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नवदुर्गा के नौ रूपों का दिव्य प्रसाद है नौ औषधियों वाला दुर्गा कवच
दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों का मानव जीवन में प्रयोग प्राणदायिनी शक्ति का अनुष्ठान है। इसीलिए इन औषधियों को नवदुर्गा भी कहा गया है । इस बार नवरात्र में आप मां के इन रूपों की आराधना करने के साथ ही उन्हें इन औषधियों का भी भोग लगावें और प्रसाद स्वरूप परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करें।
अखिलेश तिवारी
नवदुर्गा, यानि मां दुर्गा के नौ रूप। मानव जीवन में देवी के इन नौ रूपों से आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है लेकिन देवी के इन नौ रूपों का गहरा संबंध मानवजीवन का कल्याण करने वाली दिव्य औषधियों से भी है। मान्यता है कि देवी के नौ रूपों ने सृष्टि कल्याण के लिए अपने भक्तों को यह औषधियां आशीर्वाद स्वरूप प्रदान की हैं। देवी भक्त मानते हैं कि इन नौ औषधियों में भी पराम्बा की शक्तियां ही विराजती हैं। मां अम्बे के नौ रूप से प्राप्त यह दिव्य औषधियां हैं जो समस्त रोगों से बचाकर जगत का कल्याण करते हैं। नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया। चिकित्सा प्रणाली के इस रहस्य को ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गा कवच कहा गया है।
औषधियों को नवदुर्गा भी कहा गया है
ऐसा माना जाता है कि यह औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली हैं। रोगों से प्राणिमात्र को बचाकर रखने के लिए एक कवच का कार्य करती हैं, इसलिए इसे दुर्गाकवच कहा गया। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष का सुखी जीवन जी सकता है। दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों का मानव जीवन में प्रयोग प्राणदायिनी शक्ति का अनुष्ठान है। इसीलिए इन औषधियों को नवदुर्गा भी कहा गया है । इस बार नवरात्र में आप मां के इन रूपों की आराधना करने के साथ ही उन्हें इन औषधियों का भी भोग लगावें और प्रसाद स्वरूप परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करें। रोगी व्यक्ति भी देवी के निर्धारित रूप और दिन के अनुसार इन औषधियों का सेवन शुरू कर सकते हैं।
देवी के नौ रूप और औषधियों का परिचय-
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी:-
1 प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ -
नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। इसी तरह आयुर्वेद की प्रथम औषधि हरड़ है जो कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली है। इस औषधि हरड़ को हिमावती भी कहा जाता है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है।
इसमें हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है।
पथया- जो हित करने वाली है।
कायस्थ- जो शरीर को बनाए रखने वाली है।
अमृता- अमृत के समान।
हेमवती- हिमालय पर होने वाली।
चेतकी- चित्त को प्रसन्न करने वाली है।
श्रेयसी (यशदाता) शिवा- कल्याण करने वाली।
2. द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी-
ब्राह्मी, नवदुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। देवी के दूसरे स्वरूप् के नाम वाली यह औषधि आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है। इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।
यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए।
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तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम
3. तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर-
नवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान दिखाई देता है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है। यह औषधि लोगों के मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली यह चंद्रिका औषधि है। अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को औषधि सेवन के साथ ही देवी चंद्रघंटा का ध्यान कर उनकी पूजा करना चाहिए।
4. चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा -
नवदुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करना चाहिए।
पंचम स्कन्दमातेति षष्ठमं कात्यायनीति च
5. पंचम स्कंदमाता यानि अलसी -
नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है।
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को औषधि सेवन के साथ ही स्कंदमाता की आराधना व ध्यान भी करना चाहिए।
6. षष्ठम कात्यायनी यानि मोइया-
नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीड़ित रोगी को इसका सेवन करने के साथ ही देवी कात्यायनी की आराधना व ध्यान करना चाहिए।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टम
7. सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन -
दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है।इस पौधे को अपने घर में लगाने वाले व्यक्ति के घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। इस औषधि के प्रयोग के साथ ही देवी कालरात्रि का ध्यान और आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए।
8. अष्टम महागौरी यानि तुलसी-
नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है एवं हृदय रोग का नाश करती है।
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि:
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।
इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता
9. नवम सिद्धिदात्री यानि शतावरी -
नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार एवं वात-पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना व ध्यान करना चाहिए।
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