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खौफनाक साजिश, उसने छूरे से सबसे बड़े अधिकारी को फाड़ डाला
ये आठ फरवरी का दिन था जब भारत के वायसराय लार्ड मेयो की बेरहमी से हत्या हुई थी। भारत और दुनिया के तमाम देशों के लिए ये वारदात किसी बड़े सदमे से कम न थी। एक ऐसी घटना जिसे किसी बड़े गिरोह या संगठन ने नहीं एक अदने से इंसान ने अंजाम दिया था।
रामकृष्ण वाजपेयी
ये एक खौफनाक साजिश थी जिसमें कालापानी जेल का निरीक्षण खत्म होते ही वह घात लगाकर चीते की तरह देश के इस सबसे बड़े अफसर पर झपटा और नुकीले खंजर से उसे गोद डाला। इस वारदाता ने बिरतानिया हुकूमत की चूलें हिला दीं। कभी न डूबने वाले सूरज के इस साम्राज्य को रात की घनी चादर ने ढक लिया।
ये आठ फरवरी का दिन था जब भारत के वायसराय लार्ड मेयो की बेरहमी से हत्या हुई थी। भारत और दुनिया के तमाम देशों के लिए ये वारदात किसी बड़े सदमे से कम न थी। एक ऐसी घटना जिसे किसी बड़े गिरोह या संगठन ने नहीं एक अदने से इंसान ने अंजाम दिया था।
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और पहले से सजायाफ्ता शेर अली अफरीदी की जुबान पर बस एक ही रट थी मैने अल्लाह की मरजी पूरी की है। अल्लाह ने मुझे ऐसा करने का आदेश दिया था। हालांकि इससे पहले अपने साथियों से उसने कहा था कि अंग्रेज इस देश से तभी जाएंगे, जब उनके सबसे बड़े अधिकारी को मारा जाएगा।
अंग्रेजों में पैदा हो गया खौफ
वायसराय उस समय देश का सबसे बड़ा अधिकारी होता था। शेर अली की बात सच निकली और वायसराय की हत्या के बाद अंग्रेज वाकई खौफ में आ गए। इसीलिए इस खबर को फैलने से न सिर्फ रोका गया बल्कि शेर अली को चुपचाप फांसी पर लटका दिया गया।
चौंकाने वाली बात यह है कि इस सनसनीखेज वारदात के समय शेर अली आफरीदी अंडमान निकोबार में हत्या के एक मामले में सजायाफ्ता कैदी था। क्या शेर अली एक पेशेवर अपराधी था या क्रांतिकारी। वह पेशेवर अपराधी तो नहीं था और न ही उसके क्रांतिकारियों के संपर्क में होने का कोई प्रमाण मिला। अलबत्ता एक बात सही है कि जिस समय उसे सेलुलर जेल भेजा गया उस समय वहां कई क्रांतिकारी भी बंद थे।
कौन था शेर अली
शेर अली ने 1860 के दशक में पंजाब पुलिस में काम किया था। वह खैबर एजेंसी में तिरा घाटी का रहने वाला पठान था। उसने पेशावर के आयुक्त के लिए भी काम किया। अंबाला में घुड़सवार रेजिमेंट में रहा। 1857 के विद्रोह के दौरान शेर अली रुहेलखंड और अवध में सेना में रहा। शेर अली को घोड़े, पिस्तौल और प्रमाण पत्र के साथ सम्मानित किया गया। वह यूरोपीय लोगों के बीच लोकप्रिय था।
सजा याफ्ता था शेर अली
पठान चूंकि गरम दिमाग के होते हैं इसलिए एक पारिवारिक विवाद के दौरान पेशावर में उसके हाथों उसके एक रिश्तेदार की मौत हो गई। शेर अली ने इस मामले में खुद को निर्दोष बताया लेकिन उसकी नहीं सुनी गई और 2 अप्रैल 1867 को उसे मौत की सजा सुनाई गई। अपील करने पर उनकी सजा कम करके उसे आजीवन कारावास कर दिया गया।
नाई का काम मिला था
सजा काटने के लिए शेर अली को काला पानी या अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में निर्वासित कर दिया गया था। अच्छे व्यवहार व चालन चलन के नाते उसे जेल में नाई का काम करने इजाजत मिल गई। यहां उसकी तमाम वहाबी लोगों और क्रांतिकारियों से मुलाकात हुई।
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शेर अली के दिमाग में एक बात घर कर गई थी कि अंग्रेज सिपाहियों को कई कई हत्याओं को अंजाम देने के बाद भी सजा नहीं मिलती और भारतीयों को दोषी न होने पर भी सजा दे दी जाती है। वह अंग्रेजों को सबक सिखाने की तैयारी में जुट गया।
और मौका मिल गया
और आठ फरवरी 1872 को शेर अली ये मौका मिल गया जब गर्वनर जनरल लॉर्ड मेयो अंडमान निकोबार के पोर्ट ब्लेयर में सेलुलर जेल के कैदियों का हाल जानने और सुरक्षा समीक्षा करने के लिए वहां आए।
मेयो का दौरा पूरा हो चुका था। ये शाम के लगभग सात बजे का समय था। शाम तेजी से स्याह आगोश में सिमट रही थी। अंधेरा हो रहा था। लॉर्ड मेयो अपनी बोट की तरफ लौट रहा था जहां लेडी मेयो उसका बोट में ही इंतजार कर रही थी।
वायसराय का सिक्योरिटी दस्ता निश्चिंत हो चुका था। नाई का काम करने के कारण शेर अली के पास खतरनाक औजार के नाम पर उस्तरा या चाकू ही था। वायसराय जैसे ही बोट की तरफ बढ़ा, बिजली की तेजी से शेर अली वायसराय की तरफ झपटा, जब तक कोई कुछ समझ पाता देर हो चुकी थी।
शेर अली अपने काम को अंजाम दे चुका था। लॉर्ड मेयो मौके पर ही दम तोड़ चुका था। शेर अली को मौके से ही पकड़ लिया गया। शेर अली को 11 मार्च 1873 को फांसी की सजा दी गई।