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उम्र को भी हराते राम नाईक, राज्यपाल तक के सफर पर एक नजर

raghvendra
Published on: 14 Feb 2020 12:15 PM GMT
उम्र को भी हराते राम नाईक, राज्यपाल तक के सफर पर एक नजर
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मुंबई: कुछ उम्र से थक जाते हैं और कुछ उम्र को थका देते हैं। ऐसे ही उम्र को थका देने वाले हैं राम नाईक। 85 वर्ष की उम्र पार कर चुके राम नाईक आज भी उतने एक्टिव हैं जितना वे पहले थे। वे सुबह से ही अपने गोरेगांव स्थित कार्यालय में आकर बैठ जाते हैं। आम जन मानस आज भी उनके पास अपने काम, अपनी समस्यायें लेकर आशा और उम्मीद के साथ आता है। राम नाईक शुरू से ही संघ से जुड़े रहे। भारतीय जनता पार्टी में प्रमुख पदों पर रहे राम नाईक से ‘अपना भारत’ के मयंक शर्मा ने लंबी बातचीत की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश।

16 अप्रैल, 1934 में जन्मे राम नाईक बचपन में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए थे। 1959 में उन्होंने भारतीय जनसंघ में एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में शामिल होते हुए अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 1969 में वे भारतीय जनसंघ में मुंबई क्षेत्र के संगठन मंत्री बने। 1978 से 1980 तक वे जनता पार्टी के मुंबई अध्यक्ष रहे। बाद में जब भारतीय जनता पार्टी बनी और तब वे उसके लिए भी 1980, 1983 और 1991 में मुंबई अध्यक्ष बने। महाराष्ट्र विधानसभा में मुंबई के बोरीवली क्षेत्र से उन्होंने चुनाव लड़ा और लगातार तीन बार 1978, 1980 और 1985 में वे विधायक चुने गए। 1989 से 2004 तक लगातार पांच बार वे उत्तर मुंबई लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे।

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वे 1999 से 2004 तक केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री रहे। 2005 से 2014 तक राम नाईक भारतीय जनता पार्टी की विभिन्न समितियों एवं प्रकोष्ठों का नेतृत्व किया। 25 सितम्बर, 2013 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती के दिन उन्होंने चुनावी राजनीति से निवृत्ति की घोषणा कर दी।

इस बीच मई, 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो 22 जुलाई, 2014 को राम नाईक को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। 28 जुलाई, 2019 तक वे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बने रहे और इस दौरान उन्होंने प्रदेश पर अपनी एक जबरदस्त छाप छोड़ी।

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राष्ट्र प्रेम से ओत प्रोत व्यक्तित्व

राम नाईक कहते हैं, ‘जन गण मन’ और ‘वन्दे मातरम’ यह दो ऐसे गीत हैं, जिन्हें प्रत्येक भारतीय सम्मान देता है। दुनिया के चाहे किसी भी कोने में यह गीत गूंजे, वे सिर्फ और सिर्फ भारतीय अस्मिता का अहसास दिलाते हैं।

लोकसभा और राज्यसभा के हर सत्र की शुरुआत में ‘जन गण मन’ और सत्र के समापन में ‘वन्दे मातरम’ गाया जाता है। इस परम्परा की शुरुआत का श्रेय राम नाईक को ही जाता है। 1991 में संसद में प्रश्नकाल के दौरान इस संदर्भ में एक प्रश्न उठा कि कुछ शैक्षणिक संस्थानों में राष्ट्रगान और राष्ट्र गीत क्यों नहीं गाया जाता है? राम नाईक ने इन्हीं प्रश्नों को आधार बनाकर सदन में इस विषय पर चर्चा की मांग रखी। 9 दिसंबर, 1991 को इस विषय पर लोकसभा में चर्चा हुई। राम नाईक बताते हैं कि इस चर्चा के दौरान मैंने सदन से आह्वान किया कि संसद में वन्दे मातरम् एवं जन गण मन की प्रतिष्ठा बरकरार रखने के लिए विशेष प्रयास किये जाने चाहिए। इस विषय का अधिकतर राजनीतिक दलों के नेताओं ने समर्थन किया। राम नाईक जी ने चर्चा के बाद भी इस विषय को छोड़ा नहीं। उन्होंने संसद के कामकाज के सम्बन्ध में नियम बनाने वाली सामान्य प्रयोजनों वाली समिति में भी इस विषय को रखा। अंतत: सामान्य प्रयोजन समिति ने यह निर्णय लिया कि संसद सत्र की शुरुआत ‘जन गण मन’ से हुआ करेगी, जबकि समापन ‘वन्दे मातरम’ से हुआ करेगा। निर्णय के अनुसार भारत की 10वीं संसद ने अपने 5 वें सत्र में 24 नवंबर, 1992 को पहली बार जन गण मन से सत्र का आरम्भ हुआ और 23 दिसंबर, 1992 को इस सत्र का समापन वन्दे मातरम् से हुआ।

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सांसद निधि

राम नाईक ने बताया कि देश, राज्य या महापालिका के नियोजन में मैंने कई बार यह महसूस किया था कि जनहित के छोटे छोटे काम कई बार कोष न होने के कारण संपन्न नहीं हो पाते थे। इसी को ध्यान में रखते हुए मैंने सांसद निधि की संकल्पना की और 14 जनवरी, 1990 को तत्कालीन वित्तमंत्री प्रोफेसर मधु दंडवते के समक्ष इसे रखा। इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए संसद के भीतर एवं बाहर मैंने लगातार प्रयास किये। अंतत: 23 दिसंबर, 1993 को प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने संसद में इस योजना की घोषणा की और इसे लागू किया गया। इसी निर्णय के आधार पर ही आगे चलकर विधायक निधि एवं पार्षद निधि की भी व्यवस्था की गई।

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में

राम नाईक निर्णय लेने में सदैव से आक्रामक रहे हैं, लेकिन अपनी आक्रामकता में भी वे संतुलन बना के रखते थे, जिससे कि कोई व्यर्थ का विवाद न पैदा हो। उत्तर प्रदेश में उनके राज्यपाल का कार्यकाल भी ऐतिहासिक रहा। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपने कार्यकाल के दौरान बड़े बदलाव किये। प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में दीक्षांत समारोहों को नियमित करवाया। दीक्षांत समारोहों में पहनी जाने वाली अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही पाश्चात्य पोशाकों का उन्होंने भारतीयकरण करवाया। अब दीक्षांत समारोहों में गाउन की बजाय भारतीय पोशाकों का इस्तेमाल किया जाने लगा है। उनके कार्यकाल के दौरान आम जान मानस के लिए राज भवन के दरवाजे सदैव खुले रहे।

राम नाईक बताते हैं कि अपने कार्यकाल के दौरान मुझे लगभग 2,21,641 नागरिकों से पत्र प्राप्त हुए, लगभग 30,589 नागरिकों से मैंने मुलाकात की और इस दौरान लगभग 1,866 सार्वजानिक कार्यक्रमों में में मैंने हिस्सा लिया लिया।

योगी आदित्यनाथ एवं उत्तर प्रदेश की राजनीति

बतौर राज्यपाल यूपी के कार्यकाल के दौरान वहां की सरकारों से सम्बन्ध कैसे रहे, इस पर राम नाईक बताते हैं कि ‘मैंने तो अपने कार्यकाल में सपा और भाजपा दोनों ही सरकारों के साथ काम किया है, मेरे दोनों ही सरकारों से सम्बन्ध अच्छे रहे। जहां तक योगी जी की बात है तो उनके कार्यकाल में उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश बनने की ओर बढ़ा है। योगी जी के सक्षम प्रशासन ने अपराध पर लगाम लगाई है, विकास कार्य चल रहे हैं। इन्वेस्टर समिट के माध्यम से 4.59 लाख करोड़ रुपयों का निवेश प्रदेश में आया। देश का सबसे बड़ा डिफेन्स एक्सपो वहां हुआ है। मुझे तो ऐसा ही महसूस हुआ है कि योगी आदित्यनाथ जी के रूप में उत्तर प्रदेश को एक उत्कृष्ट मुख्यमंत्री मिला है। योगी जी दरअसल दीर्घदृष्टि रखने वाले नेता हैं, वो पहले समस्या के मूल में जाते हैं और फिर उस समस्या को सुधरने की कोशिश करते हैं। वो उत्तर प्रदेश को प्रगति पथ पर आगे बढ़ा रहे हैं। उनकी प्रशासनिक क्षमता बेजोड़ है, पिछले वर्ष कुम्भ के आयोजन का ही उदाहरण ले लीजिये, क्या भव्य आयोजन था। वैश्विक स्तर का इतना बड़ा आयोजन और एक छोटी सी दुर्घटना का भी दाग नहीं।

सीएए-एनआरसी शाहीनबाग

सीएए - एनआरसी विवाद और शाहीनबाग में चल रहे प्रदर्शनों से संबंधित प्रश्न पर राम नाईक ने कहा कि जहां तक सीएए - एनआरसी की बात है, तो एक कानून जो एकदम लोकतान्त्रिक ढंग से संसद में बाकायदा पास हुआ है। उसका अलोकतांत्रिक रीति से विपक्ष द्वारा विरोध मेरी समझ के बाहर है। इस विषय में विपक्ष भ्रम और केवल भ्रम फैला रहा है। यह क़ानून देश के किसी भी मौजूदा नागरिक को प्रभावित ही नहीं करता है, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान। दरअसल विपक्ष भारतीय जनता पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान है और वह अनाप शनाप आरोप गढऩे और भारत की जनता को दिग्भ्रमित करने की फिराक में है।

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शाहीनबाग में भीड़ इकठ्ठा करके भला विपक्ष क्या सिद्ध करना चाहता है? इससे उनकी ताकत नहीं, बल्कि कमजोरी स्पष्ट रूप से नजर आती है। शाहीनबाग जैसे आंदोलन खड़ा करके क्या विपक्ष दिल्ली राज्य की जनता से नाइंसाफी नहीं कर रहा है। आप देश की राजधानी की एक सडक़ पर यूँ मजमा लगाकर आखिर साबित क्या करना चाहते हैं? इससे न तो देश खुश है और न ही दिल्ली की जनता और इसका नतीजा भी विपक्ष को एक न एक दिन भुगतना ही पड़ेगा।

इस अंतिम सवाल के जवाब के साथ राम नाईक जी ने ‘अपना भारत’ की टीम को विदा किया और कतार में बैठे आम जन मानस की सुनने सुनाने में पुन: व्यस्त हो गए।

महाराष्ट्र में शिक्षण संस्थाओं में राष्ट्रगान

महाराष्ट्र सरकार के उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में होने वाले सभी कार्यक्रमों के प्रारम्भ में राष्ट्रगान गाया जाएगा।

राम नाईक ने ‘अपना भारत’ से बात करते हुए बताया कि इस सकारात्मक कदम के लिए मैंने उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री उदय सामंत को टेलीफोन पर धन्यवाद प्रेषित किया और उनको एक अभिनन्दन पत्र भी अपनी ओर से भेजा। मैंने उन्हें सलाह यह भी सलाह दी कि महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में होने वाले सभी कार्यक्रमों का समापन यदि वन्दे मातरम् से होगा, तो यह और भी अच्छा होगा। हमारी आने वाली पीढिय़ों का राष्ट्र प्रेम से सराबोर होना अति आवश्यक है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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