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Netaji Subhas Chandra Bose : डी.एन.ए. टेस्ट के बाद ही खत्म होगी नेताजी की मृत्यु से जुड़ा विवाद
Subhas Chandra Bose : नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के सम्बंध में चल रहे विवाद का समाप्त होने की उम्मीद है। नेताजी की मृत्यु के समय चल रहे विवाद का कारण है कि उन्होंने कैसे मारे गए थे।
Netaji Subhas Chandra Bose : सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु की गुत्थी सुलझाने के लिए गठित मुखर्जी आयोग अब जापान की राजधानी टोक्यो के रैनकोजी मंदिर में रखी उनकी अस्थियों का डी.एन.ए. टेस्ट कराने पर विचार कर रहा है। इसके लिए नेताजी की पुत्री को भी मनाने की मशक्कत जारी है, ताकि वह भी अपने डी.एन.ए. टेस्ट के लिए राजी हो जाएं। मुखर्जी आयोग का मानना है कि डी.एन.ए. टेस्ट के अलावा इस गुत्थी को सुलझाने का अब और कोई चारा नहीं बचा है।
उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में सुभाष चन्द्र बोस की उपस्थिति को लेकर उठ रहे बार-बार के विवार से निजात पाने के लिए मुखर्जी आयोग किसी ठोस नतीजे पर पहुंचना चाहता है। क्योंकि इस गुत्थी को सुलझाने के लिए गठित दो और आयोगों की रिपोर्ट के बाद भी नेताजी की मृत्यु को लेकर संशय बना हुआ है।
गौरतलब है कि नेताजी के मौत की गुत्थी सुलझाने के लिए 1956 में एक सदस्यीय शाहनवाल कमेटी का गठन किया गया था। शाहनवाज नेताजी के साथ इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) में थे। बाद में उन्हें स्वाधीन भारत में मंत्री भी बनाया गया था। इसके बाद 1971 में जस्टिस जी.डी. खोसला के नेतृत्व में एक कमीशन बैठाया गया। इन दोनों आयोगों ने रिपोर्ट दी कि नेताजी की मृत्यु विमान दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को हो गई थी। हालांकि ये आयोग इस नतीजे पर कैसे पहुंचे, यह एक अलग अध्याय है। लेकिन इस बार मुखर्जी आयोग का गठन कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देश पर हुआ है। कलकत्ता हाईकोर्ट में सद् ज्योति भटटाचार्या बनाम भारत सरकार की याचिका पर न्यायमूर्ति प्रभा शंकर मिश्र ने फैसला सुनाते हुए सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु से जुड़े विवाद को हल करने के लिए एक नया आयोग गठित करने के निर्देश दिये। इसी के बाद मुखर्जी आयोग का गठन हुआ।
एक सदस्यीय मनोज कुमार मुखर्जी आयोग ने पिछले माह फैजाबाद के अभिलेखागार में रखे गुमनामी बाबा के सामानों को जांच परख की। इस बात की तहकीकात की कि सोलह सितम्बर 1985 तक फैजाबाद राजभवन में रह रहे कथित गुमनामी बाबा क्या सुभाष चन्द्र बोस थे? इस सवाल को हल करने का काम यह आयोग कर रहा है। गुमनामी बाबा के सामान में कई ऐसी वस्तुएं मिली हैं
जिनका उपयोग नेताजी करते थे।
इनमें सुभाष चन्द्र बोस को भेजे गये पत्र, आजाद हिंद फौज में इस्तेमाल की जाने वाली दूरबीन, नेताजी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली रोलेक्स घड़ी, सोने के फ्रेम वाला गोल चश्मा और तमाम पुस्तकें शामिल हैं। इन पुस्तकों पर नेताजी के हाथांे की टिप्पणी है। कहा जाता है कि 1945 में सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु हो गयी थी। लेकिन इन सामानों में बंगाल के महान क्रांतिकारी और तीस साल तक लेल में रहे नोक्य नाथ चक्रवर्ती द्वारा लिखी वह पुस्तक भी है जिस पर चक्रवर्ती ने अपने हाथों से ‘साधु बाबा को प्रणाम’ लिखा है। यह किताब नवंबर 1962 को बाबा को भेजी गई थी। इसने नेताजी के बारे में विवाद को और गहरा दिया। इन सामानों को उत्तर प्रदेश सरकार ने 1985 में जब्त कर फैजाबाद के अभिलेखागार में रखा था।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस विचार मंच के अध्यक्ष अलीकेश बागची तथा अन्य सुभाष वादियों द्वारा बार-बार यह मामला उठाए जाने के बाद कि गुमनामी बाबा जो कभी सार्वजनिक नहीं होते थे और हमेशा पर्दे के पीछे से बात करते थे । वह और कोई नहीं सुभाष चन्द्र बोस थे। लेकिन सुभाष चन्द्र बोस समर्थक इस बात से अभी भी सहमत नहीं है कि नेताजी की मृत्यु हुई है।
उनके मुताबिक नेताजी सीतापुर के आसपास कहीं रह रहे हैं। उनका कहना है कि यदि युद्व अपराधियों की सूची से उनका नाम हटा दिया जाए तो वह बाहर आ सकते हें। गौरतलब है कि भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के साथ इस बात की संधि की थी कि यदि सुभाष चन्द्र बोस का पता चलता है तो सरकार उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के सुपूर्द कर देगी । ताकि उन पर युद्व अपराधी के तौर पर मुकदमा चलाया जा सके। इस संधि की अवधि पहले 1969 तक थी। परन्तु अब वह अनिश्चित काल तक के लिए बढ़ा दी गई है।
(मूल रूप से दैनिक जागरण, नई दिल्ली संस्करण में 1 जनवरी, 2003 को प्रकाशित )