेतृत्व वाले बीकेयू सदस्य पिछले साल 28 नवंबर से ठहरे हुए हैं।

टिकैत का भावनात्मक घोषणा

गौरतलब है कि गाजीपुर में दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर पिछली रात तनावपूर्ण थी, जब स्थानीय प्रशासन ने किसानों को तुरंत परिसर खाली करने का आदेश जारी दिया था। हालांकि, किसानों ने इंकार कर दिया। टिकैत ने भावनात्मक रूप से घोषणा की कि "हम आत्महत्या कर लेंगे, लेकिन जब तक खेत के बिल निरस्त नहीं हो जाते तब तक वह विरोध को समाप्त नहीं करेंगे।"

kisan andolan

‘सरकार सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार’

इस बीच, 18 विपक्षी दलों के नेताओं ने दिल्ली के सीमाओं पर तीन हाल ही में बनाए गए कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसान यूनियनों के साथ बजट सत्र से पहले संसद के संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति के प्रथागत संबोधन का बहिष्कार किया। उनके संयुक्त बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, केंद्रीय संसदीय मामलों के मंत्री प्रल्हाद जोशी ने नेताओं से उपस्थित होने की अपील करते हुए कहा, "सरकार सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है"।

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एक बार फिर भड़के किसान

ट्रैक्टर रैली में हुई व्यापक हिंसा के बाद जब किसान आहत होकर खुद ही लौटने का मन बना चुके थे और उनकी वापसी शुरू हो गई थी उस समय कुछ बड़बोले नेताओं और किसान की हा पर जश्न मनाने की घटनाओं में आग में घी डालने जैसा काम किया और किसान एक बार फिर भड़क गए। मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार में कृषि मंत्री कमल पटेल पहले ही प्रदर्शनकारी किसान संगठनों पर विवादित टिप्पणी करके इन संगठनों को ‘कुकुरमुत्ता’ कह चुके है।

किसान संगठन ‘कुकुरमु्त्तों’ की तरह- कमल पटेल

कमल पटेल ने उज्जैन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि ये किसान संगठन ‘कुकुरमु्त्तों’ की तरह उग आए हैं। ये किसान नहीं हैं, बल्कि व्हीलर डीलर और एंटी नेशनल हैं। भारतीय जनता पार्टी के महासचिव अरुण सिंह ने जयपुर में कहा था कि किसान आंदोलन में एक फीसदी भी किसान नहीं हैं। किसान भोले भाले हैं, लेकिन इनमें ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के लोग घुस गए हैं। जिनके बारे में बात करना जरूरी है।

किसानों को उकसा रहे हैं मंत्री

इसके अलावा केंद्र में मोदी सरकार के मंत्री भी किसानों को उकसाने में पीछे नहीं रहे हैं। आंदोलन को लेकर वे भी विवादित बयान दे चुके हैं। किसान संगठनों के साथ बैठक करने वाले केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि अब ये आंदोलन किसानों का नहीं रह गया है, क्योंकि इसमें वामपंथी और माओवादी तत्व शामिल हो गए हैं। गोयल ने कहा था कि इस आंदोलन के माध्यम से राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिए सजा काट रहे लोगों की रिहाई की मांग की जा रही है।

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आंदोलन के पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ

केंद्रीय मंत्री रानासाहेब दानवे ने भी आंदोलन को लेकर टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि देश में जो किसान आंदोलन हो रहा है, उसके पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है।गणतंत्र दिवस परेड के दिन दिल्ली और लालकिले पर घटनाओं के बाद किसानों पर आंदोलन विरोधी कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो गए जिसका नतीजा किसान आंदोलन का एक बार फिर उग्र रूप में सामने आया। पहली जरूरत समस्या के समाधान की है इस बात को केंद्र सरकार और उसके मंत्रियों को समझना होगा।

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