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कोई नहीं हिला सका इनका सिंहासन: दो दशक से हैं मुख्यमंत्री, जानें इस धुरंधर के बारे में

पिता की राजनीतिक विरासत की सियासत संभालने वाले नवीन पटनायक का जन्म 16 अक्टूबर 1946 में ओडिशा के कटक में हुआ। उनके पिता बीजू पटनायक ओडिशा की सियासत के दिग्गज नेता थे, जिन्होंने कांग्रेस के खिलाफ जनता दल के साथ खड़े हुए और अपनी नई राजनीतिक लकीर खींची थी।

SK Gautam
Published on: 5 March 2020 11:29 AM GMT
कोई नहीं हिला सका इनका सिंहासन: दो दशक से हैं मुख्यमंत्री, जानें इस धुरंधर के बारे में
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नई दिल्ली: राजनिति में कुर्सी कब छीन जायेगी कोई कह नहीं सकता है। लेकिन ओडिशा राजनीति के बादशाह कहे जाने वाले नवीन पटनायक ने मुख्यमंत्री के तौर पर बीस साल का सफर पूरा कर चुके हैं। बीजू जनता दल के मुखिया और सीएम के तौर पर नवीन पटनायक ने ऐसी सियासी बिसात बिछाई है कि मनमोहन सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक उनके मजबूत दुर्ग को न तो भेद सके और न ही उनकी सत्ता के सिंहासन को हिला सके। 5 मार्च, 2000 में नवीन पटनायक ने ओडिशा की सत्ता की कमान संभाली थी और आज 20 साल के बाद भी उनकी बादशाहत बरकरार है।

पिता बीजू पटनायक ओडिशा की सियासत के थे धुरंधर

पिता की राजनीतिक विरासत की सियासत संभालने वाले नवीन पटनायक का जन्म 16 अक्टूबर 1946 में ओडिशा के कटक में हुआ। उनके पिता बीजू पटनायक ओडिशा की सियासत के दिग्गज नेता थे, जिन्होंने कांग्रेस के खिलाफ जनता दल के साथ खड़े हुए और अपनी नई राजनीतिक लकीर खींची थी। नवीन पटनायक की पढ़ाई देहरादून की दून यूनिवर्सिटी और दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से हुई और अपने पिता की राह पर चलते हुए सियासत में कदम रखा।

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पिता की मृत्यु के बाद ली राजनीति में एंट्री

नवीन पटनायक 1996 में अपने पिता की मृत्यु के बाद राजनीति में आए। 1996 में हुए उप-चुनाव में वह जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते। 1997 में जनता दल टूट गई और नवीन पटनायक ने खुद की पार्टी 'बीजू जनता दल' बना ली। साल 2000 में उन्होंने ओडिशा में बीजेपी के साथ गठबंधन किया और विधानसभा चुनाव जीते। इसके बाद सूबे के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

इसके बाद 2004 में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव हुए नवीन पटनायक का जादू लोगों को सिर चढ़कर बोला और वो एक बार फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। साल 2007 में बीजेपी से उनके रिश्तों में खटास पैदा हुई और गठबंधन टूट गया। नवीन पटनायक ने 2009 में नवीन पटनायक ने अकेले चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की और 21 मई 2009 को मुख्यमंत्री के तौर पर नवीन पटनायक ने सत्ता की हैट्रिक लगाई। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जादू ओडिशा में नहीं चल सका।

नवीन पटनायक के दुर्ग को कोई भेद नहीं सका

साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में पटनायक की पार्टी ने 147 विधानसभा सीटों में से 117 सीटें जीतीं। वहीं, लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने प्रदेश की 21 सीटों में से 20 सीटें जीतीं। इस चुनाव में नरेंद्र मोदी का जादू देश भर में चला, लेकिन नवीन पटनायक के दुर्ग को भेद नहीं सके। ऐसे ही 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी हुआ और नरेंद्र मोदी एक बार फिर पटनायक के गढ़ को भेद नहीं सके। नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में भले ही जीत दर्ज की हो, लेकिन विधानसभा चुनाव में पटनायक का ही जादू चला।

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महिला मतदाताओं की पहली पसंद नवीन पटनायक

नवीन पटनायक अविवाहित हैं। ओडिशा की जनता के बीच उनकी छवि साफ-सुथरे और ईमानदार नेता की है। पटनायक महिला मतदाताओं के बीच छवि काफी लोकप्रिय है। वह कई लोक कल्याणकारी योजनाओं की वजह से जनता के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं। उनकी कैश असिस्टेंट फॉर फारमर्स योजना ने उन्हें किसानों के बीच भी लोकप्रिय बनाया है।

नवीन पटनायक मौजूदा समय में कांग्रेस और बीजेपी में से किसी भी पार्टी के गठबंधन के साथ खड़े नहीं हैं। हालांकि कई मौके पर केंद्र सरकार के साथ नजर आते हैं। सफेद-कुर्ता पायजामा पहनने वाले नवीन पटनायक ने केंद्रीय राजनीति से हमेशा अपने आपको दूर रखा। दिल्ली आते हैं और वापस चले जाते हैं। किसी को खबर भी नहीं लगती है। हालांकि ओडिशा की राजनीति में नवीन पटनायक को विपक्ष कोई बड़ी चुनौती नहीं दे सका।

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