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Nithari Case: 17 साल में सज़ा-ए-मौत से बरी होने की कहानी

Nithari Case: नोएडा के सेक्टर 31 और उसके आसपास से कई बच्चे लापता हो जाते हैं। बच्चों के घरवाले पुलिस में गुहार लगाते हैं लेकिन पुलिस लापता बच्चों की तलाश में कुछ खास नहीं कर पाती है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 16 Oct 2023 9:27 PM IST
Nithari Case
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Nithari Case (Pic:Social Media)

Nithari Case: कुख्यात निठारी सीरियल हत्याकांड (Nithari Kand) के आरोपियों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए बरी कर दिया है। आरोपी मनिंदर सिंह पंढेर और उसके घरेलू सहायक सुरेंद्र कोली पर पहले बलात्कार और हत्या सहित सीबीआई द्वारा दर्ज 19 मामलों में आरोप का सामना करना पड़ रहा था। बात सन 2005 - 2006 की है। नोएडा के सेक्टर 31 और उसके आसपास से कई बच्चे लापता हो जाते हैं। बच्चों के घरवाले पुलिस में गुहार लगाते हैं लेकिन पुलिस लापता बच्चों की तलाश में कुछ खास नहीं कर पाती है। लापता बच्चों में 10 साल की ज्योति और 8 साल की रचना शामिल थीं। पता नहीं क्यों, उनके पिता झब्बू लाल और पप्पू लाल को बिजनेसमैन मोनिंदर सिंह पंढेर के उसके घरेलू नौकर सुरिंदर कोली पर शक था। झब्बू लाल और पप्पू, दोनों ने अपने संदेह के साथ पुलिस से संपर्क किया था, लेकिन पुलिस ने उन्हें टरका ही दिया।

नाले में शव

इलाके में अफवाह थी कि नाले में बच्चों के शरीर के अंग देखे गये हैं। सो, झब्बू लाल और पप्पू ने स्थानीय निवासी संघ के पूर्व प्रमुख एससी मिश्रा से नाले की खोज में मदद करने का आग्रह किया।

28 दिसंबर 2006

सुबह करीब साढ़े नौ बजे एससी मिश्रा, झब्बू लाल और पप्पू लाल नाले पर पहुंचे। महीनों से नाले की सफाई नहीं हुई थी। काफी मलबा, झाड़ियां आदि थीं। झब्बू का कहना है कि नाले में खोजबीन करने के करीब आधे घंटे बाद उसे एक सड़ा हुआ हाथ मिला। इन लोगों ने तुरंत नोएडा के सेक्टर 20 पुलिस स्टेशन में खबर की। इसी पुलिस स्टेशन में सभी गुमशुदगी की शिकायतें दर्ज की गई थीं। जब तक पुलिस मौके पर पहुंची, स्थानीय लोगों ने कहा कि उन्होंने तीन शवों के हिस्से ढूंढ निकाले थे। यहीं पुलिस का दावा है कि वह सुरिंदर कोली को पकड़ लाई थी और था और उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया था।

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कितने शव मिले

उस समय की रिपोर्टें नाले में पाए गए शवों की संख्या एकमत नहीं थीं। स्थानीय निवासियों ने दावा किया था कि कम से कम 15 शव मिले हैं। हालाँकि, पुलिस ने कहा कि उन्हें हड्डियाँ और खोपड़ियाँ मिली हैं, और किसी एक आंकड़े पर पहुँचना संभव नहीं है। पुलिस पर शवों को ढूंढने का श्रेय लेने का भी आरोप लगाया गया, जबकि निवासियों का दावा था कि चौंकाने वाली खोज उन्हीं लोगों ने की थी। पुलिस ने कहा था कि उन्होंने पायल नाम की एक महिला की तलाश के दौरान मामले का खुलासा किया, जो पंढेर के घर आती थी। बाद में कोली ने पायल और छह बच्चों की हत्या की बात स्वीकार कर ली थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पंढेर ने कहा था कि पायल एक सेक्स वर्कर थी जिसे वह नौकरी पर रखे हुए था।

पुलिस की जांच

पुलिस ने 26 और 27 दिसंबर, 2006 को दोनों आरोपियों पंढेर और कोली को हिरासत में ले लिया। कोली का नार्को विश्लेषण किया गया और उसने कथित तौर पर हत्याओं में पंढेर को क्लीन चिट दे दी। कोली ने कहा कि वह मृतकों के शवों के साथ बलात्कार करता था और अपने शौचालय में उनके टुकड़े टुकड़े कर देता था। बताया जाता है कि सिलसिलेवार हत्याएं 2005 और 2006 के बीच हुईं और पीड़ितों में नाबालिग भी शामिल थे। इनमें गरीब महिलाएं और बच्चे थे जो इलाके से लापता हो गए थे। कथित तौर पर, कोली बच्चों को फुसलाकर घर में लाता था और वह और पंढेर पीड़ितों के साथ बलात्कार करते थे और उनकी हत्या कर देते थे। इसके बाद आरोपी पीड़ितों को काट देते थे और सबूत मिटाने के लिए उनके कुछ हिस्सों को नाले में फेंक देते थे।

सीबीआई जांच

शुरू से ही स्थानीय निवासी इस भयावह अपराध की उत्तर प्रदेश पुलिस की जांच से संतुष्ट नहीं थे। तनाव के कारण स्थानीय निवासियों द्वारा पुलिस कर्मियों पर पथराव की घटनाएं भी हुईं। पुलिस की ओर से बड़ी चूक के आरोपों के बीच, केंद्र सरकार ने एक जांच पैनल नियुक्त किया। जनता के आक्रोश के बीच तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और कई पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया। केंद्रीय पैनल ने भी पुलिस की ओर से घोर लापरवाही पाई। उसी साल अप्रैल में यूपी सरकार ने मामले को सीबीआई को सौंपने का फैसला किया।

जांच में पाया गया कि पीड़ितों की संख्या कम से कम 19 थी, जिसमें पायल एकमात्र वयस्क थी। पीड़ितों की खोपड़ी और हड्डियों की जांच से पता चला कि उनमें से 10 पीड़ित थे। रिपोर्टों के अनुसार, डॉक्टरों ने कहा था कि शवों को काटने में "कसाई जैसी सटीकता" थी। सीबीआई मामले में कोली पर बलात्कार, हत्या और सबूत नष्ट करने का आरोप लगाया गया था। आरोपपत्र में पंढेर पर बलात्कार या हत्या का आरोप नहीं लगाया गया।

कोर्ट में क्या हुआ

2009 में गाजियाबाद की एक विशेष अदालत ने पंढेर और कोली दोनों को 14 वर्षीय रिम्पा हलदर के बलात्कार और हत्या का दोषी पाया। दोनों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई गई, अदालत ने इसे "दुर्लभ से दुर्लभतम" मामला बताया। इसके बाद अगले तीन वर्षों में, कोली को पांच अलग-अलग मामलों में पांच मौत की सजा सुनाई गई। आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसने 2011 में मौत की सजा बरकरार रखी। मामला तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तक भी पहुंचा जिन्होंने कोली की दया याचिका खारिज कर दी।

फांसी वाली रात

कोली को 12 सितंबर 2014 को फांसी दी जानी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू ने 8 सितंबर को रात डेढ़ बजे एक आदेश पारित कर फांसी की सजा को कम से कम एक सप्ताह के लिए टाल दिया। यह आदेश कोली की वकील इंदिरा जयसिंह की समीक्षा याचिका पर पारित किया गया था। बाद में अगले महीने सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सज़ा बरकरार रखी। 2015 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उसकी दया याचिका पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी का हवाला देते हुए मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया। 2019 में, कोली को उसकी 10वीं सजा में एक और मौत की सजा सुना दी गई। कोली को 13 मामलों में दोषी ठहराया गया था। अब 12 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उसे बरी कर दिया है।

  • सीबीआई ने सबूतों के अभाव में 19 में से तीन मामलों में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी।
  • पंढेर इस समय नोएडा जेल में है और कोली गाजियाबाद जेल में बन्द है।
  • 16 मामलों में से, कोली को 15 में बरी कर दिया गया है। हालाँकि, वह एक मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने पहली मौत की सजा पर मुहर लगा दी थी। कोली ने सुधारात्मक याचिका दायर की है, जो लंबित है।
  • पंडेर के खिलाफ तीन मामले थे। ताज़ा आदेश से अब उसे तीनों मामलों में बरी कर दिया गया है।


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Durgesh Sharma

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