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Medical : विदेशी एमबीबीएस छात्र देश में फेल
नई दिल्ली। अपने देश में कड़े कंपटीशन के कारण ढेरों छात्र विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई करते हैं। लेकिन उनमें से मात्र १५ फीसदी छात्र ही 'फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एक्जामिनेशनÓ (एफएमजीई) पास कर पाते हैं जो भारत में डॉक्टरी का लाइसेंस प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।
इन १५ फीसदी छात्रों में से भी अधिकांश बांग्लादेश या मॉरीशस से पढ़ाई किए हुए होते हैं जहां जाना बहुतेरे छात्र पसंद नहीं करते।
एफएमजीई कराने वाली संस्था नेशनल बोर्ड ऑफ एक्जामिनेशंस ने २०१५ से २०१८ के बीच विदेशी मेडिकल संस्थानों से डिग्री ले कर लौटे ६१,७०८ भारतीय छात्रों का विश्लेषण किया तो पाया कि मात्र ८,७६४ छात्र यानी १४.२ फीसदी ही एफएमजीई पास कर पाए हैं। चीन, रूस और उक्रेन से डिग्री लेने वाले छात्रों का पासिंग रिकार्ड सबसे बुरा रहा।
एफएमजीई में बैठे कुल छात्रों में से ५४०५५ या ८७.६ फीसदी छात्र सात देशों - चीन, रूस, बांग्लादेश, उक्रेन, नेपाल, किर्गिस्तान और कजाखस्तान से पढ़ कर आए थे।
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आंकड़े के अनुसार, मारीशस से पढ़ कर आए १५४ छात्रों में से ८१ ने परीक्षा पास कर ली। इसी तरह बांग्लादेश से पढ़े १२६५ छात्रों में से ३४३ ने तथा नेपाल से पढ़ कर आए ५८९४ छात्रों में से १०४२ ने एफएमजीई परीक्षा पास की। यानी इन देशों से डिग्री लेने वाले छात्रों का एफएमजीई में सक्सेस रेट क्रमश: ५२, २७.११ और १७.६८ फीसदी रहा। दूसरी तरह चीन से पढ़े २०३१४ छात्रों में मात्र २३७० छात्र ही पास हो पाए। चीन, रूस और उक्रेन से पढ़ाई करने वालों का सक्सेस रेट क्रमश: ११.६७, १२.८९ व १५ फीसदी रहा।
नीति आयोग के सदस्य (हेल्थ) डा. विनोद पॉल के अनुसार, इन आंकड़ों को इसलिये सार्वजनिक किया गया है ताकि कैंडीडेट्स व उनके पेरेंट्स किसी विदेशी मेडिकल कालेज को चुनते वक्त सही निर्णय ले सकें। दरअसल ज्यादातर लोगों को पता नहीं होता कि विदेशी संस्थानों में प्रशिक्षण की क्वालिटी उतनी उत्तम नहीं है जिसकी भारत में प्रैक्टिस करने के लिए जरूरत होती है।
विदेशी पढ़ाई बेहद महंगी
बांग्लादेश में पांच साल की मेडिकल पढ़ाई का खर्चा ३० लाख रुपए से ज्यादा आता है। वहीं मारीशस में ४० लाख व नेपाल में ५० लाख रुपए के करीब खर्चा बैठता है। चीन में मेडिकल की पढ़ाई २० लाख रुपए से अधिक की पड़ती है।
भारत में मेडिकल की पढ़ाई कर पाना कोई आसान काम नहीं है। एडमिशन के लिए जबर्दस्त स्पर्धा। एडमिशन मिल गया तो पढ़ाई पूरी करने में कठिन मेहनत। पीजी करने के लिए फिर दोगुनी मेहनत। इनसे बचने के लिए तमाम स्टूडेंट्स विदेशी मेडिकल कालेजों का सहारा लेते हैं। पैसा दिया, एडमिशन लिया और आसानी से परीक्षा पास करके डिग्री भी ले ली।
लेकिन भारत लौट कर डॉक्टरी करने में एक बड़ी चुनौती पार करनी होती है। वो है 'फारेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एक्जामिनेशनÓ (एफएमजीई)। विदेश से मेडिकल की पढ़ाई कर के लौटे हर छात्र को ये परीक्षा अनिवार्यत: पास करनी होती है। इसके बाद ही भारत में प्रैक्टिस का लाइसेंस मिल सकता है।
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चीन में पढ़े १२ फीसदी छात्र ही भारत में पास
२०१५ से २०१८ के बीन चीन से मेडिकल की पढ़ाई करके लौटे छात्रों में से मात्र १२ फीसदी ही एफएमजीई परीक्षा पास कर पाए। इस दौरान चीन के ८६ मेडिकल कालेजों से से २०३१० भारतीय छात्र पढ़ाई करके लौटे। इनमें से मात्र २३६९ छात्र ही एफएमजीई परीक्षा पास कर सके। चीन की जो मेडिकल यूनीवर्सिटी अंतरराष्ट्रीय छात्रों का एडमिशन लेने के लिए अधिकृत हैं वहां पढ़े भारतीय छात्रों का उनका एफएमजीई में रिजल्ट थोड़ा बेहतर (१२.१७ फीसदी) रहा है। इन अधिकृत यूनीवसॢटी में एमबीबीएस की पढ़ाई इंग्लिश में होती है। चीन का शिक्षा मंत्रालय हर साल उन मेडिकल यूनीवर्सिटी की सूची जारी करता है जो अंतरराष्ट्रीय छात्रों का एडमिशन कर सकती हैं। इस शैक्षिक सत्र में ४५ यूनीवर्सिटी की लिस्ट जारी की गई है। इनमें कुल ३३७० सीटें हैं। वैसे चीन में करीब २१४ यूनीवर्सिटी हैं जहां भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई करते हैं। चीन की ४५ अप्रूव्ड यूनीवर्सिटी में से ४२ में पढ़ाई करके आए १४७०२ छात्रों में से सिर्फ १७९० छात्र ही एफएमजीई परीक्षा पास कर सके। चीन में सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि पाकिस्तान से भी ढेरों छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने जाते हैं। इस सत्र में ही करीब २५ हजार पाकिस्तानी छात्र वहां पढ़ाई कर रहे हैं।
महंगा हो गई विदेश की पढ़ाई
विदेश में पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों की ट्यूशन और हॉस्टल फीस का खर्चा अब करीब 44 फीसदी बढ़ चुका है। यह खर्च 2013-14 में 1.9 अरब डॉलर था, जो 2017-18 में बढ़कर 2.8 अरब डॉलर हो गया। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2024 तक लगभग चार लाख भारतीय छात्र विदेशी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेंगे। फिलहाल दुनिया भर में 50 लाख से अधिक छात्र अपने देश से बाहर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और इनमें भारतीय छात्रों की काफी बड़ी संख्या है। विदेशी शिक्षा हासिल करने के मामले में भारतीयों की पहली पसंद अमेरिका, कनाडा और यूके जैसे देश हैं। इसके बाद सिंगापुर, चीन, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी और फ्रांस जैसे अन्य यूरोपीय देशों का नंबर आता है। लेकिन मेडिकल की पढ़ाई इन देशों में कर पाना बेहद महंगा और कठिन है सो भारतीय छात्र चीन, रूस, नेपाल जैसे देशों का रुख करते हैं।