TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

New Parliament Inauguration: जानें क्या है सेंगोल और दक्षिण के अधीनम, सैकड़ों वर्ष है पुराना इतिहास

New Parliament Inauguration: संसद भवन के उद्घाटन में एक खास रस्म भी होगी, जिसे 'सेंगोल सेरेमनी' कहा जा रहा है। पीएम मोदी राजदंड सेंगोल को लोकसभा स्पीकर के चेयर के सामने स्थापित करेंगे।

Neelmani Laal
Published on: 28 May 2023 12:43 PM IST (Updated on: 28 May 2023 7:26 PM IST)
New Parliament Inauguration: जानें क्या है सेंगोल और दक्षिण के अधीनम, सैकड़ों वर्ष है पुराना इतिहास
X
New Parliament Building Inauguration (Pic Credit - Social Media)

New Parliament Inauguration: नई संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर खास रस्म हुई। जिसे 'सेंगोल सेरेमनी' कहा जा रहा है। इस रस्म के लिए तमिलनाडु के विभिन्न मठों से लगभग 30 प्रमुख दिल्ली आए थे। ऐसे में यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि ये अधीनम होते क्या हैं। यह सेंगोल क्या होता है।

क्या है सेंगोल

सेंगोल एक तमिल शब्द है। जिसका अर्थ होता है- संपदा से संपन्न। इसे सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता है। आज़ादी के समय जब अंग्रेजों से सत्ता का हस्तांतरण हुआ तो पंडित नेहरू ने वायसराय लार्ड माउंटबेटन से सेंगोल ही स्वीकार किया था। हालाँकि यह विचार नेहरु को सी राज गोपालाचारी ने सुझाई थी। राज गोपालाचारी इसके लिए थिरुवावादुथुरई अधीनम मठ के मठाधीश के पास पहुँचे। उन्होंने बुम्मिदी बंगारू ज्वेलर्स को को राजदंड बनाने का काम सौंपा गया। सोने से बनी छड़ी नुमा यह आकृति के शीर्ष पर नंदी विराजमान हैं। यह प्रयागराज के म्यूज़ियम में रखी हुई थी। भारत में सेंगोल राजदंड का पहला ज्ञात उपयोग चेर, चोला , पांड्या साम्राज्य के काल का है। इसके बाद गुप्त,विजयनगर साम्राज्यों द्वारा किया गया। इसे शासक की शक्ति और प्रतीक के रूप में देखा जाता था। सिलापाद्करम,मनिमोलाई महाकाव्य में सेंगोल की विशेषता बताई गयी है। तिरुक्कुरल साहित्य में भी सेंगोल का ज़िक्र है।

किसे कहते हैं अधीनम

अधीनम दरअसल मठ को कहते हैं। दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु के अधीनम शैव अनुयायियों के मठ हैं। शैव यानी शिव की आराधना करने वाले। तमिलनाडु के अधीनम या मठों का उच्च जाति के वर्चस्व का विरोध करने का इतिहास रहा है। वे धर्म को जन-जन तक ले जाने के लिए जाने जाते हैं। इनमें से कई मठ सैकड़ों साल पुराने हैं।

शैव-सिद्धांत की क्या इतिहास

शैव-सिद्धांत दक्षिण भारत और श्रीलंका में लोकप्रिय है। यह एक भक्ति दर्शन का प्रचार करता है, जिसका अंतिम लक्ष्य शिव के साथ एकात्मकता का अनुभव करना है। यह मुख्य रूप से 5वीं से 9वीं शताब्दी तक शैव संतों द्वारा लिखे गए तमिल भक्ति भजनों पर आधारित है, जिन्हें उनके एकत्रित रूप में तिरुमुराई के रूप में जाना जाता है। शैव सिद्धांत के पहले दार्शनिक मयकंददेवर थे। इनका काल तेरहवीं शताब्दी का है।
माना जाता है कि यह परंपरा कभी पूरे भारत में प्रचलित थी।

इतिहासकारों के अनुसार उत्तर भारत की मुस्लिम अधीनता ने शैव सिद्धांत को दक्षिण तक सीमित कर दिया, जहां यह तमिल शैव आंदोलन के साथ विलय हो गया। इसी ऐतिहासिक संदर्भ में शैव सिद्धांत को आमतौर पर एक "दक्षिणी" परंपरा माना जाता है, जो अभी भी बहुत अधिक जीवित है। वर्तमान में शैव सिद्धांत के अनुयायी मुख्य रूप से दक्षिण भारत और श्रीलंका में हैं। विशेष रूप से दक्षिण भारत के ब्राह्मणों, कोंगु वेल्लालर, वेल्लालर और नगरथार समुदायों के सदस्य इसके अनुयायी हैं। तमिलनाडु में इसके 50 लाख से अधिक अनुयायी हैं। यह दुनिया भर के तमिल प्रवासियों के बीच भी प्रचलित है। इसके हजारों सक्रिय मंदिर मुख्य रूप से तमिलनाडु और दुनिया भर में महत्वपूर्ण तमिल आबादी वाले स्थानों में भी है।

समझिए ये इतिहास

मदुरै अधीनम दक्षिण भारत में सबसे पुराना शैव अधीनम है। यह 1300 साल से भी अधिक समय पहले स्थापित किया गया था। कहा जाता है कि थिरुगनाना सांबंदर की ओर से इसका कायाकल्प किया गया था।इसी तरह थिरुवदुथुराई अधीनम है जो तमिलनाडु के मयिलादुत्रयी जिले के थिरुवदुथुराई शहर में स्थित है। मइलादुथुराई में मयूरनाथस्वामी मंदिर का रखरखाव अधीनम करता है।

14 अगस्त, 1947 को इस अधीनम के तत्कालीन मुख्य पुजारी श्रीला श्री अंबालावन देसिका स्वामीगल ने विशेष शिव पूजा की थी। दिल्ली में पंडित जवाहरलाल नेहरू को रत्न जड़ित स्वर्ण राजदंड "सेंगोल" भेंट किया था। सी. राजगोपालाचारी इस अधीनम के प्रबल अनुयायी थे।

इसी तरह धरुमापुरम अधीनम है। 2019 तक, अधीनम के नियंत्रण में कुल 27 शिव मंदिर थे। शैव सिद्धांतम की विचारधारा का प्रसार करने के लिए, 16वीं शताब्दी के दौरान थिरुवदुथुरै अधीनम और थिरुप्पनंदल अधीनम के साथ, धरुमापुरम अधीनम की स्थापना की गई थी। तिरुवन्नामलाई अधीनम या ओरा कुनाकुडी तिरुवन्नामलाई अधीनम तमिलनाडु के कुन्नाकुडी शहर में स्थित है। 16वीं सदी में स्थापित ये मठ शनमुघनाथर मंदिर का रखरखाव और प्रशासन करता है।



\
Neelmani Laal

Neelmani Laal

Next Story