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मुस्लिमों ने पेश की मानवता की मिसाल, हिंदू पड़ोसी का किया अंतिम संस्कार
लॉकडाउन के दौरान करीब 2,000 किमी दूर मुंबई के उपनगर बांद्रा में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपने 68 वर्षीय हिंदू पड़ोसी का अंतिम संस्कार करने में मदद की। वे ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हुए अर्थी को श्मशान घाट तक ले गये। ऐसा करके मुस्लिम समुदाय ने सांप्रदायिक सौहार्द का एक अनूठी मिसाल पेश की है,
मुंबई: लॉकडाउन के दौरान करीब 2,000 किमी दूर मुंबई के उपनगर बांद्रा में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपने 68 वर्षीय हिंदू पड़ोसी का अंतिम संस्कार करने में मदद की। वे ‘राम नाम सत्य है’ बोलते हुए अर्थी को श्मशान घाट तक ले गये। ऐसा करके मुस्लिम समुदाय ने सांप्रदायिक सौहार्द का एक अनूठी मिसाल पेश की है, जिसकी काफी चर्चा हो रही है। दरअसल, कोरोना वायरस के मद्देनजर देशभर में लागू लॉकडाउन के बीच बांद्रा में रहने वाले राजस्थान मूल के 68 वर्षीय एक बुजुर्ग, जिसे लोग अंकल जी के नाम से पुकारते थे, की मौत हो गई।
लॉकडाउन में फंसे होने की वजह न तो अंकल जी का राजस्थान से कोई रिश्तेदार आ पाया और न ही नालासोपारा में रहने वाले उनके दोनों बेटों में से कोई बेटा। ऐसे में अंकल जी के पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उनकी लाश का अंतिम संस्कार करने की पहल की और धार्मिक सद्भावना का मिसाल पेश कर हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का समाज में संदेश दिया। अंतिम संस्कार में शामिल अंकल जी के पड़ोसी यूसुफ सिद्दीकी शेख ने बताया कि हमारे पड़ोस में सालों से राजस्थान मूल के निवासी प्रेमचंद्र बुद्धलाल महावीर जी रहते थे। उनको हम लोग अच्छी तरह से जानते थे। लोग उन्हें अंकल जी कहा करते थे।
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लॉकडाउन में उनका इंतकाल हो गया, मगर यहां उनका अंतिम संस्कार करने की समस्या खड़ी हो गई। ऐसे में अंकल जी का एक रिश्तेदार सामने आया, जिन्होंने अंकल जी को मुखाग्नि दी, जबकि हम लोगों ने धार्मिक बंधन को तोड़कर इंसानियत और मानवता का परिचय देते हुए अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया। करीब दर्जन भर मुसलमान भाइयों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए हिंदू धर्मावलंबी प्रेमचंद महावीर जी उर्फ अंकल जी के अर्थी को कंधा दिया। रास्ते भर 'राम नाम सत्य है' की घोषणा की और बांद्रा हिंदू श्मशान भूमि में ले जाकर उनकी लाश को पंचतत्व में विलीन कर दिया।
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मुस्लिम समुदाय ने बढ़ाया मदद का हाथ
राजस्थान के एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रेमचंद महावीर का लंबी बीमारी के कारण निधन हुआ है। महावीर की लाश को मुखाग्नि देने वाले रिश्तेदार मोहन महावीर ने बताया कि अंकल जी की मौत की खबर उन्होंने उनके रिश्तेदारों को दिया, लेकिन वे लोग लॉकडाउन की वजह से बांद्रा नहीं आ सके। यहां तक कि बान्द्रा से करीब 55 किलोमीटर दूर पालघर जिले के नालासोपारा में रहने वाले उनके दोनों बेटों को भी अंकल जी की मौत के बारे में सूचित करने का प्रयास किया गया, लेकिन असफल रहा। आखिरकार, लॉकडाउन की वजह से उन लोगों के बांद्रा नहीं आने पर अंकल जी के पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मदद की और वे मुस्लिम पड़ोसियों की मदद से अंतिम संस्कार क्रिया को संपन्न किया।
मुस्लिम समुदाय के लोग खुद से आगे आए और अंकल जी का अर्थी तैयार कर उनकी लाश को कंधे पर लादकर न सिर्फ श्मशान भूमि लेकर गए, बल्कि अंतिम संस्कार करवाने में मदद की। बीएमसी से मृत्यु प्रमाणपत्र बनाने में भी मदद की। बेटों का कहना है कि मुस्लिम समुदाय के इस मदद के लिए आजीवन शुक्रगुजार रहेंगे, जिन्होंने इस विपरीत स्थिति में मदद की। गौरतलब है कि लॉकडाउन में मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कोरोना के 62 वर्षीय संदिग्ध मरीज को मालवनी में चारकोप नाका कब्रिस्तान समिति ने जब दफनाने से इनकार कर दिया, तो हिंदू श्मशान भूमि समिति में उनकी लाश को जलाकर हिन्दू-मुस्लिम एकता का परिचय दिया था।