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जानिए कौन हैं वीर सावरकर, उद्धव ने कहा- जिनके पीएम बनने पर नहीं बंटता देश

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर वीर सावरकर इस देश के प्रधानमंत्री होते तो पाकिस्तान का जन्म भी नहीं होता। उन्होंने वीर सावरकर के लिए देश के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न की भी मांग की और कहा कि हमारी सरकार हिंदुत्व की सरकार है।

Dharmendra kumar
Published on: 11 May 2023 4:54 PM GMT (Updated on: 11 May 2023 4:58 PM GMT)
जानिए कौन हैं वीर सावरकर, उद्धव ने कहा- जिनके पीएम बनने पर नहीं बंटता देश
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मुंबई: शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर वीर सावरकर इस देश के प्रधानमंत्री होते तो पाकिस्तान का जन्म भी नहीं होता। उन्होंने वीर सावरकर के लिए देश के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न की भी मांग की और कहा कि हमारी सरकार हिंदुत्व की सरकार है।

एक आत्मकथा 'सावरकर: इकोज फ्रॉम अ फॉरगाटेन पास्ट' के विमोचन के मौके शिवसेना प्रमुख ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि सावरकर को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए। हम गांधी और नेहरू द्वारा किए गए काम से इंकार नहीं करते हैं, लेकिन देश ने दो से अधिक परिवारों को राजनीतिक परिदृश्य पर अवतरित होते हुए देखा।

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ठाकरे ने अपने भाषण में कहा कि उन्हें नेहरू को वीर कहने में कोई आपत्ति नहीं है यदि वह 14 मिनट भी जेल के भीतर सावरकर की तरह रहे होते। सावरकर 14 साल तक जेल में रहे थे।

जानिए कौन थे वीर सावरकर?

वीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था, भारतीय इतिहास में उनको न सिर्फ स्वाधितनता संग्राम का तेजस्वी सेनानी माना जाता है बल्कि उन्हे महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता और दूरदर्शी राजनेता भी कहा जाता है।

इतना ही नहीं हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय भी सावरकर को ही जाता है। वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार थे जिन्होंने ब्रटिश शासन को हिला कर रख दिया था।

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उनका जन्म नासिक के भांगुर गांव में हुआ था। उनके दो भाई एक बहन थी। 1904 में उन्होंने एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की जिसका नाम रखा गया 'अभिनव भारत'।

इसके 1905 में बंगाल विभाजन के बाद उन्होंने पुणे में विदेशी कपड़ों की होली जलाई। सावरकर रूसी क्रांतिकारियों से काफी प्रभावित थे। 10 मई, 1907 को इन्होंने इंडिया हाउस, लंदन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई।

जून, 1907 में सावरकर की पुस्तक द इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेण्डेंस 1857 तैयार हो गयी लेकिन इसके छपने में दिक्कत आई. बाद ये किताब गुप्त रूप से हॉलेंड में प्रकाशित की गई।

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1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लंदन टाइम्स में एक लेख लिखा था। इसके बाद 13 मई 1910 को पेरिस से लंदन पहुंचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन जुलाई में वो भाग निकले।

24 दिसंबर को उन्हे उम्रकैद की सजा दी गई। 1911 में एक और मामले में सावरकर को उम्रकैद की सजा दी गई। इसके बाद नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत सावरकर को 11 अप्रैल को काला पानी की सजा दे दी गई।

काला पानी की सजा

इस दौरान उन्हें सेलुलर जेल भेज दिया गया। इस जेल में स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था।

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इतना ही नहीं उन्हें कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों और नारियल का तेल निकालना पड़ता था। इन सबके अलावा उन्हें जंगलों को साफ करना पड़ता खा।

अगर कोई भी कैदी काम करते वक्त थक कर रुक जाता तो उसे कोड़ों से पीटा जाता। वहां मौजूद कैदियों को पेट भर खाना भी नहीं दिया जाता था। सावरकर इस जेल में 10 सालों तक रहे जिसके बाद 21 मई 1921 को उन्हें रिहा कर दिया गया।

जेल से रिहा होने पर देश वापस लौटे और 3 साल फिर सजा काटी। इस दौरान जेल में उन्होंने हिंदुत्व पर शोध ग्रंथ भी लिखा। 26 फरवरी 1966 में 82 वर्ष की उम्र में उनका मुंबई में निधन हो गया था।

Dharmendra kumar

Dharmendra kumar

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